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________________ 0 डॉ० भागचन्द्र जैन 'भास्कर' अभ्यन-पालि-प्राकृत विभाग नागपुर विश्वविद्यालय, प्रसिद्ध चिंतक व लेखक] श्रद्धा-सुमन नीरव प्रकृति की गोद में नीरज खड़ा निलिप्त-सा। संसार की गतिशीलता को कह रहा निश्छल बना-सा ।। स्नेह की डोरी बंधी दिनकर-किरण उतरी धरा पर । मौन स्वागत कर रही नीराजना ले अंक भर ॥ नेमि का यह साधना-रथ चिचोड़ी को सर्जना है। रत्नऋषि की अमी छाया का उसे संबल मिला है। कर्मठ कुशल आचार्य हिमगिरिवत है मिला श्री संघ को । आनन्द को धारा बही वीणा मिली भगवान को ।। तत्वचिन्तन की प्रखर प्रतिभा सही आकार है। रोती किलपती मनुजता को वह सही पतवार है॥ महावीर का अभिधान हो चिन्तामणि बनता रहा है। सत्य-दर्शन-साधना में वह सफल दीपक रहा है। सम्प्रदाय और जाति की कोई तुम्हें सीमा नहीं है। स्व-पर को पहचान पाकर जग तुम्हें भूला नहीं है । व्योम के उन्मुक्त रूपों में है वसी तेरी कहानी। प्रगति-पथ के हे पथिक ! तुम सत्य साधक ज्ञान दानी ॥ स्वप्न हों साकार सबके चेतना के द्वार खोलो। जिम्बगी का हर चरण सुरभित करो, आलोक वितरो॥ अनुभूलि की परछाइयों में क्या सहारा मिल सकेगा? वेदना-स्वर-लहरियों को क्या किनारा मिल सकेगा? ॥ सारा जगत तब दर्शनों से हो रहा अत्यन्त हर्षित । हुलसित हृदय से कर रहा वह आपको सब कुछ समर्पित ॥ शब्द भी नहीं, भाव भी नहीं, गीत में भी लय नहीं। श्रद्धा-सुमन सादर लिए, अभिनन्दना किञ्चित यही। ع يع تقطيعهعهععهعيعميغيهرع نحنی- طبقه دومره مره مره مع فرعی: ب عد KAJALAMA 32M.AAAAA आपाप्रवनबनिनसाचार्यप्रवर अभि श्रीआनन् -श्रीआनन्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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