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________________ महास्थविर श्री ताराचन्दजी महाराज स्वामी विवेकानन्द ने कहा है-जीवन का रहस्य भोग में नहीं, त्याग में है । भोग मृत्यु है और त्याग जीवन है। सुकरात ने लिखा है-जीवन का उद्देश्य ईश्वर की भाँति होना चाहिए। ईश्वर का अनुसरण करते हुए आत्मा भी एक दिन ईश्वरतुल्य हो जायगी। श्रेष्ठ जीवन में ज्ञान और भावना, बुद्धि और सुख दोनों का सम्मिश्रण होता है । टालस्टाय ने लिखा- मानव का सच्चा जीवन तब प्रारम्भ होता है जब वह यह अनुभव करता है कि शारीरिक जीवन अस्थिर है और वह सन्तोष नहीं दे सकता । इस प्रकार जीवन के सम्बन्ध में चिन्तकों ने समय-समय पर विविध प्रकार के विचार व्यक्त किये हैं । एक महान् दार्शनिक से किसी जिज्ञासु ने पूछा- जीवन क्या है ? दार्शनिक ने गम्भीर चिन्तन के पश्चात् कहा— जीवन एक कला है, जो कुसंस्कारों को हटाकर सुसंस्कारों से संस्कृत किया जाता है । जीवन को संस्कारित बना के लिए चरित्र की आवश्यकता है। फ्रेडरिक सैण्डर्स ने सत्य ही कहा है १२६ "Character is the governing element of life, and is above genius." चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्त्व है और वह प्रतिभा से उच्च है । बर्टल ने भी लिखा है "Character is a diamond that scratches every other stone." चरित्र एक ऐसा हीरा है जो हर किसी पत्थर को काट सकता है । चरित्र से ही व्यक्ति का व्यक्तित्व निखरता है और चरित्र ही व्यक्ति को अमर बनाता है। भारत के महान् अध्यात्मवादी दार्शनिकों ने व्यक्ति को क्षर और व्यक्तित्व को अक्षर कहा है। व्यक्ति वह है जो आकर लौट जाता है, बनकर बिगड़ जाता है; किन्तु व्यक्तित्व वह है जो आकर लौटता नहीं, बनकर बिगड़ता नहीं । व्यक्ति मरता है। किन्तु व्यक्तित्व अमर रहता है। महास्थविर परमव सद्गुरुवर्य श्री ताराचन्दजी महाराज व्यक्तिरूप से हम से पृथक् हो गये हैं किन्तु व्यक्तित्वरूप से वे आज भी जीवित हैं और भविष्य में भी सदा जीवित रहेंगे । महास्थविर श्री ताराचन्दजी महाराज का जन्म वीरभूमि मेवाड़ में हुआ। मेवाड़ बलिदानों की पवित्र भूमि है। सन्त महात्माओं की दिव्यभूमि है भक्त और कवियों की व्रजभूमि है; एक शब्द में कहूँ तो वह एक अद्भुत खान है जिसने अगणित रत्न पैदा किये। मेवाड की पहाड़ी और पथरीली धरती में अद्भुत तत्त्व भरे हैं। वहाँ की जलवायु में विशिष्ट ऊर्जा है। वहाँ के कण-कण में आग्नेय प्रेरणा है जिससे मानव अतीतकाल से ही राष्ट्र व धर्म के लिए बलिदान होता रहा है, परोपकार के लिए प्राणोत्सर्ग करता रहा है । मैंने अनुभव किया है यहाँ का मानव चट्टानों की भाँति दृढ़ निश्चयी है, अपने लक्ष्य और संकल्प के लिए परवाना बनकर प्राणोत्सर्ग करने के लिए भी तत्पर है। शंका और अविश्वास की आँधियाँ उसे भेद नहीं सकतीं। साथ ही वह अन्य के दुःख और पीड़ा को देखकर मोम की तरह पिघल जाता है। किसी की करुण कथा को सुनकर उसकी आँखें छलछलाती हैं और किसी क्षुधा से छटपटाते हुए याचक की गुहार सुनकर उसके मुँह का ग्रास हाथों में रुककर हाथ याचक की ओर बढ़ जाते हैं । मेवाड़ की भूमि जहाँ बीरभूमि है वहाँ धर्म भी है। यहाँ धर्म शौर्य का स्रोत रहा है, वीरत्व को जगानेवाला रहा है । यहाँ पर वीरों का यह नारा रहा है- "जो दृढ़ राखे धर्म को ताहि राखे करतार ।" यहाँ के वीर धार्मिक थे, दयालु थे । वे राष्ट्र, समाज और धर्म के लिए त्याग, बलिदान और समर्पण हँसते और मुस्कराते हुए, करने के लिए सदा कटिबद्ध थे । महास्थविर ताराचन्दजी महाराज के भक्ति और तपस्या का विलक्षण समन्वय था। गाथाएँ जब भी स्मरण आती हैं तब श्रद्धा से मस्तक नत हो जाता है । Jain Education International जीवन में मेवाड़ की संस्कृति, धर्म और परम्परा, शौर्य और औदार्य, उनके साहस, शौर्य, त्याग, तप, दृढ़ संकल्प, और अजेय आत्मबल की मेवाड़ की एक सुन्दर पहाड़ी पर बंबोरा ग्राम बसा हुआ है। वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अद्भुत है। गाँव के सन्निकट ही मेवाड़ की सबसे बड़ी झील जयसमन्द है जिसमें मीलों तक पानी भरा पड़ा है, जो जीवन की सरसता का प्रतीक है और दूसरी ओर विराट् मैदान है जो विस्तार की प्रेरणा दे रहा है। तीसरी ओर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ हैं जो जीवन को उन्नत बनाने का पावन संदेश दे रहे हैं। ऐसे पावन पुण्यस्थल में महास्थविर श्री ताराचन्दजी उत्पन्न हुए । उनके पिता का नाम शिवलालजी और माता का नाम ज्ञानकुँवर बहिन था। आश्विन शुक्ला चतुर्दशी के दिन वि० For Private & Personal Use Only **** payat Quilico www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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