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________________ शासन प्रभाविका अमर साधिकाएँ १५३ 00 फत्तूजी की शिष्या-परम्परा में महासती आनन्दकुंवरजी एक तेजस्वी साध्वी थीं। उनकी बाईस शिष्याएँ थीं जिनमें से कुछ साध्वियों के नाम प्राप्त हो सके हैं। महासती आनन्दकुंवरजी ने कब दीक्षा ली यह निश्चित संवत् नहीं मिल सका। उनका स्वर्गवास सं० १९८१ पौष शुक्ला १२ को जोधपुर में संथारे के साथ हुआ। महासती आनन्दकंवरजी के पास ही पं० नारायणचन्दजी महाराज की मातेश्वरी राजाजी ने और नारायणदासजी महाराज के शिष्य मुलतानमलजी महाराज की मातेश्वरी नेनूजी ने दीक्षा ग्रहण की थी। महासती राजाजी का स्वर्गवास सं० १९७८ वैशाख सुदी पूनम को जोधपुर में हुआ था। महासती राजाजी की एक शिष्या रूपजी हुई थीं जिन्हें थोकड़े साहित्य का अच्छा अभ्यास था। महासती आनन्दकुंवरजी की एक शिष्या महासती परतापाजी हुई जिनका वि० सं० १९८३ मृगशिर वदी ११ की स्वर्गवास हुआ था। महासती फूलकुंवरजी भी महासती आनन्दकुंवरजी की शिष्या थीं और उनकी सुशिष्या महासती झमकूजी थीं जिन्होंने अपनी पुत्री महासती कस्तूरीजी के साथ दीक्षा ग्रहण की थी। दोनों का जोधपुर में स्वर्गवास हुआ। महासती कस्तूराजी की एक शिष्या गवराजी थीं वे बहुत ही तपस्विनी थीं। उन्होंने अपने जीवन में पन्द्रह मासखमण किये थे, और भी अनेक छोटी-मोटी तपस्याएँ की थीं। उनका स्वर्गवास भी जोधपुर में हुआ। महासती आनन्दकुंवरजी की बभूताजी, पन्नाजी, धापूजी, और किसनाजी अनेक शिष्याएँ थीं। महासती किसनाजी की हरकूजी शिष्या हुईं। उनकी समदाजी शिष्या हुई और उनकी शिष्या पानाजी हैं। आपका जन्म जालौर में हुआ, पाणिग्रहण भी जालोर में हुआ। गढ़सिवाना में दीक्षा ग्रहण की और वर्तमान में कारणवशात् जालोर में विराजिता हैं। इस प्रकार महासती आनन्दकुंवरजी की परम्परा में वर्तमान में केवल एक साध्वीजी विद्यमान हैं। महासती फत्तुजी की शिष्या-परिवारों में महासती पन्नाजी हुई। उनकी शिष्या जसाजी हई। उनकी शिष्या सोनाजी हुई। उनकी भी शिष्याएँ हुईं, किन्तु उनके नाम स्मरण में नहीं हैं। ___ महासती जसाजी की नैनूजी एक प्रतिभासम्पन्न शिष्या थी। उनकी अनेक शिष्याएँ हुईं । महासती वीराजी, हीराजी, कंकूजी, आदि अनेक तेजस्वी साध्वियां हुईं। महासती कंकूजी की महासती हरकूजी, रामूजी, आदि शिष्याएँ हईं। महासती हरकूजी की महासती उमरावकुंवरजी, बक्सूजी (प्रेमकुंवरजी) विमलवतीजी आदि अनेक शिष्याएँ हईं। महासती उमरावकंवरजी की शकुनकुंवरजी उनकी शिष्या सत्यप्रभा और उनकी शिष्या चन्द्रप्रभा आदि हैं। और महासती विमलवतजी की दो शिष्याएँ महासती मदनकुंवरजी और महासती ज्ञानप्रभाजी। महासती फत्तूजी के शिष्या-परिवार में महासती चम्पाजी भी एक तेजस्वी सा वी थीं। उनकी ऊदाजी, बायाजी आदि अनेक शिष्याएँ हुई । वर्तमान में उनकी शिष्या परम्परा में कोई नहीं हैं। महासती फत्तुजी की शिष्या परम्परा में महासती दीपाजी, वल्लभकुंवरजी आदि अनेक विदुषी व सेवाभाविनी साध्वियां हुईं। उनकी परम्परा में सरलमूर्ति महासती सीताजी और श्री महासती गवराजी (उमरावकुंवरजी) आदि विद्यमान हैं। इस प्रकार आचार्यश्री अमरसिंहजी महाराज के समय से महासती भागाजी की जो साध्वी परम्परा चली उस परम्परा में आज तक ग्यारह सौ से भी अधिक साध्वियां हुई हैं। किन्तु इतिहास लेखन के प्रति उपेक्षा होने से उनके सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी प्राप्त है। इन सैकड़ों साध्वियों में बहुत-सी साध्वियां उत्कृष्ट तपस्विनियाँ रहीं। अनेकों साध्वियों का जीवनवत सेवा रहा। अनेकों साध्वियां बड़ी ही प्रभावशालिनी थीं। मैं चाहता था कि इन सभी के सम्बन्ध में व्यवस्थित एवं प्रामाणिक सामग्री प्रस्तुत ग्रन्थ में दूं। पर राजस्थान के भण्डार जहाँ इनके सम्बन्ध में प्रशस्तियों के आधार से या उनके सम्बन्ध में रचित कविताओं के आधार से सामग्री प्राप्त हो सकती थी, पर स्वर्ण भूमि के. जी. एफ. जैसे सुदूर दक्षिण प्रान्त में बैठकर सामग्री के अभाव में विशेष लिखना सम्भव नहीं था। तथापि प्रस्तुत प्रयास इतिहासप्रेमियों के लिए पथ-प्रदर्शक बनेगा इसी आशा के साथ मैं अपना लेख पूर्ण कर रहा हूँ। यदि भविष्य में विशेष प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध हुई तो इस पर विस्तार से लिखने का भाव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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