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________________ 0 श्री मगन मुनि जी 'रसिक' कवि, गायक एवं सरलमना सन्त) चम चम चमके हैं [तर्ज-सहनाण पड़यो हय लेवारो (राजस्थानी)] आचार्य प्रवर आनन्द ऋषि, जगति पर चम चम चमके हैं। हैं श्रमण संघ सिर मौर सदा, चन्दा ज्यूं मुखड़ो दमके हैं ॥१॥ वो नगर चिचौंडी धन्य हवो, वठे महा पुरुष ने जन्म लियो। वह तात धन्य वह मात धन्य, धन धरती पावन नाम कियो ।।२।। जब पाप अँधारो छा जावे, तब धर्म वीर जग में आवे । जो उलटे गेले मानव चाले, सनमारग पाछो दिखलावें ॥३॥ वो विक्रम सम्बत् उगणीसौ, सत्तावन लायो सन्देशो। क्रान्ति धर मोटा दिव्य पुरुष, जनमेला साँचो अन्देशो ॥४॥ श्रीमंत सेठ पुण्यवन्त भला, देवीचन्द जी नाम कहायो है। पति-भक्ता हुलषाँ सेठानी, बीतराग धरम अपनायो हैं ॥५।। शुभ-वेला में जनम्या स्वामी, मायडली मन में हलषाई । वी निरख्यो मुखड़ो बालक रो, नहीं नेण धापता मुसकाई ॥६।। जो भागशाली होवे जग में, वह ऐसी कुलवर पावेला । प्राची में छावे अरुणाई, जब दिव्य दिवाकर थावेला ॥७॥ जो मेटे जग रो अँधियारो, वो सूरज सब ने व्हालो है। यूं धरमवीर प्रगटे दुनियाँ में, जन-जन रो हृदय उजालो है ।।८।। सुणताँ ही नाम अमोल सदा, आनन्द यो नाम दियो नामी । सुख यो झूला में झूलत ही, सब लाड़ लड़ाया गुणधामी ॥६॥ विद्या रो पाठ पढ्यो सगलो, निरमलता गहरी भावा में । सत रो दीवड़ लो संजोऊँ, मनड़ो संजम ही लेवा में ॥१०॥ AAAAAAD आचार्यप्रवआनन्दवराआनन्थ आचारसजिनआचार्यप्रवर आना श्रीआनन्द अथश्राम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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