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________________ १५ चम्पाए पालिए नाम, 'सावए' आसि वाणिओ । महावीरस्स भगवको सीसे सोउ महत्वणो ॥ १६ तयाणन्तरं च णं थूलगं मुसावायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए । २० उपासकदशा १, २३ उपासकदशा १, २६ उपासकदशा १, २७ रूवाणुवाए बहिया पोग्गल पक्खेवे" - उपासकदशा २८ विधिद्रव्यदातृपात्र विशेषात् । २६ अनुग्रहार्थ स्वस्वादानम्। १६ (क) तत्थणं सावत्थीए नयरीए बहवे संखप्पामोक्खा समणोवासगा परिवसन्ति (ख) समणोवासए जाए अभिगय जीवाजीवे उबलद्ध पुण्णपावे । १७ तएण से आणन्दे गाहावइ समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए तप्पढमाए थूलगं पाणाइवायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा । १८ जीव सुहुमथूला संकप्पा आरम्भ भवे दुविहा । सावरा-नवरा सविनला एवं निरविनला ॥ २१ उपासकदशा १, २४ वही, ३३ स्थानांग सू० ठा० ४ ३४ तिहि ठाणेहि समणोवासए महानिज्जरे महापयसा भव । श्रावकाचार एक परिशीलन ३८ भगवती श० १०८ ३६ भगवती सू० श० ११ उद्दे० १२ ३० उपासकदशा १, ३१ भारं णं वहमाणस्स चत्तारि आसासा पण्णत्ता । ३२ पारि समणोवासभा पण्णत्ता तंज हा अम्मापि समागे भाईसमाणे, मित्तसमाणे सबत्तिसमागे । Jain Education International -उत्त० अ० २१ -भग० सू० श० १२ उ० १ २२ उपासकदशा १, २५ वही ५५३ ३५ उपासकदशांग ३६ कवि णं मते पचना पन्ना ? गोयमा दुविहे पत्ते तं जहां सम्बमूलगुण पचनखाने व देसमूलगुण पच्चक्खाणे य || - भगवती सूत्र ३७ देवासुरनार किन्नर किंपुरिसनपव्यमहोरगाएहि देवगमेहिनिचाओ पाययणाओ अणतिक्कमणिज्जा णिग्गंथे पावयणे निस्संकिया निक्कंखिया, निव्वितिगिच्छा, लट्ठा गहियठ्ठा, पुच्छियट्ठा, अभिगट्टा, विणिच्छयट्ठा अट्ठमिजपेमाणुरागरत्ता अयमाउसो निग्गंथे पावयणे अट्ठ अयं परमट्ठ सेसे अणट्टे, उसियफलिहा, अदुवारा चितउरपरप्यवेसा बहू सीलम्बयगुणवेरमण-पञ्चकलाग पोसहोबवासेहि साउदसमुदिट्ट पुष्णमाशिषी परिपुष्ण पोसह सम्म अणुपालेमाणा" - भगवतीसूत्र श० २ ० २५ ---पुष्कर वाणी-०-०--- साँप बिल में अकेला रहता है, बिल में प्रवेश करते समय बिलकुल सीधा हो जाता है। केंचुली के साथ अनासक्त वृत्ति रखता है, उसे छोड़ देता है । अपने लक्ष्य ( भक्ष्य) पर दृष्टि टिकाए रखता है । For Private & Personal Use Only - - स्थानांगसूत्र, ठाणा ४ साधक को सांप से शिक्षा प्राप्त होती है । कहीं भी रहे, मन में एकाकी वृत्ति रखे, व्यवहार में सदा सरल और सीधा रहे। केंचुली की तरह देह को मिन समझकर उससे अनासक्त रहे और अपने लक्ष्य पर केन्द्रित रहे । - स्थानांग ४ - स्थानांग ३ RELA www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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