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________________ Jain Education International ३६२ कारण हैं । श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड क्रिस्टन बुल्फे के कथनानुसार आत्मा सूक्ष्म होती है और हमारे गुप्त कर्म ही हमारे वर्तमान जीवन के लेसिंग के विचारों में प्रत्येक आत्मा पूर्णता के लिए सचेष्ट है और उद्देश्य पूर्ति के लिए इस धरती पर उसे अनेक जन्म लेने पड़ते हैं । पिकटे और नोवालिस की दृष्टि में मृत्यु आत्माओं के जीवन प्रवाह में एक विश्राम स्थिति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । जीवन है कामना और कर्म उसके परिणाम हैं। जीवन और मृत्यु एक ही वस्तु हैं और इनमें से पार होती हुई आत्मा अमरता को प्राप्त करती है। गल ने कहा है कि सभी आत्माएँ पूर्णता की ओर बढ़ रही हैं तथा जीवन व मृत्यु उनकी अवस्थाएँ हैं । महान् दार्शनिक वैज्ञानिक लीपनिज ने लिखा है- प्रत्येक जीवित वस्तु अविनाशी है—उसके ह्रास तथा अन्तररावर्तन का नाम मृत्यु है और उसकी बुद्धि तथा विकास का नाम जीवन । मरने वाला प्राणी अपने शरीर यन्त्र का केवल एक अंश मात्र लेता है और विकास की उस तनु अवस्था अथवा उद्भव स्थिति में लोट जाता है, जिसमें जन्म के पूर्व था। पशुओं और मनुष्यों का उनके वर्तमान जीवन से पहले कोई अस्तित्व था और इस जीवन के बाद भी कोई अस्तित्व होगा, इस बात को स्वीकार करना ही होगा । पाश्चात्य दार्शनिकों की तरह आधुनिक काल के कवियों, लेखकों, आदि ने भी आत्माओं के देहान्तरवाद तथा पुनर्जन्म की धारणा को अभिव्यक्त किया है। पाश्चात्य दार्शनिक कवियों में एमसेन ड्राइटन, बर्डस, मेथ्यू अरनोल्ड, शैली ब्राउनिंग आदि के नाम प्रमुख हैं। ड्राइटन ने लिखा है कि इस अमर आत्मा का वध करने की सामर्थ्य मृत्यु में नहीं है । जब मृत्यु आत्मा के वर्तमान शरीर का वध करने चलती है तो आत्मा अपनी अक्षुण्ण शक्ति से नया आवास खोज निकालती है और जो दूसरे शरीर को जीवन व प्रकाश से भर देती है । एमर्सन ने लिखा है कि यदि मृत्यु यह सोचे कि वह आत्मा का विनाश कर रही है और आत्मा यह सोचे कि उसे नष्ट किया जा रहा है तो दोनों ही उस सूक्ष्म तत्त्वज्ञान से अनभिज्ञ है, जिसके अनुसार आत्मा स्थित रहती है और आवागमन के चक्र में घूमती है । प्राध्यापक हक्सले का कथन है - केवल बिना ठीक से सोचे-समझे निर्णय लेने वाले विचारक ही पुनर्जन्म सिद्धांत को मूर्खता की बात समझकर उसका विरोध करेंगे । विकासवाद के सिद्धांत की तरह देहान्तरवाद का सिद्धांत भी वास्तविक है। कवि टेनीसन ने अपनी प्रसिद्ध रचना 'टू वॉइस' में अपनी भावना व्यक्त की है कि यदि मेरे पिछले जन्म निम्न स्तर के रहे हैं और मेरे मस्तिष्क में इन जन्मों के अनुभव एकत्रित हो गये हैं तो भी मैं अपने दुर्भाग्य को विस्मृत कर सकता हूँ । इसका कारण यह है कि हम अपने जीवन के प्रारम्भिक वर्षों को भूल जाया करते हैं। पुरानी स्मृतियाँ हमारे कानों में नहीं गुंजती है। कट्टर नास्तिक जर्मन विद्वान नीट्शे ने भी अपने उत्तरार्ध जीवन में यह स्वीकार किया था कि जब तक मनुष्य कर्मबन्धन में पड़ा है तब तक एक नाम रूपात्मक देह का नाश होने पर कर्म के परिणामस्वरूप उसे इस सृष्टि में भिन्न-भिन्न नाम-रूपों का मिलना कभी नहीं छूटता है । दार्शनिक ल्यूमिंग का कहना है कि जब तक हर बार नया ज्ञान, नया अनुभव अर्जित करने की क्षमता मुझ में है, तब तक मैं पुनः पुनः क्यों न लौंटू ? क्या मैं एक बार इतना कुछ लेकर आता हूँ कि मुझे पुनः लौटने का कष्ट उठाने की कोई आवश्यकता ही न रहे । मरणोत्तर जीवन के सम्बन्ध में पाश्चात्य जगत के चितन का ऊपर संकेत किया गया है और वैज्ञानिकों ने अपने दृष्टिकोण से शोध करके जो परिणाम निकाले, उनसे वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भोगासक्त आत्मायें मरने के बाद बहुत कष्ट भोगती हैं। वे यहाँ तक अनुभव करने में अक्षम होती हैं कि वे मृत हो चुकी हैं, पूर्व शरीर के साथ सम्बन्ध नहीं रहा है । साधारणतया मरणोपरान्त वे निद्राच्छन्न अवस्था को प्राप्त होती हैं, परन्तु वे उसमें शांति से सो भी नहीं सकती है। भौतिक आसक्तियों के उनके पूर्व संस्कार उन्हें संसार में अपने चाहने वालों से मिलने के लिए आने को बाध्य करते हैं, परन्तु जब कोई उन्हें निमंत्रित करने वाला नहीं दिखता तो वे बहुत दुखी हो जाती हैं। अनेक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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