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________________ श्री देवेन्द्रमुनि, शास्त्री साहित्यरत्न [ चिन्तनशील गद्यकार, अनेक शोध ग्रन्थों के विशिष्ट लेखक ] दीप्तिमान निर्मल गेहुंआ वर्ण, दार्शनिक मुखमण्डल पर चमकती दमकती हुई निश्छल स्मितरेखा, उत्फुल्ल नील कमल के समान मुस्कराती हुई स्नेह - स्निग्ध निर्मल आँखें, स्वर्ण-पत्र के समान दमकता हुआ सर्वतोभद्र भव्य ललाट, कर्मयोग की प्रतिमूर्ति के सदृश सुगठित शरीर, यह है हमारे परमाराध्य आचार्य प्रवर का बाह्य व्यक्तित्व । जिसे लोग युगप्रवर्तक आचार्य आनन्दऋषि जी महाराज के नाम से जानते हैं, पहचानते हैं । विविध विशेषताओं के संगम प्राचार्यप्रवर श्री आनन्दर्षि O वे बाहर से जितने सुन्दर हैं, नयनाभिराम हैं, उससे भी अधिक अन्दर से मनोभिराम हैं । उनकी मञ्जुल मुखाकृति पर निष्कपट विचारकता की भव्य आभा झलकती है और उनकी उदार आँखों के भीतर से बालक के समान सरल सहज स्नेह सुधा छलकती है। जब भी देखिए वार्तालाप में सरस शालीनता के दर्शन होते हैं । हृदय की उच्छल संवेदनशीलता एवं उदात्त उदारता दिखाई देती है जो दर्शक के मन और मस्तिष्क को एक साथ प्रभावित करती है और कुछ क्षणों में ही जीवन की महान दूरी को समाप्त कर सहज स्नेह सूत्र में बाँध देती है । प्रथमदर्शन महास्थविर श्री ताराचन्द जी महाराज और श्रद्धेय गुरुदेव राजस्थानकेसरी प्रसिद्धवक्ता पुष्कर मुनि जी महाराज के साथ सन् १९४७-४८ की महाराष्ट्र की यात्रा में मैंने आपश्री की यशोगाथा, कीर्ति, प्रतिष्ठा आदि बहुत कुछ सुनी थी, किन्तु उस समय महाराष्ट्र में मुझे आपश्री के दर्शनों का सौभाग्य नहीं मिल सका था । सन् १६५० में राजस्थान के पदराड़ा गाँव में आपश्री के दर्शनों का अवसर मिला था । प्रथम दर्शन में ही नेत्रों को परितृप्ति का अनुभव हुआ। उसके पश्चात् सादड़ी, सोजत, अजमेर, साण्डेराव आदि सन्त-सम्मेलनों में साथ में रहने का अवसर मिला । जीवन को निकट से परखने का समय मिला, जिस श्रद्धांकुर का बीजारोपण पदराड़ा में हुआ था, वह दिन-अनुदिन पल्लवित और पुष्पित हो रहा है । आचार्यप्रवर की महती कृपा मुझ पर है । मैंने अनुभव Jain Education International स्वर्णगरुड आचार्य प्रवर के सम्बन्ध में लिखने की मुझे प्रेरणा दी गई। मुझे ऐसा अनुभव होने लगा कि किसी कीट पतंग को स्वर्णगरुड के विषय में अपना अनुभव व्यक्त करने को कहा गया हो । आचार्य श्री विश्व रूपी आकाश के स्वर्णगरुड हैं। उनका निर्भीक साहस, उनकी पारदर्शक दृष्टि, उनका ज्वलंत त्याग आदि ऐसे गुण हैं जिनके कारण उनका समाज में प्रभाव है और प्रतिष्ठा का उच्चतम स्थान है । विशेषताओं का संगम किया है-आचार्य प्रवर का जीवन अनेक विशेषताओं का संगम स्थल है । उनका आसनावरून अमर आभान आमद www. హోల For Private & Personal Use Only 疏 www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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