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________________ MORza आचार्यप्रaea अवय विद्याविनोदी श्रीसुकन मुनि जो [प्रवर्तक श्री मरुधरकेलरी जी म० के सुशिष्य, सेवानिष्ठ, कवि एवं गायक) आनन्द पंचक अभिनन्दन कवित्त अागम अनेकों शोध, ज्ञान में गम्भीर बने, चारित्र के पालन में, दृढ़ श्रद्धावान है। रमणीय शान्त छबी, विमल विवेक जा को, यत्नायुत्त काम करें, षट्काय प्राण है। प्रबल बुद्धि के धनी, उपजे तर्क धणी, वचन सुबोध वारे, सुधा के समान है। रत्न त्रय पालने में, रहैं सदा सावधान, श्रीमन्त साधारण, गीने एक शान है ॥१॥ आन सान प्रान जान, धर्म को दृढ़ाने वाले, नंबर प्रथम पाये, विबुध समाज में। दया दान दम सम खम नमनादि गुण, ऋचा वेद भांती नित्य, विभूषित साज में । षिन्न नाही होत कभी, भिन्नता विसार बैठे, जीवन सुन्दर जाकी, सिंह सी ओघाज है। मनोनीत संघ सारे, आचार्य समराट है। • “सुकन' सुहावे नित, आनन्द महाराज है ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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