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________________ स्वप्नशास्त्र : एक मीमांसा ४८५ AH H H + +++ ++ ++++++++++ ++ + + +++++ सूक्ष्म एवं स्थूल विचार तरंगों से मन आलोड़ित होने लगता है और वे विचार तरंगें-संकल्प-विकल्प अथवा विषयोन्मुखी वृत्तियाँ इतनी तीव्र होती हैं कि नींद आने पर भी वे शांत नहीं होतीं। बाहर से इन्द्रियाँ सो जाती हैं पर भीतर में अन्तर् वृत्तियों भटकती रहती है, दृष्ट-अदृष्ट-अथ त पूर्व विषयों का भी स्पर्श करती रहती हैं। वृत्तियों का यह भटकाव स्वप्न कहा जाता है । आधुनिक मनोविज्ञान के जनक डा. सिगमंड फ्रायड ने स्वप्न का अर्थ किया है-'दमित वासनाओं की अभिव्यक्ति ।' डॉ० फ्रायड ने 'इंटरप्रिटेशन आव ड्रीम्स' नामक अपने ग्रन्थ में स्वप्नों के संकेतों के अर्थ व प्रयोजन बताकर उनकी रचना को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। इनके कथनानुसार “स्वप्न व्यक्ति की उन इच्छाओं को सामान्य रूप से व्यक्त करता है जिसकी तृप्ति जागृत अवस्था में नहीं होती। समाज के मय, वस्तु के अभाव या वस्तु की अनुपलब्धि तथा संकोच आदि कारणों से जिन इच्छाओं को व्यक्ति पूरी नहीं कर सकता, वे इच्छाएं अनेक रूपान्तरों के साथ स्वप्न में व्यक्त होती है।" फ्रायड के अनुसार मन के तीन भाग हैं चेतन मन–जहाँ सभी इच्छाएं आकर तृप्ति लेती है और मनुष्य अपनी इच्छा-शक्ति से काम लेता है । अचेतन मन-मन का वह भाग है जहाँ उसकी सभी प्रकार की अतृप्त भोगेच्छा दमित होकर रहती हैं। अवचेतन मन-मन का तीसरा भाग है, जहाँ मनुष्य अपनी इच्छाओं पर विवेक की कैंची चलाता है। अनैतिक इच्छाओं की भर्त्सना भी करता है, और उत्तम इच्छाओं को प्रकट करता है। . फ्रायड ने स्वप्न के ये मुख्य चार प्रकार बताये हैं-संक्षेपण, विस्तारीकरण, भावांतरकरण तथा नाटकीकरण । जब बहुत बड़ा प्रसंग, अनुभव या स्मृति संक्षेप में ही स्वप्न में आती है, वह स्वप्न संक्षेपण है इसके विपरीत विस्तारीकरण में छोटा-सा भाव भी विस्तार के साथ पूरी रील की तरह सामने आ जाता है। भावांतरकरण में घटना का रूपान्तर हो जाता है, पात्र बदल जाते हैं पर मूल संस्कार नहीं बदलता। जैसे कोई व्यक्ति अपने पिता, बड़े भाई या अध्यापक से डरता है और स्वप्न में वह किसी राक्षस या बदमाश से अपने को लड़ते हुए, भयभीत होते हुए पाता है तो वह भय की भावना का रूपान्तरण है। क्योंकि प्रकट में वह उनके प्रति ऐसा भाव प्रकाशित करने में भी आत्म-ग्लानि अनुभव करता है। नाटकीकरण में इच्छा अनेकों प्रतीकों का सहारा लेकर पूरा एक नाटक ही रच डालती है और स्वप्न चेतना उन मार्मिक बातों को चित्र रूप में उपस्थित कर देती है जो मन के किसी गुप्त कोने में दबी पड़ी हैं। किंतु चार्ल्स युंग नामक स्वप्न विश्लेषक फ्रायड की तरह जड़वाद का पूर्ण कायल नहीं है। वह स्वप्न को सिर्फ पुराने अनुभव की प्रतिक्रिया ही नहीं मानता, किन्तु स्वप्न का मनुष्य के व्यक्तित्व-विकास तथा भावी जीवन के लिए भी बहुत अधिक महत्त्व मानता है। उसका कहना है-चेतना के सभी कार्य लक्ष्यपूर्ण होते हैं । स्वप्न भी इसी प्रकार का लक्ष्यपूर्ण कार्य है जिनके विश्लेषण से अपने भावी जीवन को सुखी, नीरोग व सुरक्षित रखा जा सकता है। फ्रायड और चार्ल्सयुग के स्वप्न विश्लेषण में मुख्य अन्तर यह है कि-फ्रायड के अनुसार अधिकतर स्वप्न मनुष्य की कामवासना से ही सम्बन्ध रखते हैं, जबकि युग के अनुसार-स्वप्नों का कारण मनुष्य के केवल वैयक्तिक अनुभव अथवा उसकी स्वार्थमयी इच्छाओं का दमन मात्र ही नहीं होता, वरन् उसके गम्भीरतम मन की आध्यात्मिक अनुभूतियां भी होती हैं। वास्तव में जीवन के भूतकालीन अनुभव तथा संस्कारों पर टिके स्वप्नों का विश्लेषण तो स्वप्न-शास्त्र का एक अंग मात्र है, जीवन में भविष्य सूचक या आदेशात्मक जो स्वप्न आते हैं, उनके सम्बन्ध में मनोविज्ञान आज भी प्राथमिक स्थिति में है। एक विकट प्रश्न यह है कि जो स्वप्न भविष्य-सूचक होते हैं, अथवा जो भगवान महावीर जैसे महापुरुषों ने देखे हैं जिनमें उनकी अपनी दमित भावनाओं की अभिव्यक्ति का कोई प्रश्न ही नहीं, उन स्वप्नों का क्या कारण है ? आधुनिक मनोविज्ञान अनेक खोजों के बावजूद इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाया है। इन स्वप्नों को संयोगमात्र कहकर भी टाला नहीं जा सकता, क्योंकि उनमें एक अभूतपूर्व सत्यता छिपी रहती है जिसके सैकड़ों उदाहरण प्रत्यक्ष जीवन में भी देखे जा सकते हैं अतः उन स्वप्नों का क्या कारण है ? इसे खोजने के लिए क्या साधन है ? आइए, जिस विषय पर मनोविज्ञान अभी मौन है, उसे प्राचीन जैन मनीषियों के चिन्तन के प्रकाश में देखें। स्वप्न के भेद प्रत्यक्ष जीवन में हम जो स्वप्न देखते हैं वे कई प्रकार के होते हैं : जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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