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________________ मराठी जैन साहित्य ६७६ कारंजा (अकोला जिला) में सन् १५०० के लगभग सेनगण और बलात्कारगण के भट्टारकों के पीठ स्थापित हुए जिनकी परम्परा बीसवीं सदी तक चलती रही। दोनों के शिष्यवर्ग में कई मराठी लेखक हुए जिनकी तालिकाएं आगे दी जाती हैं (मराठी रचनाओं के नाम कोष्ठकों में हैं)। सेनगण के भट्टारक माणिकसेन (सन् १५४०) कुछ पीढियों के बाद समन्तभद्र नागो आया (यशोधरचरित्र) (स्थान-अकोट, अकोला जिला) छत्रसेन (आदीश्वर भवान्तर) (सन् १७०३) (स्थान-कागल,) (कोल्हापुर जिला) सोयरा (कर्माष्टमी कथा) (सन् १७४६) (स्थान-देउलगाव,) (बुलढाणा जिला) नरेन्द्रसेन शान्तिसेन सिद्धसेन तानू पंडित (कुछ आरतियां) यमासा (रविवारव्रत कथा) (सन् १७५१) (स्थान-वासिम, अकोला जिला) लक्ष्मीसेन रत्नकोति (उपदेशरत्नमाला) राघव रतन (सन् १८१३ स्थान-अमरावती) (स्फुट रचनाएँ) (गुरु आरती) उपर्युक्त रचनाओं में नागो आया और सोयरा की कृतियां ओवी छन्द में तथा शेष विविध वृत्तों में हैं। सोयरा ने अपनी आधारभूत रचना कन्नड़ भाषा में होने की सूचना दी है। छत्रसेन की कुछ संस्कृत और हिन्दी रचनाएँ भी मिलती हैं। रत्नकीर्ति की उपदेशरत्नमाला सकलभूषण की संस्कृत रचना पर आधारित है। इन्होंने नेमिदत्त की संस्कृत रचना पर आधारित आराधनाकथाकोष का लेखन शुरू किया था। इसे उनके शिष्य चन्द्रकीर्ति ने पूर्ण किया। कारंजा के बलात्कारगण की परम्परा के लेखकों की तालिका इस प्रकार है भट्टारक धर्मभूषण (सन् १५४१) देवेन्द्रकीति गुणनन्दि (यशोधरचरित्र) (स्थान-मोरंबपुर, वर्तमान में इसकी पहचान नहीं हुई है) कुमुदचन्द्र अजितकीर्ति विशालकीति (धर्म परीक्षा) धर्मचन्द्र अभयकीर्ति (अनन्तव्रत कथा) (सन् १६१६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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