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________________ अतीत को कुछ स्थानकवासी आर्याएँ १५५ . ...... .. . . 0 0 भण्डार, भिणाय, लीमडी (सौराष्ट्र) आदि के स्थानकवासी ज्ञान भण्डारों की सामग्री शीघ्र ही प्रकाश में लायी जाय तो अत्यधिक श्रेयस्कर होगा। हमें तेरह महासतियों की कुछ गीत व ढालें अपूर्ण मिले हैं। उनकी पूरी कृतियाँ नहीं मिल पायी हैं । यदि कहीं प्राप्त हों तो हमें सूचित किया जाय । १ सती पदमण सरस्वती नमस्कार कर कवि पदमणी सती का गुण गाता है। नागोर (नगीन) में श्री पूज पधारे, रतलन, पदमण और करमेती तीनों वन्दनार्थ चली। बीकानेर की बाट में झीणी खेह उड़ती है, कपड़े मैले और देह निर्मल होती है । तीन प्रदक्षिणा से गुरु वन्दन किया। सासू ने पदमण से कहा-बहु, हमारे घर में रहो, आठम चौदस उपवास करो, गरम पानी पीओ, अपना धर्म करो। रतलन ने कहा-तुम्हारा घर मिथ्यात्वी है, तुम्हें संताप होगा। सती ससुराल गई, सासू ने घर का भार सौंपा। सासू ने कहा---पुत्र को खेलाना। पदमण ने कहा-मेरे पुत्र होने के भ्रम में न रहना। सती को सात तालों में बन्द कर दिया। सासजी पटसाल में और ससुर मालीये में सोया था। नेतसी भी मालीये में सोया था, सती पास में बैठी थी। बातचीत के दौरान नींद आ गई। देवता आकर खड़ा हुआ, कहा--तुम निश्चित हो गई हो, तुम्हारे लिए यही अवसर है, ऊपर से डाको । सती उठकर सात डागले डाक कर दीवाल फांद कर उपाश्रय जा पहुँची । शील के प्रसाद से न तो कुत्ता भोंका, न कोई रास्ते में मिला। दरवाजा खोलकर अन्दर भी दीपक जलाया। तीन घोड़ियाँ पलान कर बीकानेर पहुंचा दिया। भौजाइयाँ पाँव पड़ी। दो घड़ी पिछली रात में झिरमिर मेह बरसने पर नेतसी जगे, सती न देखकर सात डाग ले और लोहाडा की भीत, सौगंधिक की हाट व इधर-उधर सब जगह खोज की । न मिलने पर नेतसी को साह बापलराय ने कहा-कुपुत्र, तुम्हें धिक्कार है, सती घर से निकल गई, तुम्हारा घर का सूत्र भग्न हो गया। नेतसी ने शाह जीवराज के घर पत्र भेजा-सती आपके घर गई, मेरा क्या हवाल होगा? साह जीवराज ने पत्र भेजा-सती हमारे यहाँ आ गई। आप वैराग्य धारण करें। सती शिरोमणि पदमणल ने कलिकाल में नाम रखा [गाथा २५ प्रथम ऐतिहासिक काव्य संग्रह पृष्ठ २१६] २ हसतुजी सती वीरप्रभु ने ज्ञाता सूत्र में गुरु-गुरुणी का गुणगान करने से तीर्थंकर गोत्र उपार्जन होता यह बतलाया है । चन्दनबाला जैसी सती हस्तुजी धन्य है जिसने जिनेश्वर के ध्यान द्वारा आत्मा को उज्ज्वल किया । जोधा के राज्य में वोहरा विरमेचा बसते हैं अथवा हर जोर में जोधराजजी निवास करते हैं। उनकी स्त्री इन्दु के कोख से पुत्रीरत्न जन्मा, ज्योतिषियों ने हस्तुजी नामकरण किया। वयस्क होने पर बराबरी का सगपण देखकर झंवर मुंहता के यहाँ नागोर में उसका विवाह कर दिया। पति का आयुष्य पूर्ण हुआ, विशेष शोक संताप न कर शान्त रहे। गुरुणी वरजुजी जो सूत्र सिद्धान्त के ज्ञाता थे, उनके उपदेश से हस्तुजी को वैराग्य उत्पन्न हो गया। पीहर ससुरालवालों को समझा बुझा कर हस्तुजी दीक्षित हो गई। शास्त्राभ्यास और गुरुणीजी की बड़ी वैयावच्च की । वरजुजी महासती के स्वर्गवासी होने पर हस्तुजी उनके पट्ट पर विराजे। ये तपस्या खूब करती। विगय त्याग था, गुड़, खांड़, मिठाई, रसाल कुछ भी न लेकर ४२ दोषरहित आहार लेती । सतरे भेद संयम, नववाड युक्त ब्रह्मचर्य पालन करने वाली हस्तुजी महासती धन्यधन्य है । [इसकी २ ढाल हैं। पहली ढाल में गाथा १६ हैं और दूसरी ढाल में ५ गाथाएँ एक पत्र में आई हैं, अपूर्ण प्रति पत्र की है।] ३ सती अमराजी मारवाड के अराइ (?) नगर में नेबेसिंगजी की स्त्री गुलाबाई के यहाँ अमराजी का जन्म हुआ। आपका गोत्र आंचलीया था। सरपाचेवर (?) में रांकों के यहाँ विवाह हुआ। ससुर का नाम सोजी माहाजी (?) और पति का नाम थानसिंहजी था। सबके साथ अत्यन्त प्रीति थी। एक बार सरपाचेवर में महासती अजवांजी पधारे । अमराजी उनके उपदेश से वैराग्यवान होकर दीक्षा लेने के लिए सास-ससुर से आज्ञा मांगी। सास-ससुर ने घर में रहकर यावज्जीवन श्रावकव्रत पालते रहने का निर्देश किया पर संयम की उत्कट अभिलाषा थी, रांकों का बड़ा परिवार था, सब ने मना की। इसके बाद अमराजी अराइ अपने पीहर आई, आज्ञा मांगने पर माता-पिता व सभी आंचलिया परिवार ने चारित्र दिलाने से अस्वीकार किया, किसी का कथन न माना और किसनगढ़ पत्र भेजा। [पत्री अपूर्ण] चौथी ढाल अपूर्ण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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