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संदेश
सदस्य, राज्य सभा
११ विश्वम्भरदास मार्ग, नई दिल्ली धर्म-मानव जीवन की सुख-शांति का कल्पवृक्ष है। मनुष्य की सेवा, संसार का भलाई और प्रत्येक जीव के प्रति करुणा, धर्म का मुख्य रूप है। साधु संत धर्म के द्वारा जन-जीवन को सुखी एवं शांतिमय बनाने का प्रयत्न करते हैं। इसलिए भारतीय समाज में उनके प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धा और सद्भावना का प्राबल्य है।
आचार्यप्रवर श्री आनन्द ऋषि जी का अभिनन्दन ग्रन्थ इसी श्रद्धा का प्रतीक है। इस ग्रंथ के द्वारा आप साहित्य, धर्म और दर्शन की भी सेवा करेंगे । 'एक पंथ दो काज' वाली बात चरितार्थ होगी। ___अभिनन्दन ग्रंथ जैन धर्म व दर्शन के साथ-साथ भारतीय तत्व चिन्तन व संस्कृति को भी उजागर करेगा और यह एक संग्रहरणीय वस्तु बनेगी।
आचार्य श्री को मेरी हार्दिक वन्दनांजलि सूचित करें, आपका ग्रंथ उपयोगी हो, यही शुभ कामना ।
-लोकनाथ मिश्र
डा. गोविन्ददास संसद सदस्य (लोक सभा) ३३, फिरोजशाह रोड, नई दिल्ली
११ दिसम्बर, १९७३ महोदय,
आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषि का अभिनन्दन बहुत ही उचित बात है। उन्होंने त्याग और तपस्या का अनुपम उदाहरण संसार के सम्मुख रखा है । आज देश को ऐसे ही चरित्रों की आवश्यकता हैं ।
वे शत वर्ष की आयु प्राप्त कर इसी प्रकार उत्थान की ओर अग्रसर रहें यही भगवान से प्रार्थना है।
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