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________________ श्री आनन्द अभिनन्दन प्रवर्तक मरुधरकेशरी मुनि श्री मिश्रीमल जी महाराज [ आशु कवि, ओजस्वी प्रवक्ता, अनेक उच्च संस्थाओं के संप्रेरक तथा प्रभावशाली वयोवृद्ध संत ] Jain Education International ✩ कुण्डलियाँ [१] दया धर्म दीपक हगन, लवजी ऋषी प्रधान । तस पट्टानुपट्टधर - ऋषी त्रिलोक महान । ऋषी त्रिलोक महान, ज्ञान दर्शन को दरियो । कवि रवि के जोड़, नाम पुहवी में करियो । चरणादिक भूषित गुणी, आतम नाम बना गया। उसके शिष रत्नेस पै, भारति भल कीनी दया || कवित्त [२] हेरियों हजारों चख, देश और विदेश बीच, पैन कहीं दीठ पड़यो, वाणी विलखायगी । रत्न के करन शिष्य, अनेकों उपाय सोचे, योग्यता के शून्य जानी, माता मुरझायगी । महा माया महाराष्ट्र, चिंचोड़ी प्रख्यात पौंची आनन्द आनन भाली, खुशियाली छायगी । देविचन्द नन्दन औ, आनन्द अविंद अहा ! आरामात श्री ब्रह्मसुता अली, वन मंढ़रायगी । [३] उदित मुदित भाग, जाग उठे भानू सम रत्न के अमोल जन- जन मन तन देखी हुलसायगे । रत्न, वैन अँन वारे सुण आनन्द हिया में अति, आनन्द बढ़ायगे । छोर दई दुनि मुनि, गुनि वनि अग्र आयो रतन चरण शुभ, ताहि पै लुभायगे । भाषायें अनेक पढ़ी, ज्ञान को शौकीन बन त्याग और वैराग वारो, कलश चढ़ायगे । अभिन्दन आज आमदन आनन्द For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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