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________________ आचार्य प्रव श्री आनन्द *** JT 水 आपके रचनात्मक कार्यों से जैन धर्म के श्रद्धालु भक्त अत्यधिक प्रभावित और आनन्दित हुए हैं । जैन मुनियों, ऋषियों और महात्माओं का कठोर नियमपूर्ण जीवन तो सर्वविदित है किन्तु आचार्य आनन्द ऋषि जी महाराज के जीवन में अन्य महात्माओं की अपेक्षा एक विशेषता यह रहती है कि आपने व्यक्ति को शिक्षित करने पर अधिक बल दिया है। इसके साथ ही साथ भारतवर्ष के विभन्न स्थानों पर अनेक शिक्षण संस्थाओं द्वारा जैन धर्म की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था आपने ही कराई है । विद्वान यह अच्छी प्रकार अनुभव करते थे कि अपने धर्म का मंडन तभी किया जा सकता है जब अपने धर्म का पूर्ण ज्ञान और अन्य धर्मों का भी समुचित ज्ञान हो । आचार्य आनन्द ऋषि जी महाराज ने भी इस सिद्धांत को अपनाकर अन्य धर्मो के धामिक ग्रंथों का भी अच्छी प्रकार सांगोपांग अध्ययन भी किया है। उस गम्भीर अध्ययन का ही प्रभाव है कि आचार्यजी अपनी विद्वत्ता से सभी को भी प्रभावित यह कर सके हैं। आज उनकी विद्वत्ता और रचनात्मक कार्यों के कारण ही जैन समाज में ही नहीं, अपितु अन्य समाजों में भी आचार्य जी का आदर होता है । 182 आयायप्रवर अभिनंदन ग्रन्थ श्री आनन्द ग्रन्थ C आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व आचार्य जी ने यह सिद्ध करके दिखाया है कि मनुष्य अपनी साधना के द्वारा भगवान् बन सकता है और तपस्या व कठिन नियमों का परिपालन ही एक ऐसा साधन है जो मनुष्य के पापों एवं बुराइयों को दूर कर सकता है । जिस प्रकार अग्नि दूषित वस्तुओं के दोषों को दूर कर उन्हें पवित्र कर देती है, उसी प्रकार तपस्या से मनुष्य के पुनीत होने की स्थिति के पश्चात् ही वह देवत्त्व कोटि में आ जाता है। आचार्य आनन्द ऋषि जी महाराज ने अपने कार्यों द्वारा एवं अपनी तपस्या के द्वारा अपना जीवन सफल और सार्थक बनाकर साथ ही साथ अपने शिष्यों का भी जीवन सफल बनाने का एक आदर्श उपस्थित किया है । जगत में यद्यपि गुरु का स्थान सर्वोपरि और आदरणीय है । गुरु पात्र को देखकर ही शिक्षा देता है और अपनी शिक्षा के माध्यम से शिष्य के अज्ञान अन्धकार को दूर करता है । सभी धर्मों में गुरु को सम्मानित स्थान दिया गया है और गुरु को इसलिए महान् माना गया है कि उसमें अपने दायित्व का निर्वाह करने की एक गरिमा होती है, कुछ महान गुण होते हैं। गुरु उच्च होता है, श्रेष्ठ होता है, महान् होता है । अपनी महत्ता के कारण वह समाज में आदर पाता है । यदि सचमुच गुरु में गरिमा वाले गुण होते हैं तो वह आदर का पात्र तो है ही किंतु वह अपने सद्कार्यों के द्वारा सदा समाज में अमर हो जाता है । गुरु के ही साथ-साथ आचार्य कोटि में उन मूर्धन्य विद्वानों को गिना जाता है, जो अपने विषयों के पारंगत एवं पुरंधर विद्वान होते हैं। ऐसे लोगों को समस्त शास्त्रों का पूर्णज्ञान और शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों का समग्र परिचय होता है । इसीलिये आचार्य कोटि में परम विद्वानों का ही नाम आता है । आचार्य आनन्दऋषिजी महाराज को भी इन्हीं गुणों के कारण आचार्य पद से विभूषित किया गया है। Jain Education International 1 आचार्य आनन्द ऋषि जी महाराज वस्तुतः एक महान् अहिंसावादी महात्मा पुरुष हैं आपके समस्त गुणों की परिचर्चा करना अत्यन्त दुरुह कार्य है किंतु महान् पुरुषों का जीवन एवं कार्य संसार के लोगों के लिये प्रेरणा के स्रोत होते हैं। ठीक इसी प्रकार आचार्य आनन्द ऋषि जी का महान् जीवन, उदार चरित्र, स्वच्छ हृदय, पवित्र विचार, व्यक्तित्व और कृतित्व सदा पथ प्रदर्शन का कार्य करेंगे । आचार्य आनन्द ऋषि जी महाराज ने दर्जनों ग्रंथों को लिखकर अपनी ज्ञानराशि से जैनधर्म को एक अक्षुण्ण भण्डार और अमूल्य निधि दी है एवं अन्य धर्मानुयायियों को जैन धर्म का वास्तविक स्वरुप दिखाने का प्रयास किया है। इतना ही नहीं अपितु इस सच्चे कर्म योगी ने अपने रचनात्मक कार्यों के द्वारा यह सिद्ध करके दिखा दिया है कि मनुष्य को सदैव सुकर्म करने में लगा रहना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से अन्य लोगों पर भी सुकर्म करने का प्रभाव पड़ता है और लोग सुकर्म करने की ओर प्रवृत्त होते हैं। आचार्य प्रवर आनन्द ऋषि जी महाराज ने सचमुच अपने रचनात्मक कार्यों के द्वारा जैन धर्म के प्रसार और प्रचार में योगदान तो दिया ही हैं किन्तु इस महान् कर्मयोगी ने हजारों मील की पद यात्रा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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