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________________ ++ जैन शिक्षा पद्धति का इस दृष्टि से विश्लेषणात्मक अध्ययन करने का अभी तक विशेष प्रयत्न नहीं हुआ । ऊपर जो विवरण दिया गया है उसमें जैन स्रोतों का तो उपयोग हुआ है किन्तु वह अनेक दृष्टियों से अपूर्ण और कई दृष्टियों से भ्रामक भी है। अपूर्ण इस कारण से क्योंकि विपुल जैन वाङ्मय में से अत्यन्त सीमित ग्रन्थों के आधार पर ही ये अध्ययन प्रस्तुत किये गये हैं। भ्रामक इसलिए कि नाम तो 'जैन सिस्टम आफ एजुकेशन' दिया गया किन्तु सिस्टम के विश्लेषण का प्रयत्न नहीं किया गया प्रत्युत आधुनिक पाश्चात्य पद्धति के बँधे बँधाए सांचे में जैन वाङ्मय में उपलब्ध सामग्री को ढाल कर उसे जो जामा पहनाया गया है वह न तो जैन शिक्षा पद्धति है, न ही वैदिक या बोद्ध शिक्षा पद्धति । वास्तव में वह इन सबका मिला जुला घोल है। जैन शिक्षा पद्धति का प्राचीन काल से क्रमिक विकास हुआ है। प्रारम्भिक चरण में जब भारतीय चिन्तन निश्रेयस् या मोक्ष को केन्द्रबिन्दु मान कर चल रहा था उस समय जैन शिक्षा पद्धति का जो स्वरूप था वह आगे चलकर देश और काल के अनुरूप विकसित हुआ । जैन शिक्षा-पद्धति तीर्थंकरों से गणधर तथा गणधरों से आचार्य परम्परा द्वारा शिक्षा की जो स्रोतस्विनी प्रवाहित हुई उसे मन्दिर वास्तु का विकास होने के साथ-साथ नया स्वरूप मिला । भट्टारक व यती परम्परा तक पहुँचते-पहुँचते इसका स्वरूप और अधिक बदल चुका था । प्राचीन भारत में शिक्षा जैन शिक्षा पद्धति का जो स्वरूप साहित्य में उपलब्ध होता है उसका विश्लेषण करने के पूर्व संक्षेप में वैदिक शिक्षा पद्धति को जान लेना आवश्यक है जिससे दोनों पद्धतियों के अन्तर को स्पष्ट रूप से समझा जा सके । डा० राधाकुमुद मुकर्जी ने अपनी पुस्तक 'एजुकेशन इन एन्शियेष्ट इण्डिया' में लिखा है- "भारत में शिक्षा तथा विज्ञान की खोज केवल ज्ञान प्राप्त करने के लिए ही नहीं हुई, अपितु वे 'धर्म' के मार्ग पर चल कर मोक्ष प्राप्त करने का एक क्रमिक प्रयास माने गये । मोक्ष ही जीवन का चरम विकास था। यही कारण है कि जीवन की सम्पूर्ण बहुमुखी क्रियाएँ धर्म के मार्ग पर चल कर ही अपने एकमात्र गन्तव्य 'मोक्ष' की ओर अग्रसर हुई । " ૪ यह कथन सभी प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धतियों के सम्बन्ध में समान रूप से लागू होता है, किन्तु शिक्षा की जो पद्धतियाँ थीं, उनमें विभिन्नता थी । वैदिक काल में शिक्षा का केन्द्रबिन्दु ऋषियों के आश्रम थे । वे आवासीय विद्यालय और विश्वविद्यालयों की तरह थे। आश्रम ग्राम और नगरों से दूर अरण्य में होते थे। आवास और अध्ययन की सम्पूर्ण व्यवस्था वहाँ हो जाती थी। आवास और भोजन समस्या न थी । अरण्य ही जीवन की अधिकांश आवश्यकताएँ पूरी कर देते थे । पर्णकुटी उनके छात्रावास थे, नीवार, धान्य, कन्दमूल, फल, पुष्प और पत्र भोजन के मुख्य अंग थे । शिक्षार्थी वहाँ जाकर रहता था और ऋषियों से शिक्षा प्राप्त करता था। ऋषि ही उस समग्र शिष्य के कुलगुरु एवं कुलपति भी होते थे, उनका संकेत ही निर्देश था। कुल ऋषि द्रष्टा होते थे । वे आत्मसाक्षात्कार करते थे, अध्ययन नहीं। ऋषि प्रयोक्ता था, अध्येता नहीं । शिक्षा का माध्यम उपदेश था। गुरु उपदेष्टा था, वह मात्र अध्यापक नहीं था। शिक्षा का विषय सम्पूर्ण जीव और जगत था । उपदेश को श्रोत्र (कान) के माध्यम से स्मृति पट पर अंकित कर लिया जाता था इसलिए वे ज्ञानकोश श्रुति थे, पुस्तक नहीं थे। जिज्ञासु व्यक्ति विद्यार्थी था । कभी जिज्ञासाएँ उपदेश का क्रम बनतीं, कभी ऋषि का आत्म-साक्षात्कार । जिज्ञासा एक जगह तृप्त न होती तो विद्यार्थी यायावर होकर निकल पड़ता और ऋषियों के ठौर-ठौर जाकर उनसे अपनी जिज्ञासाओं के समाधान माँगता । वेद में एक सूत्र है "एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति ।” जैनधर्म में देव, शास्त्र और गुरु का उपाध्याय और साधु की गणना की जाती है। जीव और जगत की जिज्ञासाएँ लेकर छात्र अनेक ऋषियों के पास गया। उनके समाधान सुने । लौटने पर किसी ने पूछ लिया-क्या समझे ? तो उसके ओठों पर ये शब्द फूट पड़े- "एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति" । जैन शिक्षा पद्धति की विशेषताएं यद्यपि दोनों का चरम उद्देश्य मोक्ष प्राप्त जैन शिक्षा पद्धति वैदिक शिक्षा पद्धति से कई बातों में भिन्न है । करना रहा है किन्तु उस उद्देश्य को प्राप्त करने के विषय में जो पूर्वकालीन सोपान रहे हैं, वे भिन्न हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only समान महत्त्व है । पाँच परमेष्ठियों में अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, अरिहन्त और सिद्ध को परमगुरु माना गया है क्योंकि वे सर्वज्ञ, सर्वदेशी www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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