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________________ mamarinaamaaranaanakarandaanarauasanarsusarmanandsamosamineractrendrammamaABASABudainancisailasreadmornine प्रवर आभागावर अभि श्रीआनन्द अन्यश्रीआनन्द aorywwimmivirwirvindrawiwwimwwwIYYiwavintrovernormwaremories ६८ प्राकृत भाषा और साहित्य बतलाया है । वहाँ प्राकृत शब्द का अर्थ जन-भाषा ही अभिप्रेत है। अपभ्रंश के दिगम्बर चरित-काव्य तो कुछ प्रकाशित हुए हैं और उनकी जानकारी भी ठीक से प्रकाश में आई है पर श्वेताम्बर अपभ्रंश रचनाओं का समुचित अध्ययन अभी तक नहीं हो पाया है । जितनी विविधता श्वेताम्बर अपभ्रंश साहित्य में है, दिगम्बर अपभ्रंश साहित्य में नहीं है। अत: हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती काव्य-रूपों या प्रकारों का अध्ययन करते समय मैंने प्रायः सभी की परम्परा अपभ्रंश से जोड़ने या बतलाने का प्रयत्न किया है। विविध विधाओं एवं प्रकारों की मूल अपभ्रंश रचनाओं का संग्रह भी प्रकाशित किया जाना आवश्यक है। हमने ऐसी कई रचनाएँ अपने ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, दादाजिनदत्तसूरि, मणिधारी जिनचन्द्रसूरि आदि ग्रन्थों में तथा विविध लेखों में प्रकाशित करने का प्रयास किया है। हमारा अभी एक ऐसा संग्रह ग्रंथ ला० द. भारतीय संस्कृति विद्या-मन्दिर अहमदाबाद से छप रहा है। इससे प्राचीन काव्य-रूपों और भाषा के विकास के अध्ययन में अवश्य ही सहायता मिलेगी। प्राकृत भाषा का साहित्य बहुत ही विशाल है। ज्यों-ज्यों खोज की जाती है, नित्य नई जानकारी मिलती रहती है। अभी-अभी हमें भद्रबाह की अज्ञात रचनाएँ मिली हैं, कई ग्रंथों की अपूर्ण एवं त्रुटित प्रतियाँ मिली हैं, आवश्यकता है प्राकृत भाषा एवं साहित्य सम्बन्धी एक त्रैमासिक पत्रिका की, जिसमें छोटी-छोटी रचनाएँ व बड़े ग्रंथों की जानकारी प्रकाश में लाई जाती रहे। CREDIOAA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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