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________________ जैन रामकथा की पौराणिक और दार्शनिक पृष्ठभूमि ६७५ . --00-0000000000mmsmmmmonsernmmmmm00000000000mmmmmmmmun++++++ भेद हैं । वस्तुतः अपनी सत्ता की अनुभूति या आत्मचेतना ही 'दर्शन' कहलाती है । तत्त्वरूप अर्थों के श्रद्धान को तत्त्वार्थ श्रद्धान कहते हैं और इसी का नाम 'सम्यग्दर्शन' है। जैनदर्शन के अनुसार 'सम्यग्दर्शन' मोक्ष-प्राप्ति के त्रिविध साधनों में से एक है-वह आत्मा का गुण है। उसके उदित होने पर आत्मा में प्रशम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा आदि भाव प्रकट होते हैं। जैन रामायणों में बाली, राम तथा मुनियों द्वारा सम्यग्दर्शन के उपार्जन का उल्लेख मिलता है। (झ) ज्ञान : जैन शास्त्रों के अनुसार जीव के उपयोग लक्षण के भेदों में से बाह्य पदार्थों को अवगत करने की शक्ति का नाम ज्ञान है । साधक में ज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म से आच्छन्न रहता है और साधक विशिष्ट साधना द्वारा उस कर्म का क्षय करते हुए ज्ञान को प्राप्त करता है । मोक्ष-प्राप्ति के लिए सम्यक्ज्ञान आवश्यक है। जिसमें भूत, वर्तमान और भविष्यत् काल के विषयभूत अनन्त गुप्त-पर्यायों से मुक्त पदार्थ यथार्थ रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। उसे सम्यक्ज्ञान कहते हैं । ज्ञान के अनेक भेद बतलाए जाते हैं। यहाँ रामकथा के सन्दर्भ में उनमें से केवलज्ञान का उल्लेख करना पर्याप्त होगा। त्रिलोक और त्रिकाल के समस्त पदार्थों को हस्तामलकवत् प्रत्यक्ष जानने को केवलज्ञान कहते हैं । ज्ञानावरणीय आदि चारों घातिकर्मों का नाश करने से साधक को केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है । तब वह साधक 'केवली' कहलाता है । जैन रामकथा में बाली, राम आदि के केवली हो जाने का उल्लेख मिलता है । इसी के बल पर मुनि राम ने दशरथ, मामण्डल, लवण, अंकुश, लक्ष्मण आदि के अन्यान्य भवों का वर्णन किया। केवलज्ञान से युक्त आत्मा परमात्मा हो जाता है और उसके उत्पन्न हो जाने के अवसर पर ज्ञानकल्याण उत्सव मानने के लिए इन्द्र आदि देव उपस्थित हैं। (E) साधना-पक्ष (क) चारित्र : जैन शास्त्रों के अनुसार मोक्ष-प्राप्ति के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यज्ञान और सम्यक्चारित्र अत्यन्त आवश्यक हैं । दर्शन और ज्ञान को उपलब्धि के लिए चारित्र सम्बन्धी साधनात्मक पक्ष नींव के बराबर है। हिंसा, अनृत, चौर्य, कुशील और परिग्रह-इन पाँच पापों का त्याग करने और पर-पदार्थों में आसक्ति, राग, द्वेष न रखते हुए उदासीनता या आनसक्ति अनुभव करने को चारित्र कहते हैं । पाँच पापों का स्थूलरूप से त्याग करने को देशचारित्र कहते हैं। देशचारित्र का धारक व्यक्ति श्रावक कहलाता है । श्रावक के पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षावत नामक बारह व्रत बताए जाते हैं । पंच पापों का पूर्णतः त्याग करने को महाव्रत कहते हैं-यही सकल चारित्र है और यह मुनिधर्म का अनिवार्य अंग है। जैन रामकथात्मक ग्रन्थों में अनेक स्थलों पर उपर्युक्त व्रतों और उनके फलों का उल्लेख मिलता है । इसके अतिरिक्त हम यह कह सकते हैं कि रामकथा के पात्रों के चारित्रिक गठन का परीक्षण इस सन्दर्भ में किया जा सकता है । उदाहरण के लिए, राम हिंसा, अचौर्य, अनृत आदि पापों से मुक्त हैं। इसलिए वे सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं। लक्ष्मण के हाथों हिंसा होती है, अतः वह नरक में जाता है । दूसरी ओर रावण हिंसाचार करता है, सीता का अपहरण करता है, असत्य का आश्रय करके सीता, राम आदि को धोखा देने का यत्न करता है, परस्त्री के प्रति उसे आसक्ति है, धनादि का परिग्रह करता है। इसलिए अन्य उत्तम गुणों के होते हुए भी उसका अधःपतन हो जाता है। राम से अहिंसा व्रत का निर्वाह कराना है, संभवतः इसलिए रावण, खर-दूषण, आदि के वध का उत्तरदायित्व जैन रामकथाकारों ने लक्ष्मण पर छोड़ दिया। शिक्षाव्रतों के अन्तर्गत जिन-वंदना, उपवास, आहारदान और संल्लेखना नामक व्रत आते हैं। स्वयम्भु आदि कवियों ने इनका विवेचन किया है। (ख) भक्ति : साधना सम्बन्धी आचारपक्ष में जैन-शास्त्र भक्ति का महत्वपूर्ण स्थान मानते हैं । जीव को अपने कल्याण के लिए जिनेन्द्र के प्रति श्रद्धापूर्वक भक्तिभाव रखना आवश्यक है। जिनेन्द्र के अतिरिक्त किसी अन्य के प्रति नतमस्तक न होने या किसी को प्रणाम न करने की प्रतिज्ञा करने वाले व्यक्ति जैन रामकथा में मिलते हैं। ऐसी प्रतिज्ञा के कारण बाली को रावण का सामना करना पड़ा, तथा वज्रकर्ण को संकट झेलने पड़े। जैन-शास्त्रों के अनुसार भक्ति के निम्नलिखित अंग माने जाते हैंपूजा-विधान, स्तुति-स्तोत्र, संस्तवन, वंदन, विनय, मंगल, महोत्सव । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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