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________________ ....................... ( ) " पर्वत में ऊँचाई है, गहराई नहीं है और समुद्र में गहराई है, ऊँचाई नहीं है किन्तु अलंघनीय होने के कारण ये दोनों ही लक्षण मनस्वी पुरुष में विद्यमान रहते हैं, वह पर्वत के समान ऊँचा और समुद्र के समान गहरा होता ।" आज जब मैं अपने अनुभव के दर्पण में पूज्य गुरुदेव श्री के बिम्ब का साक्षात्कार कर रहा हूँ तो मुझे इस सुभाषित की सार्थकता का बोध होता है । मेरे अनुभव के दर्पण में पूज्य गुरुदेव के तप, त्याग, साधना और संयम की भूमिका बहुत ही विशाल, प्रखर और रचनात्मक है । जैसे सागर की उत्ताल तरंगों की गणना असंभव है, वारिद की प्रत्येक बून्द का लेखा-जोखा सम्भव नहीं है, उसी प्रकार पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जीवन की प्रत्येक धारा का अवगाहन मेरे जैसे अल्पमति जिज्ञासु के लिए अत्यन्त दुष्कर हैं। मैं अपने अनुभव के दर्पण में जितने सन्दर्भों में उन्हें देखता हूँ वे उतने ही निराले, महान् और सबल साधक प्रतीत होते हैं । Jain Education International अनुभव के दर्पण में पूज्य गुरुदेव : भारतवर्ष तप, साधना, संस्कृति एवं दर्शन का आदि काल से प्रमुख केन्द्र रहा है । दर्शन, चिन्तन एवं मनन की अन्तःसलिलाओं ने भारतीय मानस को सदैव उर्वर और प्रकाश पूर्ण बनाया है । विभिन्न जातियों, सम्प्रदायों एवं मान्यताओं के गंभीर आलोड़न से भारतीय चेतना को एक समन्वयात्मक दृष्टि प्राप्त हुई है । प्रतिभा सम्पन्न ऋषियों एवं महान् आत्माओं ने इस देश में ऐसे चिरन्तन एवं सनातन सत्यों का उद्घाटन किया है कि जिनकी भूरिभूरि प्रशंसा पाश्चात्य विचारकों ने भी की है । अंग्रेज विद्वान विक्टर कोसिन ने लिखा है- "जब हम पूर्व की ओर और उसमें भी शिरोमणि स्वरूप भारत की साहि त्यिक एवं दार्शनिक कृतियों का अवलोकन करते हैं, तब हमें ऐसे अनेक गंभीर सत्यों का पता चलता है, जिनकी उन निष्कर्षो से तुलना करने पर, जहाँ पहुँच कर यूरोपीय प्रथम खण्ड श्रद्धार्चन २७ For Private & Personal Use Only जिनेन्द्र मुनि, काव्यतीर्थ प्रतिभा कभी कभी रुक गई है, हमें पूर्व के तत्त्वज्ञान के आगे घुटना टेक देना पड़ता है ।” चिन्तन की विराट क्रीड़ा स्थली एवं धर्म की पावन वसुन्धरा पर पूज्य गुरुदेव श्री का जन्म पवित्र ब्राह्मण वंश में हुआ। आप श्री ने व्यक्तित्व को नई गरिमा प्रदान की, जिसके कारण विद्वत् सन्त समाज में ख्याति एवं प्रतिष्ठा की उपलब्धि हुई । कहा है कि, "प्रतिभा अपना मार्ग स्वयं निर्धारित कर लेती है और अपना दीपक स्वयं ले चलती है " - " Genius finds its our road and Carries its own lamp." आप की प्रतिभा का प्रथम स्फुरण 'श्री अमरसूरि काव्यम्' के रूप में हुआ जो अपनी अन्तदृष्टि एवं शैली के लालित्य के कारण अत्यन्त सरस और उत्तम रचना मानी गई है । साहित्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी का चमत्कार सिद्ध कर देने के साथसाथ पूज्य गुरुदेव ने अपनी प्रतिभा का दूसरा आयाम वक्तृत्त्व - कला के रूप में प्रमाणित किया है और आपके सुमधुर तथा पाण्डित्य पूर्ण प्रवचनों की चुम्बकीय क्षमता से जन-मानस भली-भाँति परिचित हो चुका है। दक्षिण सुप्रसिद्ध सन्त तिरुवल्लुवर ने एक स्थल पर लिखा ऐशों का मृत्य जानने वाले पवित्र पुरुषो पहले अपने श्रोताओं की मानसिक स्थिति को समझ लो, फिर उपस्थित जन समूह की अवस्था के अनुसार अपना व्याख्यान देना आरम्भ करो ।" पूज्य गुरुदेव की प्रवचनशैली की यही विशेषता श्रोताओं को मन्त्र-मुग्ध तथा उत्प्रेरित करती रही है । के है प्रतिभा एवं पुरुषार्थ के मणि-कांचन संयोग से पूज्य गुरुदेव के निर्मल व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है। साहित्य तथा प्रवचनों के माध्यम से जन-समाज की सुषुप्त चेतना को उबुद्ध करते हुए गुरुदेव ने योग साधना की मन्दाकिनी को भी प्रवाहित किया है। जप-तप के प्रति प्रारम्भ से ही अनुराग होने के कारण आपकी साधना को निरन्तर नई www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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