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________________ आचार्यदेव थी आनन्दऋषि का प्रवचन-विश्लेषण १३१ EIGAD आया P यह सब कुछ होते हुए भी आचार्यप्रवर का मुख्य लक्ष्य यही है कि मानव आत्म-परिष्कार करे और स्वयं प्रबुद्ध बनकर दूसरों को समुचित प्रबोधन प्रदान करे । मानव की यही मानवता है और सच्चे धर्म का यही समीचीन रूप है । गोस्वामी तुलसीदास के मतानुसार कीति, कविता और सम्पत्ति वही उत्तम है जो गंगा की तरह सबका हित करने वाली हो। कीरति भनिति भूति भलि सोई । सुरसरि सम सब कहँ हित होई ॥ -रामचरितमानस सांसारिक विषय-वासना की परितुष्टि के लिए तो सब ही लिखते रहते हैं तथा ऐसे साहित्य का परिज्ञान तो प्रत्येक इन्सान सहज में ही उपलब्ध करता रहता है। सच्चा रसकाव्य तो वही है जो मानवमात्र को अविनश्वर शान्ति दिला सके । कविवर भूधरदास की ये पंक्तियाँ इस संदर्भ में बड़ी उपयोगी हैं राग उदै जग अंध भयो, सहजै सब लोगन लाज गमाई। सोख बिना नर सीखत हैं विषयादिक सेवन को सुधराई ॥ तापर और रचे रस काव्य, कहाँ कहिये तिनको निठुराई । अन्ध असूझन की अंखियान में, झोंकत हैं रज रामदुहाई ॥ -जैनशतक-६४ ए विधि तुम ते भूलि भई, समुझ न कहाँ कसतूरि बनाई। दीन कुरंगनि के तन में, तुन दंत धरै करुना किम आई ।। क्यों न करी तिन जीभन जे रस, काव्य करं पर को दुखदाई। साधु अनुग्रह दुर्जन दंड, दोऊ सधेत बिसरी चतराई। --जैनशतक-६६ श्री आनन्दऋषि के प्रवचन पूर्णरूपेण विरक्तिमूलक हैं तथा सर्वत्र अध्यात्मवाद का मधुर स्वर शब्दायमान है। यही प्रथम विशेषता है। प्रवचनों की दूसरी विशेषता यह है कि एक तथ्य को प्रमाणित करने के लिए आचार्यप्रवर ने विभिन्न शास्त्रों तथा ग्रन्थों से अनेक प्रमाण दिए हैं और अपने कथ्य को प्रभावोत्पादक शैली में समर्पित किया है। वस्तुतः प्रवचन की गरिमा इसी प्रकार स्थापित की जाती है। उदाहरण के रूप में प्रस्तुत है 'सत्य का अपूर्व बल' शीर्षक प्रवचन । आचार्यश्री सर्वप्रथम महर्षि वेद व्यास की भावना को उदधृत करते हैं जो इस प्रकार है : “सत्य अत्यन्त महान और सबसे बढ़कर धर्म है।" । -आनन्द प्रवचन, भाग ३, पृष्ठ २१६ । महात्मा गांधी ने कहा है-परमेश्वर सत्य है, यह कहने के बजाय सत्य ही परमेश्वर है। यह कहना अधिक उपयुक्त है। -पृष्ठ २१६ इस सम्बन्ध में एक पाश्चात्य विद्वान के भी यही विचार हैंOne of the Sublimest things in the world is plain truth सरल सत्य संसार की सर्वोत्कृष्ट वस्तुओं में से एक है। -पृष्ठ २१६ इसके अनन्तर आचार्य श्री विभिन्न भाषाओं के उद्धरणों को देते अपने कथ्य की सार्थकता सिद्ध करते हैं(१) सच्चं खु भगवं-सत्य ही भगवान है। -पृष्ठ २२० (२) सत्य तोचि धर्म असत्य ते कर्म, आणीक हे धर्म नाहीं दुजे । -संत तुकाराम सत्य भाषण करना परम धर्म है और असत्य बोलना कर्मबन्धन का कारण है। -पृष्ठ २२२ (३) सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप । जाके हिरदे साँच है, ताके हिरवे आप ॥ -~~~-पृष्ठ २२२ RAMOMaanasiatra आपाप्रकार riyanvi MAMANN wwwmmmmmmmmmmmmmE For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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