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________________ दो उपवाक्यों वाली संयुक्त वाक्य संरचना इस प्रकार है अज्जु विहीसणु उपरि AT AL S एसइ | तुम्हइँ विहि मि सिरहूँ तोडेसइ -V V तो सहसत्ति -Am पूर्ण वाक्य में 1 और 2 उपवाक्य हैं, परन्तु इन्हें संयुक्त करने वाला योजक नहीं है। संरचना है AT. S. AL V +0. V. उपर्युक्त वाक्य में से ३, ४ और ५ में S. V क्रम ही है । Am. V. S का उदाहरण है पलित्तु Jain Education International खग्गेहिं -Ins वाणेहि संरचना V. S. Am. है । सोहइ -V पेखन्तह णरवर संघाय हुँ- - (७) इसका तात्पर्य यह हुआ कि स्वयंभूदेव ने कर्तृवाच्य में दो प्रकार की ही संरचनाएँ प्रयुक्त की हैं, SV और V. S., इनमें विस्तार हुए हैं। V. S वाली संरचना संस्कृत वाक्य रचना के प्रभावस्वरूप भी हो सकती है । परीक्षणार्थ आचार्य पुष्पदन्त की रचनाओं से भी कतिपय उदाहरण लिए जा सकते हैं । पुष्पदन्त का समय नवीं सदी है । नागकुमार और दुर्वचन के युद्ध-प्रसंग में पुष्पदन्त ने अत्यन्त सरल वाक्यों का प्रयोग किया है माणुस सरीर --S अपभ्रंश में वाक्य संरचना के साँचे छिदंति —V— विधंति जलहरु S O सहपोल विहीसणु – – (६) -S –0+v हरं वरु वंभणु णवि मैं ( हूँ) ब्राह्मण नहीं सिल्ले हिं —Ins— "फर एहि सुरधणु भिदति -V रुधंति -Am छायए For Private & Personal Use Only -(=) ८१ - ( 2 ) - (५) -- (१०) संरचना S. V है । यदि उपर्युक्त संरचनाओं में पदक्रम में परिवर्तन भी कर दिया जाये तो अर्थ में अन्तर नहीं होगा । मुनि रामसिंह की रचनाओं में भी वाक्य संरचना यही है - ( ११ ) इस वाक्य में क्रिया सार्वनामिक प्रत्यय 'उं' से ही व्यक्त हो रही है। सार्वनामिक प्रत्ययों के योग से क्रिया द्वारा पुरुष और लिंग की सूचना की प्रवृत्ति संस्कृत में भी है और आधुनिक आर्य भाषाओं में भी । श्री आनन्द अन्थ श्री आनन्द we K फ्र आयायप्रवर अभिनंदन Ju www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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