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________________ " مع سمع دويتوفر فيه ععععععععععععععععرعر عرعر عرععد عربعموعه هے یه متخلخل معترفعيغفهم مع مع معععع عدد و بهره برده ام आचार्यप्रवट आनापार्यप्रवर अभि श्रीआनन्दकन्थश्रीआनन्दाअन्५२ प्राकृत भाषा और साहित्य memornimoviemummonerime NHERI इसी प्रकार नाट्यशास्त्र में देशभाषाओं के सम्बन्ध में चर्चा है, जो इस प्रकार है "अब मैं देशभाषाओं के विकल्पों का विवेचन करूंगा अथवा देश भाषाओं का प्रयोग करने वालों को स्वेच्छया वैसा कर लेना चाहिए।" कामसूत्र में भी लिखा है "लोक में वही बहुमत या बहसमाहत होता है, जो गोष्ठियों में न तो अधिक देशभाषा में कथ कहता है।" जैन वाङमय में अनेक स्थानों पर देशी भाषा सम्बन्धी उल्लेख प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थसम्राट श्रेणिक के पुत्र मेघकुमार के वर्णन के प्रसंग में कहा गया है __ "तब वह मेधकुमार............."अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में प्रवीण हुआ। ज्ञातृधर्मकथा सूत्र का एक दूसरा प्रसंग है "वहाँ चम्पा नगरी में देवदत्ता नामक गणिका निवास करती थी। वह धनसम्पन्न......."तथा अठारह देशी भाषाओं में निपुण थी।" जैन वाङमय में और भी अनेक प्रसंग हैं, जैसे ........."वह दृढप्रतिज्ञ बालक....... ."अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में विशारद था।" ___ ............"दृढ़प्रतिज्ञ बालक..."अट्ठारह देशी भाषाओं में चतुर था।" "वहाँ वाणिज्य ग्राम में कामोद्धता नामक वेश्या थी, जो... ''अठारह देशी भाषाओं में कुशल थी।" इन प्रसंगों से यह अनुमित होता है कि भिन्न-भिन्न प्रदेशों में जो लोकजनीन भाषाएँ या पण्डित अत ऊर्ध्व प्रवक्ष्यामि देशभाषा विकल्पनम् । अथवाच्छन्दतः कार्या देशभाषाप्रयोक्त भिः ।। -नाट्यशास्त्र, १७, २४, २६ नात्यन्तं संस्कृतेनैव नात्यन्तं देशभाषया । कथां गोष्ठीषु कथयंल्लोके बहुमतो भवेत् ।। कामसूत्र १, ४, ५० ३. तते णं से मेहेकुमारे................अट्ठारसविहिप्पगार देसीभाषा विसारए............."होत्था । -ज्ञातृधर्मकथा सूत्र ४. तत्थ णं चंपाए नयरीए देवदत्ता नाम गणिया परिवसइ उड्डा....... ."अट्ठारदेसीभाषा विसारया । -ज्ञातृधर्मकथा सूत्र ३८, ६२ ५. तए णं से दढपइण्णे दारए..............."अट्ठारसविहदेसिप्पगारभाषा विसारए । राजप्रश्नीय सूत्र, पत्र १४८ ६. तए णं दढपइण्णे दारए..... अट्ठारसदेशीभाषा विसारए। --औपपातिक सूत्र अवतरण १०६ ७. तत्थ णं वाणियगामे कामञ्झया णामं गणिया होत्था......"अटारसदेसीभाषा विसारया । -विपाकश्रुत पत्र, २१,२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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