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________________ प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चन ७ . . . -- 000000000००००० 800०.००००.००४ अध्यात्म, शिक्षा और संस्कृति के पुरोधा 0000000000००० 0 पंडित मुनि श्री यशोविजय जी (इतिहास व कला मर्मज्ञ) मैंने पुष्कर मुनिजी का नाम कई बार सुना था । किन्तु मुझे मिलते रहे जिन्हें पढ़कर मेरे अन्तर्मानस में भी यह मिलने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था। सन् १९७० में मैं विचार-लहरियाँ उद्बुद्ध होती रही कि मैं भी इस प्रकार सायन (बम्बई) में था। प्रातःकाल मैं शौच से लौट रहा लिखू तो कितना अच्छा हो ! किन्तु मुझे अन्यान्य प्रवृत्तियों था और मुनिश्री जी अपने शिष्यों के साथ शौच के लिए के कारण समय ही नहीं मिल पाता। जा रहे थे । रास्ते में मिले । तब मुझे ज्ञात हुआ कि ये ही सन् १९७४ में भयंकर ऐक्सिडेंट होने के कारण मुझे पुष्कर मुनि जी हैं। वह प्रथम मुलाकात औपचारिक रूप नानावटी अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। मुनिश्री जी से ही रही। किन्तु उसके पश्चात् आगमप्रभाकर पुण्य अहमदाबाद का वर्षावास पूर्ण कर बम्बई पधारे। ज्योंही विजय जी महाराज, जो बालकेश्वर (बम्बई) में विराज उन्होंने सुना कि मैं हास्पिटल में हूँ त्योंही वे मुझसे मिलने रहे थे, मैं उनकी सेवा में पहुँचा । उधर मुनिश्री जी भी के लिए हास्पिटल में आये। और लम्बे समय तक वहाँ वहाँ पर पधारे। जब उन्होंने पुण्यविजयजी महाराज से बैठकर अनेक विषयों पर वार्तालाप किया। मैं आपके स्नेह आगम-रहस्यों पर चर्चाएँ की जिसे मैं सुनकर आनन्द- सौजन्ययुक्त व्यवहार को देखकर गद्गद हो गया। सन्त विभोर हो उठा । मुझे ऐसा लगा कि सीधे-सादे वेष में जीवन की यही सबसे महान् विशेषता है, कि उसका हृदय होने पर भी मुनिश्री जी गम्भीर विद्वान् हैं। उनकी विद्वत्ता विराट् हो, मन विशाल हो; नम्रता, सरलता, स्नेह और स्नेह ने मुझे आकर्षित किया। मुनिश्री के सुयोग्य सौजन्यता का साम्राज्य हो। शिष्य देवेन्द्र मुनि द्वारा विद्वत्तापूर्ण संपादित 'कल्पसूत्र' जब मैं ज्यों-ज्यों मुनिश्री जी के निकट सम्पर्क में आया गुजराती में प्रकाशित हुआ तब बम्बई महानगरी में एक त्यों-त्यों उनकी सरलता ने, स्नेह सद्भावना ने मुझे प्रभावित तहलका-सा मच गया । स्थानकवासी मुनिराज के द्वारा किया और उनके शिष्यों के साहित्य से भी मेरे मन में कल्पसूत्र का प्रकाशन और वह भी शोधदृष्टि से, इसे आपके प्रति सहज आकर्षण हुआ कि वस्तुतः आप महान देखकर मेरा मन-मयूर नाच उठा। मैंने उस पर अभिप्राय कलाकार हैं। भी दिया। कुछ ही समय में उस ग्रन्थ की दो आवृत्तियाँ उपाध्याय पुष्कर मुनिजी स्थानकवासी समाज के एक प्रकाशित हुई जो उसकी लोकप्रियता को प्रमाणित करती वरिष्ठ सन्त हैं। अध्यात्म, शिक्षा, साहित्य और संस्कृति है । मेरे द्वारा सम्पादित 'महावीर चित्र संपुट" ग्रन्थ को के पुरोधा हैं। समाज उनके श्री चरणों में अभिनन्दन ग्रन्थ भी जो उस समय अप्रकाशित था, उसके विवेचन आदि को समर्पित कर रहा है यह प्रमोद का विषय है। वे पूर्ण मैंने मुनिश्री को दिखाया । उन्होंने योग्य सूचन भी किया। स्वस्थ रहकर जैन धर्म की अत्यधिक प्रभावना करें यही तथा समय-समय पर देवेन्द्र मुनिजी के शोधप्रधान ग्रन्थ मेरी मंगल कामना है। SAR GeA GACAST Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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