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________________ ४६२ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन पन्थ : पंचम खण्ड marmu m Ww+++++++++++HHHomema . + + + + + + +++++ +++ + + + ++ ++ भगवान ऋषभदेव-उस युग में ज्ञानी और विवेकी सज्जनों पर धूर्तजन आक्षेप करेंगे उन्हें पीटेंगे और नाना प्रकार से त्रास देंगे। जैन साधुओं को अन्य मतानुयायी अनेक प्रकार की यातनायें भी देंगे। (७) भरत-प्रेत नृत्य कर रहा था। भगवान ऋषभदेव-भविष्य में प्रेत आत्माओं की पूजा बढ़ेगी, जनता राक्षसी शक्ति की उपासक हो जायेगी। (८) भरत-तालाब का मध्य भाग तो सूखा पड़ा था, किन्तु उसके आसपास पानी भरा था। भगवान ऋषभदेव-तालाब संसार है । जिसका मध्य भाग संस्कृति और ज्ञान का केन्द्र आर्यावर्त है। एक समय ऐसा आयेगा जबकि यहां ज्ञान और संस्कृति क्षीण रहेगी। आस-पास के अन्य देश संस्कृति और ज्ञान से समृद्ध हो जायेंगे। (8) भरत-रत्नों का ढेर मिट्टी से आवृत था। भगवान ऋषभदेव-ज्ञान और भक्तिरूपी रत्न अज्ञान और अश्रद्धा की मिट्टी के नीचे दब जायेगा। साधुजन शुक्लध्यान को प्राप्त नहीं कर पायेंगे। (१०) भरत-एक कुत्त मौज से मिठाइयां उड़ा रहा था और लोग उसकी पूजा कर रहे थे। भगवान ऋषमदेव-उस युग में निम्न व्यक्ति मजे में रहेंगे, पूज्य माने जायेंगे और वे ही दर्शनीय होंगे। (११-१२) भरत-एक जवान बैल मेरे आगे चिल्लाता हुआ निकला। दो बैल कन्धे से कन्धा मिलाये चले जा रहे थे। भगवान ऋषभदेव-पंचम काल में युवक जैन मुनि होंगे और अनभिज्ञता के कारण बदनाम होंगे। धर्मप्रचार के लिए एकाकी भ्रमण का साहस नहीं कर सकेंगे। (१३) मरत-चन्द्रमा पर धुन्ध-सी छाई हुई थी। भगवान ऋषभदेव-चन्द्रमा संसारी आत्मा है । पंचमकाल में आत्मा अधिक कुलषित हो जायेगी। सद्भावनाएं क्षीण हो जायेंगी और तत्त्वज्ञान लुप्तप्रायः हो जायेगा। (१४) मरत-सूर्य मेघाच्छन्न दिखाई दिया। भगवान ऋषमदेव-उस समय में किसी को सर्वज्ञता प्राप्त नहीं होगी। (१५) भरत-छायाहीन एक सूखा पेड़ देखा। भगवान ऋषभदेव-धर्माचरण के अभाव में तृष्णा बढ़ेगी और उसके साथ ही अशान्ति भी बढ़ेगी। (१६) भरत-सूखे पत्तों का एक ढ़ेर देखा। भगवान ऋषभदेव-पंचम काल में औषधियां और जड़ी-बूटियां अपनी शक्ति (रस) खो बैठेंगी और रोगों की वृद्धि होगी। --(जिनसेन कृत महापुराण ४११६३-७६) यद्यपि ये स्वप्न चक्रवर्ती ने देखे थे, किन्तु इनका सम्बन्ध न तो उनके जीवन से जुड़ा है, और न प्रजा के जीवन से, किन्तु ये सभी स्वप्न आने वाले युग के सूचक माने गये हैं जिनका फल पंचम काल में होना बताया है। - कहा जाता है कि तथागत बुद्ध के समय में भी किसी एक राजा ने १६ स्वप्न देखे थे। वह स्वप्नों के विचित्र रूपों पर विचार करके चिन्तित हो उठा। प्रातः वह तथागत बुद्ध के पास गया और अपने स्वप्न सुनाये तो बुद्ध ने उनका इस प्रकार अर्थ किया ___ स्वप्न-(१) चार भयंकर बैल चारों दिशाओं से लड़ने आये । सैकड़ों व्यक्ति दर्शक रूप में खड़े थे वे बिना लड़े ही वापिस लौट गये। अर्थ-चारों ओर से उमड़ते-घुमड़ते बादल चढ़-चढ़कर आयेंगे । पिपासु लोग टकटकी लगाए निहारते रहेंगे। पर वे बिना बरसे ही लौट जायेंगे, क्योंकि लोगों में पापाचार फैला हुआ जो रहेगा। (२) छोटे-छोटे वृक्षों पर इतने फल-फूल लगे थे कि वे उनका मार भी नहीं सह पा रहे थे। अर्थ-आने वाले युग में छोटी-छोटी वय वाले व्यक्तियों की सन्तानों की बहुत वृद्धि होगी। उनका भार भी वहन करना उनके लिए दूभर होगा। (३) तीसरे स्वप्न में लातें खा-खाकर भी गऊ अपनी बच्छिया का पय पान कर रही थी। अर्थ-बूढ़ों को बच्चों का मुंहताज बनकर रहना पड़ेगा । उनका खट्टा-मीठा सब कुछ सहना होगा तभी वे उनका भरण-पोषण करेंगे। ०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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