SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 636
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवृत्ति है । बिहारी, काश्मीरी, सिन्धी और कोंकड़ी के अतिरिक्त अन्य आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में भी यह हिन्दी में अकारान्त शब्दों को प्रायः व्यंजनान्त रूप में उच्चरित किया जाता है । १७ व्याकरणिक (१) विभक्ति रूपों की संख्या में कमी प्राकृत काल में ही विभक्ति रूपों की संख्या में कमी हो गयी थी। विभिन्न कारकों के लिए एक विभक्ति तथा एक कारक के लिए विभिन्न विभक्तियों का प्रयोग होने लगा था । एक ओर कर्म, करण, अपादान तथा अधिकरण के लिए षष्ठी विभक्ति का तथा कर्म एवं करण के लिए सप्तमी विभक्ति का तो दूसरी ओर अपादान के लिए तृतीया तथा सप्तमी विभक्तियों का प्रयोग मिलता है ।" अपभ्रंश में विभक्ति रूपों की संख्या में और कमी हो गयी । कर्ता-कर्म-सम्बोधन के लिए समान विभक्तियों का प्रयोग आरम्भ हो गया । इसीप्रकार एक ओर करण अधिकरण के लिए तो दूसरी ओर सम्प्रदान-सम्बन्ध के लिए समान विभक्तियों का प्रयोग होने लगा। उदाहरणार्थ, अपभ्रंश के विभक्ति रूपों को इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है : कर्ता-कर्म-सम्बोधन करण - अधिकरण प्राकृत एवं अपभ्रंश का आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं पर प्रभाव ५६१ सम्प्रदान-सम्बन्ध Jain Education International अपादान 1 पुल्लिंग - ए, एं - एण, - इण - इं न्हो एकवचन --अ, आ, उ, ओ एकवचन स्त्रीलिंग - आसु -स्स हो, हे इ न -हि पुल्लिंग -अ, आ For Private & Personal Use Only बहुवचन पुल्लिंग - हि -रहि न्हं नह है, नह I आई -F आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में विभक्ति रूपों की संख्या में क्रमशः ह्रास हुआ है। जिन भाषाओं की संश्लिष्ट प्रकृति अभी भी विद्यमान है उनमें विभक्ति रूपों की संख्या अभी भी अधिक है किन्तु जिन भाषाओं ने वियोगात्मकता की ओर तेजी से कदम बढ़ाया है उनमें विभक्ति प्रत्ययों की संख्या बहुत कम रह गयी है । इस दृष्टि से यदि हम मराठी एवं हिन्दी का अध्ययन करें तो स्थिति स्पष्ट हो जाती है । मराठी में संज्ञा शब्द के जहाँ अनेक वैयक्तिक रूप विद्यमान हैं- मुलास ( द्वितीया), मुलाने (तृतीया), मुलाला (चतुर्थी), मुलाहून (पंचमी), मुलाचा (षष्ठी), मुलात (सप्तमी ), मुला ( सम्बोधन) वहाँ दूसरी ओर हिन्दी में पुल्लिंग संज्ञा शब्दों में या तो केवल विकारी कारक बहुवचन के लिए अथवा अविकारी कारक बहुवचन, विकारी कारक एकवचन एवं विकारी कारक बहुवचन के लिए विभक्तियाँ लगती हैं। स्वीलिंग संज्ञा शब्दों में केवल अविकारी बहुवचन एवं विकारी बहुवचन के लिए विभक्तियां जुड़ती है, एकवचन में प्रातिपदिक ही प्रयुक्त होता है ।" (२) परसों का विकास अपभ्रंश में विभक्ति रूपों की कमी के कारण अर्थों में अस्पष्टता आने लगी होगी। कारकों के अर्थों को व्यक्त करने के लिए इसी कारण अपभ्रंश में शब्द के वैभक्तिक रूप के पश्चात् अलग से शब्दों अथवा शब्दांशों का प्रयोग आरम्भ हो गया । यद्यपि संस्कृत में भी 'रामस्य कृते' तथा प्राकृत में 'रामस्य केरम घरम्' जैसे प्रयोग मिल जाते हैं तथापि इतना निश्चित है कि अपभ्रंश में परसर्गों की सुनिश्चित रूप से स्थिति मिलती है। करण के लिए सहूँ, सउं, बहुवचन आह स्त्रीलिंग -अ, आ, स्त्रीलिंग -हि -हं www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy