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________________ १०. श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन वाचनालय, बदनोर ११ श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन छात्रालय, राणावास १२. श्री वर्धमान जैन सिद्धान्तशाला, फरीदकोट १३. श्री रत्न जैन श्राविकाश्रम, श्रीरामपुर १४. श्री तिलोक जैन पारमार्थिक संस्था, घोड़नदी महर्षि आनन्द और उनका तत्त्वचिन्तन १५. श्री प्राकृत भाषा प्रचार समिति, पाथर्डी ये संस्थाएँ आज भी अपनी ज्ञान-साधना से समाज को प्रकाश दे रही हैं। इनके अतिरिक्त बीसों संस्थायें ऐसी भी हैं जो महर्षि आनन्द का सहयोग पाकर जीवित रह सकी हैं। सुधर्मा मासिक पत्र भी उनके निर्देशन में समाज को एक नयी दिशा का बोध करा रहा है। "बुक बैंक" जैसे प्लेटफार्म का निर्माण कर ऋषि जी छात्रजगत की समस्याओं को भी खोजने में व्यस्त हैं । ४. ज्ञान कुंजर दीपिका ५. ऋषिसम्प्रदाय का इतिहास साहित्य सर्जक आचार्य प्रवर आनन्दऋषि जी कुशल साहित्य सर्जक और विविध भाषाओं के पण्डित हैं । मराठी भाषा और साहित्य के विशेष अध्येता होने के कारण उन्होंने मराठी साहित्य को अनुवादन के माध्यम से समृद्ध करना अधिक उपयोगी समझा । अभी तक उनके मराठी भाषा में जो अनुदित ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं वे भाव-भाषा की दृष्टि से प्रशंसनीय कहे जा सकते हैं । ग्रन्थों के आद्योपान्त पढ़ने पर पाठक यह अनुभव करता है कि भाषा के माध्यम से यहाँ भावों की अभिव्यक्ति में कहीं कोई गतिरोध नहीं । प्रवाहशीलता उनकी विशेषता है । यह विशेषता निम्नलिखित अनुदित ग्रन्थों में देखी जा सकती है १. आत्मोन्नतिचा सरल उपाय २. अन्य धर्मापेक्षा जैनधर्मातील विशेषता ३. वैराग्यशतक ४. जैनदर्शन आणि जैनधर्म ५. जैनधर्माविषयी अर्जनविद्वानांचे अभिप्राय ( दो भाग ) ६. उपदेश रत्नकोश ७. जैनधर्माचे अहिंसातत्त्व (वि. सं. २०१२ ) (वि. सं. २०१२ ) (वि. सं. २०१४ ) (वि. सं. २०१६ ) (वि. सं. २०१७ ) (वि. सं. २०२१) ८. अहिंसा आदि महर्षि आनन्द साहित्य सर्जक ही नहीं, साहित्य सर्जकों के निर्माता भी हैं। वे प्रेरणा के सूत्र हैं । उनकी सतत प्रेरणा और संयोजना से अनेक ग्रन्थों का प्रणयन हो चुका है और हो रहा है । प्रणीत ग्रन्थ इस प्रकार हैं- १. पूज्यपाद श्री तिलोकऋषि जी महाराज का जीवनचरित्र २. पण्डितरत्न पूज्य श्री रत्नऋषि जी महाराज का जीवनचरित्र ३. श्रद्धेय श्री देवजीऋषि जो का जीवनचरित्र ६. आध्यात्म- दशहरा ७. समाज-स्थिति का दिग्दर्शन ८. सतीशिरोमणि श्री रामकुंवर जी महाराज का जीवनचरित्र ६. विधवा विवाह मुख चपेटिका आदि १०. सम्राट चन्द्रगुप्त राजा के सोलह स्वप्न ११. चित्रालंकार काव्य : एक विवेचन Jain Education International आचार्य प्रव श्री आनन्द ६७ आमनन्दन आआता दी उप्र भन्थ ५१ श्री आनन्द ronprivate & Persdifal Use Only. J या wate आमदन अन्थ www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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