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________________ ( ४६ श्रद्धासुमन आचार्य प्रवर का अभिनन्दन भावाञ्जलि सुमनाञ्जलि Jain Education International शत शत वंदन आपणां आचार्य श्री उदारता की मंजुल मूर्ति मेरे प्रणाम हैं आनन्द के चरणों में श्रद्धा के सुमन आचार्यानन्द-पञ्चक उनको वन्दना हमारी है। श्रद्धा सुमन आचार्या-अर्चना महाराष्ट्र के मान - गौरव आनन्द के मान सरोवर चम चम चमके हैं अनन्त अनन्त श्रद्धा के अमर केन्द्र हार्दिक श्रद्धान द्वितीय खण्ड श्रद्धा के सुमन श्रद्धाचंन तुभ्यं नमः साध्वी सुशीलाकुमारी ६८ श्री सरदारमल चौपड़ा १०० डा० जयकिशनप्रसाद खंडेलवाल १०१ प्रवर्तक मुनि श्री हीरालालजी १०२ मुनि श्री शान्तिॠषि १०२ प्रवर्तक श्री अम्बालालजीमहाराज १०३ श्री जीतमल लूणिया १०४ श्री तिलकधर शास्त्री वैद्य अमरचन्द जैन श्री मदन मुनि 'पथिक' श्रीरंगमुनि श्री हीरा मुनि 'हिमकर' मानव जीवन का सदुपयोग जीवन महल की नींव : विचार मीठी बानी बोलिए डा० भागचन्द्र जैन 'भास्कर' मुनि रमेशकुमार श्री फकीरचन्द मेहता सुनि श्री भागचन्द 'विजय' श्री मगन मुनि 'रसिक' मुनि श्री कन्हैयालाल 'कमल' मुनि श्री हेमचन्दजी उपप्रर्वतक स्वामी व्रजलालजी कविरत्न चन्दनमुनि (पंजाबी) बहुश्रुत श्री मधुकर मुनि प्रवचन पंखुड़ियाँ उपदेश श्रवण का पात्र जीवन विकास का सोपान - अनुशासन आचारः परमो धर्मः For Private & Personal Use Only १४३ १४८ १५४ १५८ १६२ १६५ १०५ १०६ १०७ ܗܘܐ १०६ १११ ११६ ११७ ११८ ११६ १२३ १२३ १२७ १३६ १४० www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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