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________________ श्री आनन्द अन्थ WHAT ६६३ ४२ आचार्य प्रव न्दि आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व बैठते पर पहले स्वाध्याय और ध्यान करते हैं। आपश्री फरमाते हैं कि पहले भजन और फिर भोजन । अभ जीवन और शिक्षा जीवन का शिक्षा के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है । जीवन शरीर है तो शिक्षा उसका प्राण है । शिक्षा के अभाव में जीवन का कुछ भी मूल्य नहीं है । शिक्षा से ही जीवन में अभिनव चमक और दमक आती है । आचार्यश्री समय-समय पर शिक्षा पर बल देते हैं। आपश्री ने प्रबल प्रेरणा देकर शताधिक स्थानों पर पाठशालाएँ और स्कूल व छात्रावास खुलवाये हैं । श्री तिलोक रत्न स्थानकवासी जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड आपश्री की ही कल्पना का मूर्त रूप है, जिसमें भारत के एक छोर से द्वितीय छोर तक हजारों विद्यार्थी, सन्त व सतीगण बैठती हैं, प्रवेशिका से लेकर आचार्य तक अध्ययन होता है । आपश्री का अभिमत है कि जीवन को संस्कारी, विचारी और आचारी बनाने के लिए शिक्षा से बढ़कर अन्य कोई उपाय नहीं है । आज स्वतन्त्र भारत के समक्ष दो समस्या हैं - शिक्षा और रक्षा । रक्षा की समस्या का समाधान तो दस बीस लाख सैनिक कर सकते हैं पर अज्ञानान्धकार को मिटाने के लिए सभी को शिक्षित बनना आवश्यक है। शिक्षा केवल व्यावहारिक ही नहीं अपितु आध्यात्मिक मी होनी चाहिए | सदाचार और निर्मल जीवन ही सच्ची शिक्षा का आधार है । प्राकृतभाषा के प्रेमी आज पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध में मानव अपनी संस्कृति, सभ्यता, और भाषा को भी भूलता चला जा रहा है । यही कारण है कि वह प्राचीन महापुरुषों की मौलिक विचार - निधि से वंचित हो रहा है और असहाय की भांति इधर-उधर भटक रहा है। आपश्री का अभिमत है कि संस्कृति की आत्मा साहित्य के भीतर से अपने असीम सौन्दर्य को अभिव्यक्त करती है। साहित्य सामाजिक भावना, क्रान्तिकारी विचार एवं जीवन के विभिन्न उत्थान और पतन की विशुद्ध अभिव्यंजना है। वह समाज के यथार्थ स्वरूप को अवगत कराने वाला दर्पण है और संस्कृति का प्रधान वाहन है । वह सार्वदेशिक और सार्वकालिक 'सत्यं शिवं और सुन्दरम्' को व्यक्त करता है और गहन समस्याओं का समाधान करता है। प्राकृत साहित्य भारत की अनमोल निधि है । उसमें आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभृति जीवन की समस्त भावनाएँ अभिव्यंजित हुई हैं। भगवान महावीर एवं तथागत बुद्ध ने इसी भाषा में उपदेश प्रदान किया है। सम्राट अशोक ने शिला लेख और स्तम्भ लेखों को इसी भाषा में उत्कीर्ण कराया है । खारवेल का हाथी गुफा लेख भी प्राकृत में ही है। हजारों ग्रन्थ इस इसलिए इस भाषा का अध्ययन आवश्यक ही नही अपितु अनिवार्य होना चाहिए। व्यक्तियों को इस भाषा का गम्भीर अध्ययन करने के लिए प्रेरणा प्रदान की है। संगठन के प्रबल समर्थक भाषा में निर्मित हैं, आपश्री ने शताधिक आचार्य श्री जीवन के अरुणोदय से ही संगठन के प्रबल समर्थक रहे हैं। आपश्री के स्पष्ट विचार रहे हैं कि 'संगठन जीवन है और विघटन मृत्यु है।' जैन समाज की बिखरी हुई शक्तियों को देखकर आपश्री के मन में अपार वेदना होती है और हृदय की वेदना वाणी के द्वारा अनेक बार मुखरित हुई है। मैंने स्वयं देखा है सादड़ी, सोजत, अजमेर व साण्डेराव सन्त-सम्मेलनों में आपश्री ने जो मानसिक व बौद्धिक श्रम किया है, वह किसी से भी छिपा नहीं है । इस समय भी आप सम्पूर्ण जैन समाज की एकता के लिए अथक परिश्रम कर रहे हैं । Jain Education International वाणी के जादूगर बोलना एक कला है और कलाओं में उसका प्रथम स्थान है। आचार्यश्री की वाणी में जादू है, जो श्रोताओं के दिल को भी लुभा लेती है, मन को मोह लेती है । आपश्री की जादू भरी वाणी से साधारण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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