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________________ ++............. .... ..... जैन इतिहास में नारी -उपाध्याय पुष्कर मुनि [प्रवचन का एक अंश]] -17 . ७ जैन इतिहास के पृष्ठों को पलट कर देखेंगे तो वहाँ पुरुष से भी अधिक तेजस्वी, तपोमय, समर्पणशील तथा सहिष्णु व्यक्तित्व नारी का है। नारी ने पुरुष का मार्ग-दर्शन किया है, प्रेरणा दी है, सेवा और विनय की सीख दी है। नारी जीवन की दिव्यता की अनेक ऊर्जस्विल गाथाएँ जैन इतिहास के पृष्ठों पर अंकित है। भगवान ऋषभदेव के युग में देखिए-मुक्ति का द्वार सर्वप्रथम माता मरुदेवा ने खोला। इस अवसर्पिणी काल की प्रथम सिद्ध एक नारी थी, एक माता थी। मानव जाति को अक्षर लिपि और अंक विद्या का प्रथम ज्ञान देने वाली भी नारी थी। भगवान ऋषभदेव ने ब्राह्मी को सर्व प्रथम अक्षरलिपि का बोध दिया और सुन्दरी को अंक विद्या का। उन्हीं दोनों सुकन्याओं ने मानव जाति के ज्ञान-विज्ञान का मार्ग प्रशस्त किया, अक्षर लिपि सिखाकर, अंकविद्या (गणित) का रहस्य समझाकर । संगीत, नृत्य, काव्य आदि नारी की चौंसठ कलाएँ भी सर्वप्रथम इन्हीं दोनों ने सीखी और उसका विकास-विस्तार किया। नारी में सहज सुन्दरता, सरलता, मधुरता तो होती ही है, किन्तु प्रतिभा, निष्ठा और त्याग की तन्मयता भी उसमें पुरुष से अधिक होती है। भरत जैसे चक्रवर्ती निलिप्त सम्राट का भी संयम व मनोबल डिग गया था, भोग व सौन्दर्य की आंधी में । सुन्दरी जैसी राजकुमारी ने ही उसे त्याग, तितिक्षा और संयम की ओर मोड़ा। पुरुष के विकार को सुसंस्कार में बदलने का इतिहास सर्वप्रथम नारी ने ही लिखा है अपने उदात्त संयम व शील की लेखनी से। रथनेमि जैसे पुरुषपुंगव को भी संयम व शील की शिक्षा देने वाली सती राजीमती का नाम आज भी अमर है । पुरुष की प्रीत क्षण स्थायी होती है, किन्तु नारी ने तो नौ भवों की प्रीति को पूर्णता दी, उसके साथ संयम, साधना और आत्मलीनता के पथ पर चरण से चरण मिलाकर बढ़ने में । राजीमती की प्रीति-नारी के अमर पारमार्थिक प्रेम की कितनी हृदय-हारी कथा है। भगवान महावीर ने तो नारी के अन्तर में सुप्त दिव्यता को पहचाना और उसे त्याग-सेवा-सहिष्णुता के पथ पर बढ़ने में सदा प्रोत्साहन दिया। KPNAM WAP Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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