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________________ जैन भूगोल पर एक दृष्टिपात ६३३ . रेवती अश्विनी १३.४ भरणी २०१० २०१० १००५ २०१० ३०१५ कृत्तिका रोहिणी मृगशीर्ष १३.४ २०.१ १३.४ २०१० दक्षिणायन प्रारम्भ १४ आर्द्रा पुनर्वसु पुष्य १००५ ३०१५ २०.१ ६६० दक्षिणायन प्रारंभ ८.८ or १३.४ १३.४ २०.१ १३.४ Morr पुष्य आश्लेषा मघा पूर्वाफाल्गुनी उत्तराफाल्गुनी हस्त चित्रा स्वाती विशाखा अनुराधा ज्येष्ठा मूल १३२० १००५ २०१० २०१० ३०१५ २०१० २०१० १००५ ३०१५ २०१० १००५ २०१० १३.४ २०.१ १३.४ ६.७ १३.४ or or or उत्तरायण प्रारम्भ पूर्वाषाढ़ा उत्तराषाढ़ा २०१० ३०१५ १३.४ २०.१ १३ जैन भूगोल के अनुसार चन्द्र के साथ नक्षत्र प्रतिदिन ६७४३०=२०१० परिधिखंड सह-मन करते हैं। इस हिसाब से जिन नक्षत्रों के १००५ परिधि खंड हैं, उनको १००५:२०१०=३ दिन लगेगा, २०१० परिधिखंड नक्षत्रों को २०१० २०१०=१ दिन लगेगा, ३०१५ परिधिखंड नक्षत्रों को ३०१५ : २०१०=१३ दिन लगेगा, अभिजित नक्षत्र को ६३०२४१०=३ दिन लगेगा और उत्तरायण में पुष्य नक्षत्र को ६६०:२० ६७ तथा दक्षिणायन में पुष्य नक्षत्र को १३२०२०१० गमन काल कम-से-कम ५२ घड़ी ४२ पल अर्थात् २६ मुहूर्त होता है । अभिजित नक्षत्र को नहीं माना है। दिन लगेगा । भारतीय पंचांगों के अनुसार चन्द्र-नक्षत्र सहमुहूर्त तथा अधिक से अधिक ६७ घड़ी ४४ पल अर्थात् ३४ राहू-नक्षत्र सहगमन प्रतिदिन १.३० १२ १ रिधिखंड होता है । इस हिसाब से १००५ परिधिखंड नक्षत्रों को १००५: ३०५= ३३ दिन, २०१० परिधिखंड नक्षत्रों को २०१० ३०१५ परिधिखंड नक्षत्रों को ३०१५ : ३०५=१६४ दिन, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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