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________________ [ उपदेश का महत्त्व, उसका लाभ, उपदेश देने व सुनने का पात्र, श्रोता तथा उपदेश से हृदयपरिवर्तन आदि विषयों का विवेचन ] १ उपदेश श्रवण का पात्र नया DPA उपदेश का महत्त्व उपदेश का जीवन में बड़ा भारी महत्त्व है । अगर व्यक्ति उपदेश के चन्द शब्दों को भी ग्रहण करके उन्हें अपने आचरण में उतार ले तो उसकी कायापलट हो सकती है। कुछ निराशावादी कहा करते हैं'यह संसार घोर दुखों से भरा हुआ है, इसमें रहकर हम अपने आपको पापों से कैसे बचा सकते हैं ? हममें इतनी शक्ति ही कहाँ है कि अपने समस्त कर्मों का नाश करके मुक्ति जैसी महान् सिद्धि को हासिल कर सके।' ऐसे अकर्मण्य, पौरुषरहित और निराशावादी प्राणियों को जगाने की शक्ति अगर किसी में है तो वह केवल उपदेश में ही है। अगर व्यक्ति सर्वथा ही विवेकहीन, बुद्धिहीन और श्रद्धाहीन नहीं हो गया है तो भगवान के वचन और उन्हीं पर आधारित सन्त पुरुषों के उपदेश उसे समझा सकते हैं कि यही संसार जिसे वह नरक मानता है, अपने आप में स्वर्ग भी छिपाये हुए है और वह तभी प्रकाश में आ सकता है जबकि प्राणी सच्चा कर्मयोगी बने, कषायों को जीते, मन एवं इन्द्रियों को सांसारिक प्रलोभनों से बचाये तथा सम्यक ज्ञान और क्रिया रूपी अपने दोनों पैरों से पूर्ण आत्मविश्वास और आत्म-बल सहित सत्पथ पर चले। ऐसा करने पर उसे यही संसार जो दःख और पापों से भरा दिखाई देता है, पुण्य और आनन्द से परिपूर्ण जान पड़ेगा। दृष्टि के बदलते ही उसकी भावनाएँ बदल जायेंगी और मानने लगेगा'सभी सम्भव संसारों में यह संसार सर्वोत्तम है और इसमें सभी वस्तुएं सर्वोत्तम के लिए हैं।' ---वाल्टेयर पर दृष्टि को बदलें कैसे ? उत्तर यही है-उपदेश के द्वारा । वीतराग प्रभु उपदेश किस लिए देते हैं ? प्राणियों को सन्मार्ग पर लाने तथा उनकी दोष-दृष्टि को गुण-दृष्टि में बदलने के लिए। उन्हें अन्धकार से प्रकाश में लाने के लिए ही वे उपदेश देते हैं। श्री उत्तराध्ययन सूत्र के बत्तीसवें अध्ययन में कहा है नाणस्स सम्बस्स पगासणाए, अन्नाण मोहस्स विवज्जणाए। रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगन्त सोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥ भगवान का उपदेश इस लिए है कि ज्ञान का प्रकाश हो, अज्ञान और मोह का नाश हो, राग और द्वेष दोनों का पूर्ण तया क्षय हो, तभी एकान्त सुख रूप मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। उपदेश का असर किस पर होता है? संसार में उपदेशों की कमी नहीं। तीर्थकर श्रमण भगवान महावीर द्वारा दिये गये उपदेश जिनवाणी के रूप में हमारे समक्ष आते हैं। सन्त महापुरुष भी उपदेश देते आये हैं और आज आचार्यप्रवर आत्र आचार्यप्रवत्र Ram anAPARAN.. AnamiARAAAAAAADMAINARMAnsamaaseDMAAVARLAMJANAMIKAAMINANAMAIRasranA श्रीआनन्द श्रीआनन्द अन्य Errior Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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