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________________ यवभिशापार्यप्रवभिनय श्रीआनन्दग्रन्थ श्रीआनन्दकन्न ३० आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व शास्त्री जी भी अत्यन्त विहल होकर आचार्यदेव की सेवा में उपस्थित हए तथा फूट-फूटकर रोते हुए उन्होंने सारी बात आपके समक्ष निवेदन की। श्रद्धेय आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज ने धैर्यपूर्वक शास्त्री जी की बात सुनी तथा उनके दुःख को समझा। तत्पश्चात् कुछ क्षण बाद ही आप अपनी वरदायिनी वाणी से गम्भीरता पूर्वक बोले"शास्त्री जी ! धैर्य रखिये, धर्म एवं गुरु की सेवा करने वाले व्यक्ति के सुख को कोई भी ताकत नष्ट नहीं कर सकती। आप निश्चिन्त हों, एक जैन फकीर की बात असत्य साबित नहीं होगी।" और सचमुच ही सच्चे फकीर की बात निरर्थक नहीं गई तथा अगले दिन ही पंडित जी को पुत्र का पत्र मिल गया, जिसमें लिखा था-"मैं अब ठीक है, चिन्ता न करें।" यह घटना वस्तुतः अद्भुत ही है कि टी० बी० जैसे राजरोग से ग्रस्त ही नहीं, अपितु मरणासन्न व्यक्ति भी आचार्य श्री के आशीर्वाद से पूर्ण स्वस्थ होकर आज भी बम्बई में सुखपूर्वक जीवन-यापन कर भंडार भरा ही रहा-दुसरी घटना बाम्बोरी की है। वि० सं० २०१५ में पूज्य आचार्यसम्राट श्री आनन्दऋषि जी महाराज के हाथों सरसबाई नामक एक बहन की दीक्षा होने जा रही थी। दीक्षार्थिनी के पिता को करीब पन्द्रह सौ दर्शनार्थियों के बाहर से आने की आशा थी, अतः उन्होंने लगभग दो हजार व्यक्तियों के भोजन का उत्तम प्रबन्ध किया। किन्तु सौभाग्यवश बाहर से आने वालों की संख्या चार-पाँच हजार तक पहुँच गई तो वे घबराये हुए आचार्य श्री जी महाराज के पास आए और आपसे दीक्षा के पूर्व एक बार अपने चरणों से घर पवित्र कर देने की प्रार्थना की। इस प्रार्थना को स्वीकार करके जब आचार्य श्री जी ने उनके घर पदार्पण किया तो मौका देखकर गृहपति ने अपनी कठिनाई उनके सामने व्यक्त की। सुनकर चरितनायक मुस्करा दिये और बोले"भाई ! धर्म का भण्डार कभी खाली होता है क्या ? वह तो सदा ही भरा रहता है। उस पर विश्वास रखते हुए मन को निश्चिन्त बनाओ। आनन्द-ही-आनन्द होगा।" और वास्तव में ऐसा ही हुआ। दीक्षामहोत्सव के पश्चात् हजारों व्यक्ति भोजन कर गए किन्तु भोज्य-पदार्थों का भंडार फिर भी भरा ही रहा । अर्थात् धर्म के धारक के वचन सत्य साबित हुए। गई वस्तु आ गई-तीसरी घटना इस प्रकार घटी। एक बार श्रद्धेय आचार्य श्री जी का चातुर्मास जबकि अपनी जन्मभूमि चिचोड़ी गाँव में था, औरंगाबाद जिले के माजल गाँव से सुन्दरबाई नामक श्राविका का परिवार दर्शनार्थ आया। गाँव छोटा होने के कारण मोटर वहाँ चंद मिनिटों के लिये ही रकी तथा दर्शनार्थ आई हुई बहनों की एक पेटी जिसमें बहुमूल्य वस्त्राभरण एवं रुपये थे, बदल गई। अगले दिन प्रातःकाल पेटी खोली गई, सब घोर दुःख से दुखी हो गए और "मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक" कहावत चरितार्थ करते हुए सभी आचार्यदेव के पास पहुंचे। सारी बात सुनकर आचार्यसम्राट बोले-"अरे भाई ! यह सन्तों का दरबार है। यहाँ चिन्ताफिक्र का क्या काम? शुभ कर्मों का साथ रहे तो गई हई वस्तु मिल पाना क्या बड़ी बात है ?" आशान्वित होकर चिचोड़ीवासियों ने भरे हुए सन्दुक की खोज प्रारम्भ की तथा उस घटना के तीसरे दिन ही सन्दूक ज्यों-का-त्यों वापस आ गया। वचनसिद्धि--एक और भी आश्चर्यजनक घटना है। जबकि जैनधर्मदिवाकर आचार्य श्री आनन्दऋषि जी महाराज राजस्थान के किसी गाँव में विराजे हए थे, उस समय एक प्रश्न को लेकर आपके साथी मुनियों से किसी विषय पर वार्तालाप प्रारम्भ हो गया। वार्ता-काल के मध्य में एक खास थावक की आवश्यकता हई, जिसके बिना वार्ता का निकाल संभव नहीं था। सब विचार में पड़ गए कि अब उन्हें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012013
Book TitleAnandrushi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Devendramuni
PublisherMaharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
Publication Year1975
Total Pages824
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size21 MB
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