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________________ श्रमण परम्परा में क्रियोद्वार क्रान्तिकारी वीर लोकाशाह - भगवान महावीर की शासन परम्परा चल रही थी। किन्तु दुष्काल आदि कारणों से श्रमणधर्म में शिथिलता आ गयी। जिनपूजा और जिनभक्ति के नाम पर बड़े-बड़े आडम्बर रचे जाने लगे । धमणवर्ग "सन्झायज्ञागरएस भिक्खु" के आदर्श को विस्मृत होकर लोकसंग्रह में छूट गया 'अशवार' और 'अणिकेय चारी' कहलाने वाला श्रमण चैत्यवासी और उपाश्रय उपधिधारी बन गया। राजाओं, बादशाहों, ठाकुरों तथा श्रेष्ठियों को यंत्र-मंत्र और तंत्र का चमत्कार बताकर राजकीय सम्मान और अधिकार प्राप्त करने का पिपासु बन गया । इस प्रकार धर्मगंगा में विकृति की काफी शैवाल जम गयी जिससे उसकी धारा शुष्क और क्षीण-सी होने लगी । श्रमणवर्ग शिथिलता विचार व चिन्तन के अभाव के कारण एक महान् क्रांति का जन्म हुआ । क्रांतिकारी लोकशाह के संबंध में जैसी प्रामाणिक सामग्री चाहिए वैसी उपलब्ध नहीं होती। यह पूर्ण सत्य है कि विरोधी लेखकों के द्वारा उनके जीवन को विकृत करने का अत्यधिक प्रयास किया गया है। मुनिश्री कल्याणविजयजी गणी के तथा मुनि कांतिसागरजी के संग्रह में मैंने ऐसी अनेक प्रतियाँ देखी थीं जिनमें उनके माता-पिता, जन्मस्थल, विचार, आदि के सम्बन्ध में विभिन्न उल्लेख हुए हैं । किन्तु यह सत्य है कि वे महान् क्रांतिकारी थे । वे केवल लिपिकार ही नहीं आगमों के मर्मज्ञ विद्वान भी थे। " लुंकाना सहिया अने कर्या अट्ठावन बोल, लुंकानी हुण्डी तैन्तीस बोल" नामक कृतियों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि उन्हें आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, दशायुतस्कंध, भगवती, ज्ञाताधर्मकयांग राजप्रातीय, अनुयोगद्वार नन्दीसूत्र शाताधर्मकथांग की टीका, उत्तराध्ययन, औपपातिकसूत्र, जीवाभिगम, उपासकदशा, प्रश्नव्याकरण, दशवेकालिकसूत्र प्रज्ञापना, आचारांगनियुक्ति और आचारांगवृत्ति, विपाक, उत्तराध्ययन चूर्णि तथा वृत्ति, आवश्यकनिर्युक्ति, बृहत्कल्प वृत्ति तथा चूर्णि और निशीथ चूर्णि आदि का गंभीर ज्ञान था । उन्होंने उनके प्रमाण उपस्थित किये हैं जो उनके आगमों के गंभीर अध्ययन का स्पष्ट प्रतीक है। उन्हें आगमों का गहरा ज्ञान था और जब उन्होंने तत्कालीन साधु समाज की आगमविरुद्ध आचार संहिता देखी तो वे चौंक पड़े। भगवान महावीर ने श्रमण के लिए जहाँ एक फूल की पंखुड़ी को भी छूने का भी निषेध किया, एक [ टिप्पण शेष पृष्ठ ८२ का ] २३ (क ) ऋषिमंडल प्रकरश श्लो० २४, पृ १९३ । (ख) उपदेशमाला सटीक पत्र २०८ । (ग) परिशिष्ट पर्व १२ / ५२ / २७४ । २४ भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति. पृ. ७३ ॥ २५ आवश्यक नियुक्ति ३६५ से ३७७ (ख) विशेषावश्यक भाष्य २२८४ से २२६५ तक आवश्यक निर्युक्ति ७६२ (ख) विशेषावश्यक भाष्य २२७६ 1 २६ २७ नंदि चूणि पृ. ८ २८ वीर निर्वाण संवत् और काल गणना - कल्याणविजय पृ० १०४ Jain Education International २६ भगवती सूत्र १०/९/ ६७७ । ३० आगम अष्टोत्तरी ७१: देवड्ढिखमासमणजा, परं परं भावओ वियाणेमि । सिढिलायारे ठविया, दव्वेण परंपरा बहुहा || ३१ देखिए जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा ग्रंथ लेखक - देवेन्द्र मुनि पृ. । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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