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________________ अक्षर विज्ञान : एक अनुशीलन दृढ़ता के साथ कहा जा सकता है । कालान्तर में हुए लिपिविकास के भेद से आकार-प्रकार के भेद की भिन्नता का बाहुल्य अवश्य हो गया है परन्तु उच्चारण का भेद बहुत अधिक नहीं है, यह निश्चित है । मन्त्र शक्ति का आधार भी यही लिपि है । गणित तथा तोल-माप का सम्बन्ध इस लिपि से गहरा जुड़ाहुआ है । इस लिपि के माध्यम से लिखी जाने वाली भाषाओं का शब्दभण्डार अक्षय है, महत्वपूर्ण है । इस लेख में मन्त्रशक्ति विषयक जो भी विवेचन किया गया है वह आध्यात्मिक होने के साथ-साथ भौतिक दृष्टिकोण वाला भी है । मन्त्रशक्ति अपने आप में उभयसिद्धिदाता है । मन्त्रशक्ति से सम्बन्धित नमस्कार महामन्त्र के अंग-प्रत्यंग के रूप में अनेकानेक मन्त्र तथा उनकी विधि व फलाफल यहाँ पर विस्तारभय से नहीं उल्लिखित किये गये हैं । जैन ग्रन्थों में उनका बहुत महत्वपूर्ण व विस्तृत वर्णन है । जहाँ मौलिक रूप से आध्यात्मिक उपलब्धि तथा आनुषांगिक रूप से भौतिक उपलब्धि भी उल्लिखित की गई है। वह उपलब्धि दृढ़ श्रद्धालुओं के लिए आनुषांगिक रूप से भौतिक ऋद्धिसिद्धि देने वाली बनती सत्य है | इस लेख में वर्णित तथ्य पाठकगण ज्ञेय भाव से जानेंगे तथा आदेय भाव से ऐसी आशा है । Jain Education International ७७ For Private & Personal Use Only यह निर्विवाद ग्रहण करेंगे, O ४० @ न क - क 30 ज לומטרים आचार्य प्रव आचार्य प्रभ श्री आनन्द श्री आनन्द भन्थ www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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