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________________ जैन दर्शन में अजीव तत्त्व २४१ के अंश से आमोनिया निर्मित हुआ है, इसलिए रस और गंध जो आमोनिया के गुण हैं वे गुण उस अंश में अवश्य ही होने चाहिए। जो प्रच्छन्न गुण थे वे उसमें प्रकट हुए हैं। पुद्गल में चारों गुण रहते हैं चाहे वे प्रकट हों या अप्रकट हों। पुद्गल तीनों कालों में रहता है, इसलिए सत् है । उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य युक्त है। जो अपने सत् स्वभाव का परित्याग नहीं करता, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य से युक्त है और गुण पर्याय सहित है वह द्रव्य है।१२ व्यय के बिना उत्पाद नहीं होता, उत्पाद के बिना व्यय नहीं होता । उत्पाद और व्यय के बिना ध्रौव्य हो नहीं सकता । द्रव्य का एक पर्याय उत्पन्न होता है, दूसरा नष्ट होता है पर द्रव्य न उत्पन्न होता है, न नष्ट होता है किन्तु सदा ध्रौव्य रहता है। आज का विज्ञान भी मानता है कि किसी भौतिक पदार्थ के परिवर्तन में जड़ पदार्थ कभी भी नष्ट नहीं होता और न उत्पन्न होता है। केवल उसका रूप बदलता है। मोमबत्ती के उदाहरण से इस बात को स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं। सभी पुद्गल परमाणुओं से निर्मित हैं। यह परमाणु सूक्ष्म और अविभाज्य हैं । तत्त्वार्थराजवार्तिक में परमाणु का लक्षण और उसके विशिष्ट गुण इस प्रकार बताए हैं-१३ (१) सभी पुद्गल स्कंध परमाणुओं से निर्मित हैं और परमाणु पुद्गल के सुक्ष्मतम __ अश हैं। (२) परमाणु नित्य, अविनाशी, सूक्ष्म है। (३) परमाणुओं में रस, गंध, वर्ण और दो स्पर्श--स्निग्ध या रूक्ष, शीत या उष्ण होते हैं। (४) परमाणु का अनुमान उससे निर्मित स्कन्ध से लगा सकते हैं। जैन दृष्टि से कितने ही पुद्गल-स्कंध संख्यात प्रदेशों के, कितने ही असंख्यात प्रदेशों के और कितने ही अनंत प्रदेशों के होते हैं। सब से बड़ा स्कंध अनन्त प्रदेशी होता है और सब से लघु स्कन्ध द्विप्रदेशी होता है। अनन्त प्रदेशी स्कंध एक प्रदेश में भी समा सकता है, वही स्कंध सम्पूर्ण लोक में भी व्याप्त हो सकता है। पुद्गल परमाणु लोक में सभी जगह है । १४ पुद्गल परमाणु की गति का वर्णन करते हुए कहा है कि वह एक समय में लोक के पूर्व अन्त से पश्चिम अन्त, पश्चिम अन्त से पूर्व अन्त, दक्षिण अन्त से उत्तर अन्त और उत्तर अन्त से दक्षिण अन्त में जा सकता है । १५ पुद्गल स्कंधों की स्थिति न्यून-से-न्यून एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात काल तक है ।१६ स्कन्ध और परमाणु संतति की दृष्टि से अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की दृष्टि से सादि-सान्त हैं ।१७। पुद्गल के दो भेद हैं-अणु और स्कन्ध ।१८ स्कन्ध के (१) स्थूल-स्थूल, (२) स्थूल (३) सूक्ष्म-स्थूल, (४) स्थूल-सूक्ष्म, (५) सूक्ष्म (६) सूक्ष्म-सूक्ष्म, ये छह भेद हैं। काया या १२ प्रवचन सारोद्धार २।१।११ १३ तत्त्वार्थ राजवार्तिक अ. ५, सूत्र २५ १४ उत्तराध्ययन ३६।११ १५ भगवती०१८।११ १६ भगवती० ॥७ उत्तराध्ययन ३६।१३ १८ अणवः स्कन्धाश्च -तत्त्वार्थसूत्र अ. ५ आचारसत्रआयाम Monocract श्रीआनन्दअन्य श्रीआनन्दगन्धर miwwwWVIVITIWAY Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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