SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६ ) आचार्य श्री के लिए नहीं, किन्तु ज्ञान और विचार की प्यासी उस जनता को ही है, किन्तु उस जन श्रद्धा का केन्द्र आचार्य श्री है, इसलिए आचार्य श्री के माध्यम से यह अभिनन्दन ग्रन्थ उस ज्ञान-पिपासु जन के लिए ही है | आचार्य प्रवर इसका ग्रहण अपने लिए नहीं, किन्तु श्रद्धालु जन के लिए ही करेंगे जैसे देवता प्रसाद स्वीकार करते हैं। आचार्य श्री आनन्द ऋषिजी का व्यक्तित्व बड़ा व्यापक है, चुम्बकीय है। वे जीवन के ७४ बसन्त देख चुके हैं, ६० वर्ष से अधिक का समय वे ज्ञान एवं सेवा की साधना में बिता चुके हैं। आज हजारों विद्यार्थी संस्कृत - प्राकृत और तत्व ज्ञान की परीक्षाएँ देकर विद्या के क्षेत्र में गतिशील हैं। इसका मूल प्रेरणा केन्द्र आचार्य श्री हैं। उनकी प्रेरणा से सैकड़ों गांवों और लघु नगरों में अनेक प्रकार की चिकित्सा सेवा के माध्यम से जन सेवा का कार्य हो रहा है, वे अल्पभाषी हैं, किन्तु शक्ति के पुंज हैं, प्रेरणा के अद्भुत केन्द्र है। ज्ञान प्रचार और जन सेवा उनके जीवन के दो महत्संकल्प हैं वे उनको साकार कर रहे हैं । ऐसे संत पुरुष राष्ट्र पुरुष होते हैं इन राष्ट्र-पुरुषों का अभिनन्दन राष्ट्र का अभिनन्दन है, मानवता का अभिनन्दन है । हम उनकी सेवा में यह अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करके स्वयं को गौरवशाली समझेंगे। प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ में छह खण्ड हैं : प्रथम खण्ड में आचार्यप्रवर के गरिमा मण्डित जीवन वृत्त की सरल झांकी है। उनके कृतित्व को विभिन्न दृष्टिकोणों से रखने वाले अनेक विचारकों के लेख और समीक्षात्मक निबन्ध हैं । आचार्य श्री के उज्ज्वल व्यक्तित्व के प्रति हृदय की असीम श्रद्धा व्यक्त करने वाले, मुनिजनों एवं भक्त श्रद्धालुओं के भाव सुमन हैं, शब्दों के सूत्र में गुंथे हुए । द्वितीय खंड में आचार्य प्रवर द्वारा प्रदत्त प्रेरणाप्रद प्रवचनों का साहित्य तो समुद्र की तरह लघु रूप यहां प्रस्तुत किया है, और साधारण पाठकों के लघु संकलन है । आचार्य श्री का प्रवचन विशाल है, उसी में अवगाहन कर उसका गया है, जो विद्वानों के लिए भी पठनीय लिए भी उपयोगी है। तीसरा खंड काफी बड़ा हो गया है। होना भी था । उसमें धर्म और दर्शन जैसे गहन विषयों का समावेश जो है । दर्शन एवं धर्म के विविध अंगों पर विवेचनापूर्ण मौलिक सामग्री पाठकों को मिलेगी । चतुर्थ खंड प्राकृत भाषा और साहित्य का खंड है। चूंकि प्राकृत जैन दर्शन एवं धर्म को समझने की कुंजी है, प्राकृत ज्ञान के बिना जैन दर्शन का प्रामाणिक ज्ञान प्राप्त कर पाना कठिन क्या, असंभव जैसा ही है। आचार्यप्रवर ने प्राकृत भाषा के प्रचार के लिए अद्वितीय श्रम किया है। हजारों विद्यार्थियों को आकर्षित किया है, और अनेक विद्वान तैयार किये हैं। इस दृष्टि से प्राकृत भाषा आचार्य प्रवर की जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy