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________________ Marate ३६० श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्य खण्ड प्रारम्भिक काल में ईसाइयों के कुछ गुप्त सिद्धान्त थे, जिनमें पुनर्जन्म भी सम्मिलित था। पाल और ईसाई धर्मगुरुओं के लेखों में इसका संकेत है । ओरिजन में इसका स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है । ईसाई धर्म का एक सम्प्रदाय 'नास्टीसिज्म' इस सिद्धान्त को प्रकट रूप में मानता था। जिससे अन्य ईसाई सम्प्रदाय इसके अनुयायियों को कष्ट पहुँचाते थे। इसी प्रकार साइमेनिस्ट, वैसीलियन, वैलेन्टीनय, माशीनिस्ट तथा मैनीचियन आदि अन्य ईसाई सम्प्रदाय भी पुनर्जन्म को मानते थे । ईसा की छठी शताब्दी में चर्च की समिति ने कुछ सिद्धान्तों को मानना पाप घोषित कर दिया था, जिसमें पुनर्जन्म भी एक था और सम्राट जस्टीनियन ने राजाज्ञा द्वारा इनके मानने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। प्रतिबन्धित सम्प्रदायों की मान्यता थी कि शरीर पतन के पश्चात् जीवात्मा का न्याय-निर्णय भगवान ईश्वर गॉड-के समक्ष होता है तब वह स्वर्ग या नरक में भेजा जाता है । सुख-दुःख का अनुभव कराने वाला शरीर यद्यपि यहाँ पेटी में पड़ा रहता है, फिर भी जीव को इस शरीर के निमित्त से किये गये कर्मों के कारण सुख या दुखस्वर्ग या नरक भोगना पड़ता है। इस्लाम मत-जैसा कि ऊपर संकेत है कि इसे पुनर्जन्म का सिद्धान्त मान्य नहीं है । लेकिन कुरान शरीफ में ऐसी बहुत सी आयतें हैं, जिससे पुनर्जन्म की धारणा सिद्ध होती है। जैसे कुरान में उल्लेख है "अय इन्सान ! तुझे फिर अपने रब की तरफ जाना है । वही तेरा अल्लाह है । तुझे मेहनत और तकलीफ के साथ दरजे व दरजे चढ़कर उस तक पहुंचना है। हमने तुम्हें जमीन में से पैदा किया है और हम तुम्हें फिर उसी जमीन में भेज देंगे और उसी में से पैदा करेंगे फिर आखिर तक कर्मों पर पकड़ करने के लिए आखिरत (पुनर्जन्म) की जरूरत है और कर्मों पर पकड़ इन्साफ का तकाजा है। जिस प्रकार उसने तुम्हें अब पैदा किया है, वैसे ही तुम फिर पैदा किये जाओगे। पुनर्जन्म के बारे में इसी प्रकार की और भी आयतें कुरान में हैं। पुनर्जन्म मानने वालों के लिए कुरान में कहा गया है-'आखिरत न मानने से तमाम कार्य व्यर्थ हो जायेंगे (१४७) अन्तिम स्थान जहन्नम होगा (१०७) मनुष्य हैवान बन जाता है (१०।११)। इस्लाम मत का एक सम्प्रदाय सूफी मत कहलाता है । सूफी लोग आमतौर पर तना सुख (पुनर्जन्म) को मानते हैं। वे पुनर्जन्म को इतरका या रिजन भी कहते हैं। उन्होंने पुनर्जन्म के बारे में काफी सूक्ष्मता से विचार किया है । वे आत्मा को मनुष्य शरीर में पुनः उत्पन्न होने को नस्ख (मनुष्य गति), पशु शरीर में फिर पैदा होने को मस्ख (तिर्यंच गति), वनस्पति में पुनः पैदा होने को फस्ख (वनस्पतिकाय) और मिट्टी, पत्थर आदि में पुनः पैदा होने के रस्टन (पृथ्वीकाय) कहते हैं। जिन सूफी विद्वानों सन्तों ने पुनर्जन्म को माना है, उनमें अहमद बिन साबित, अहमद विन यवूस, अक मुस्लिम खुराशानी और शैखुल इशशख के नाम मुख्य हैं । इन सभी ने कुरान की आयतों और उनमें भी सुरतुल बरक आयत ६२ से १२ और सुरतुल भागदा आयत ५५ पर अपनी युक्तियों को केन्द्रित किया है । इसका फलितार्थ यह है कि इस्लाम धर्म में भी तनासुख (पुनर्जन्म) के सम्बन्ध में काफी विचार किया गया है। इस्लाम के प्रचार के पूर्व अरब निवासी पुनर्जन्म के सिद्धान्त में विश्वास रखते थे । वीकर लिखते हैं कि अरब दार्शनिकों को यह सिद्धान्त बहुत प्रिय था और कई मुस्लिम विद्वानों की लिखी पुस्तकों में अब भी इसके उल्लेख देखने में आते हैं। यहूदी मत—कब्बाला में लिखा है कि पत्थर पौधा हो जाता है, पौधा जानवर हो जाता है, जानवर आदमी बन जाता है। आदमी रूह (आत्मा) और रूह खुदा हो जाती हैं। एक और यहूदी ग्रन्थ 'जुहर' में कहा है-उसे बारबार जन्म लेने की अजमाइशों और नये-नये जन्मों में से निकालना है । सभी रूहों को उसी अल्लाह में लौटकर मिल जाना है जिससे वे निकली हैं । लेकिन इस कार्य को करने के लिए सभी रूहों को अपने अन्दर कमाल पैदा करने होंगे। जिनके बीज उनके अन्दर छिपे हुए हैं। अगर यह बात एक जिन्दगी में पूरी नहीं होती है तो उन्हें फिर दूसरी जिन्दगी शुरु करनी होगी और फिर तीसरी, इसी प्रकार से आगे-आगे सिलसिला चलता रहेगा, जब तक कि वह इस काबिल न हो जाये कि फिर से अल्लाह में मिल सके। पारसी धर्म ग्रन्थ 'गाथा' में उल्लेख है कि जो आदमी नेक कार्य करके अल्लाह को खुश करता है, उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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