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________________ - प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज [मेवाड़ के विशिष्ट प्रभावशाली वयोवृद्ध संत, आगमों के गम्भीर बाता] TE आपांणां प्राचार्य श्री [ मेवाड़ी भाषा] परम आत्मीयता री स्थिति में दो बोल भी दुर्लभ व्यां करे। कई केणो कई नी केणो ई रो कई ध्यान नी आवे । कणी रे इ वास्ते केवारे पेली आपणो अलग अस्तित्व थापणो जरूरी व्हे। घनिष्ठ एकात्मकता री स्थिति में या बात घणी दोरी। पूज्य आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी महाराज साहब रे विषय में दो बोल केता थकां म्हूँ भी मुश्किल रो अनुभव करू। आचार्य श्री आपणां श्रमण संघ में आज सिरमौर ने जैन समाज रा प्रधान पद पे है । यो प्रायः व्यां करे के असी स्थिति में पहुँचवा पे एक अजाप्यो अहं अचानक चुपचाप जीवन में घुस जा, वीरो प्रकट प्रभाव रौब राखवारी वृत्ति में नजर आवे। पण आचार्य श्री बी सू बाल-बाल बच सक्या या आचार्य श्री रे वास्ते ही नी, आपणां संघ रै वास्ते भी बड़ी गौरव री बात है। म्हूं घणां वर्षों सू आचार्य श्री ने देख र्यो हूँ, ये जठे हा आज भी बैठे ही है। संजम रे प्रति जागरूक वृत्ति में पेली भी हा आज भी है । बालकां जस्यो सरल स्वभाव बो भी समझ पूर्वक, पेली भी हो आज भी है। ई में कई फरक नी पड्यो । जठा तक उपरली बातां है आचार्य श्री में घणां उतार चढ़ाव आया। एक संप्रदाय का आचार्य पछे छोटा संघ का आचार्य, पछे प्रधान मन्त्री, पछे उपाध्याय, पछे संघ रा आचार्य आदि । यो उपरलो ऊर्ध्वमुखी परिवर्तन तो घणो व्यो, पण अन्तर सू तो ये है जो है। म्हूं अणा सू अलग-अलग स्थिति में मिल्यो पण य म्हने अलगनी मिल्या। केणों कई, करणों, कई बताणों कई, साधना री पहली स्थिति में भी नी चाले, पण घणां ऊंचा बाजवा वाला में भी जद असी बातां नजर आवे तो मन खिन्न व्हे, असी हालत में आचार्य श्री री तरफ नजर जावे तो मन ने बड़ा सन्तोष व्है के आत्मा रा धरातल सू निष्कपट व्यवहार रो आदर्श मर्यो नी जिन्दो है, ने वो आचार्य श्री का रूप में साकार बण घूम रयो है। बलिहारी उलझना ने सुलझावा में नी है, बलिहारी तो उलझना में नी उलझवा में है। श्रमण संघ अलग-अलग संप्रदायां रो एक विधान सम्मत एकीकृत समूह है, ई में कतरी उलझना आई या आवती रे वे या तो जो ई में काम करे वो जाणे। दू जो तो अन्दाज ही नी लगा सके। म्ह जाण क्यू के महूँ ई में काम करू । अठे उलझना रो पार नी पण आचार्य श्री कठेई नी उलझ्या। एक हश्यार आदमी उलझतो थको सुलझा तो सके पण एक जणों घणी हुश्यारी रो प्रयोग नी करतां थका भी उलझे नी तो घणी समस्या आपोआप सुलझे या दूसरी बात आचार्य श्री में नजर आई। चावे जस्यो प्रश्न वो, ये आपणा काम में मस्त दो टीपी राय दी दी ने फारक । ramainaranwerin.commarwarunmidananama AAAAAACAN भागार्यप्रवर अननसाचार्यप्रवर अभि श्रीआनन्द श्रीआनन्द अन्श Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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