SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ASURED ० -O O Jain Education International ६० श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ आपश्री धीर, वीर, संयमी महापुरुष हैं । धर्मरथ के एक सिद्धहस्त सारथी है। धर्मभ्रष्ट जन-मन को धर्म का अमृत पिलाकर उसे सत्पथ का पथिक बना डालते हैं । प्रतिकूल परिस्थितियों की आंधियाँ भी चले किन्तु आपका मानस कभी डांवाडोल नहीं होता । धर्म भावना एवं संयम निष्ठा आपके रोम-रोम से टपक रही है । आप धर्म की मीनार एवं शासन के शृंगार हैं । वनकेशरी की तरह आप निडर हैं, पक्षी गज की तरह उन्मुक्त है । और सच्चे सैनिक के समान आप श्री के अणु-अणु में धर्मस्फूर्ति जाग्रत रहती है। आप वाणी के जादूगर है । आपके प्रवचन से जन मानस मुग्ध बन जाता है। श्रोताओं के मन-मस्तिष्क मधुर भावधारा के साथ बहने लगते हैं। वक्तृत्वकला आपका सहज स्वभाव है । भावों की लड़ी, भाषा की झड़ी और तर्कों की कड़ी कुछ इस प्रकार जुड़ जाती है कि सुनने वाला श्रोता अपने में खो जाता है। ओजस्वी वाणी के प्रवाह में हास्य रस की अभिव्यक्ति से श्रोताओं के नीरस, शुष्क और निष्ठुर हृदय सरसब्ज हो जाते हैं । आपकी आवाज बड़ी बुलन्द है। आप श्री की सिंह गर्जना सुनकर जनता वाह-वाह कर उठती है। आपश्री सचमुच एक सफल एवं निर्भीक वक्ता हैं। आपकी वाणी में तेजस्विता, ओजस्विता एवं निर्भयता का सुमेल है । आपका जीवन कलश स्नेहसुधा से ओतप्रोत है, आपके निकट आने वाला - स्नेह सुधा का पान करके अपने आपको धन्य मानने लगता है। वैसे ही आपके जीवन में प्रेम पयोधि छलक रहा है। एक अंग्रेज लेखक ने कहा है Love is light of the life प्रेम यह जीवन का प्रकाश है। आपके जीवन में प्रेम प्रकाश के दर्शन होते हैं। एक अंग्रेज तत्वज्ञ के शब्दों में The greatest pleasure of life is love जीवन का सबसे बड़ा सुख प्रेम ही है। कितनी मार्मिक बात कह दी है । क्योंकि प्रेमद्वारा ही हम दूसरों को अपना बना सकते हैं । जब दूसरे अपने बन जाते हैं तो सर्वत्र सुख का साम्राज्य छा जाता है। जीवन के महान कलाकार कबीर जी की पंक्तियां भी स्मृति पटल पर उभर रही हैं"पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पण्डित भया न कोय । ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पण्डित होय ॥" तो यह प्रेमतत्व आपके अणु-अणु में समाया हुआ है। आपने जैन शासन की महती सेवा की है। इतना ही नहीं तो जैन शासन की सेवा में एक अद्भुत अद्वितीय अजोड़ सन्तरत्न समर्पित किया है। जिनका स्मरण होते ही आंतरिक एवं बाह्य सौन्दर्य से सुशोभित महान व्यक्तित्व आँखों के सामने छलकने लगता है। हृदय में श्रद्धा का स्रोत बहने लगता है । "ओ ! शासन के शृंगार, जीओ तुम बरस हजार । शिल्पकार असाधारण, अप्रतिम सुन्दर प्रतिमा निर्माण चरणों में वन्दन सौ-सौ बार, हार्दिक श्रद्धा सुमन स्वीकार ! करता है जिसे देख जन मानस चकित रह जाता है और आनन्द अतिरेक में अन्तःकरण से उद्गार निकल पड़ते हैं। कि शिल्पकार की अद्भुत कला को धन्य है, धन्य है । जिनशासन की अनमोल निधी साहित्य-साधना में संलग्न पुरुषार्थ की ज्वलन्त प्रतिमा जिनके जीवन में निर्मलता, विचारों में उच्चता, आचार में शुद्धता, वाणी में मधुरता, व्यवहार में कुशलता, हृदय के तार-तार में प्रवाहमान स्नेह - सरिता ऐसे देवेन्द्र मुनिजी महाराज साहब के जीवन के शिल्पकार आप ही तो हैं । ऐसे ही मधुर स्वभावी राजेन्द्र मुनिजी महाराज साहब, गम्भीरमृति रमेश मुनिजी महाराज साहब एवं अध्ययन प्रेमी दिनेश मुनिजी महाराज साहब को भी आपने शासन सेवा के लिए तैयार किया हैं और कर रहे हैं। उनके जीवन वृक्ष को ज्ञान प्रकाश, प्रेम-पवन एवं स्नेह-सिंचन से विकसित किया, पल्लवित किया, पुष्पित किया, इससे आपकी महामहिम महानता द्योतित होती है। आपके महामहिम व्यक्तित्व की स्मृति होते ही निम्न पंक्तियाँ नजरों के सामने तैरने लगती है— सौरभ यश फैला आपका, करता जगत गुणगान है । भानु के सम तप तेज भी, यह चमक रहा अति महान है। हृदय बड़ा ही सरल आपका, संयम रस में रहते लीन । गुरुवर पुष्कर है उदार दिल, ज्ञान-ध्यान में सतत प्रवीण । सत्य-शील शुचिमार्दव संयुत, मुदित उदार विचार समन्वित । दिव्य गुणों के पावन संगम, मुनि पुष्कर है जन-जन वंदित । आकृति को कागज पर उतारने में जितनी कठिनाइयाँ होती हैं उनसे कहीं अधिक व्यक्तित्व को श्वेत कागज पर लेखनी द्वारा उतारने में होती है क्योंकि आकृति साकार होती है, व्यक्तित्व अनाकार । आपश्री की धीरता, वीरता, वाक्पटुता, व्यवहारकुशलता, संयम साधना एवं ज्ञानाराधना इत्यादि गुण रत्नों की ज्योत्स्ना अवनीतल पर जगमगा रही है । ऐसे नानाविध गुणालंकृत श्रमण संघ के चमकतेदमकते महान सन्त को शासनदेव दीर्घायुष्य तथा पूर्ण आरोग्य प्रदान करें। आप चिरकाल तक जिन शासन की सेवा करें, समाज संघ के प्रांगण में जयवन्त रहें, द्वितीया के शशि की तरह आपश्री का शुभ्र सुयश प्रतिपल वृद्धि पाता रहे, इसी मंगलमय शुभ कामना के साथ- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy