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________________ ४ श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ प्रतिभा के पुंज C प्रसिद्धवक्ता मालयकेशरी श्री सौभाग्यमल जी महाराज O Jain Education International उपाध्याय राजस्थान केसरी अध्यात्मयोगी श्री पुष्कर मुनिजी महाराज स्थानकवासी जैन संघ के एक ज्योतिर्मान नक्षत्र हैं । उनके ओजस्वी व्यक्तित्व और तेजस्वी कृतित्व से समाज भलीभाँति परिचित है। आप विलक्षण प्रतिभा के धनी सन्त रत्न हैं । आप कुशल कवि, सफल लेखक, ओजस्वी वक्ता, उत्कृष्ट साधक और संगठन के जीते जागते सजग पुजारी हैं। श्रमण संघ के निर्माण में और उसके विकास में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । यों उनका सम्पूर्ण जीवन सद्गुणों की सौरभ से महक रहा है । उनमें विनय है, सरलता है और सहज स्नेह है। वे विद्वान् हैं पर विद्वत्ता का किचितमात्र भी अभिमान नहीं है। वे महान् ध्यानयोगी साधक हैं, पर साधना का जरा भी घमण्ड नहीं है । वे सफल प्रवक्ता हैं, पर किंचित्मात्र भी अहं नहीं है। उनके इस सद्गुण ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया और मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि श्री पुष्कर मुनि जी श्रमण संघ के गौरव हैं । श्री पुष्कर मुनि को मैंने बहुत ही सन्निकटता से देखा है, अनेकों बार लम्बे समय तक साथ में रहने का अवसर मिला है। बहुत वर्ष पूर्व सर्वप्रथम अजमेर में वृहद् साधु सम्मेलन के सुनहरे अवसर पर मैंने उनको देखा है, उसके पश्चात् सन् १९४६ में वे मुझे इन्दौर में मिले थे और सन् १९४७ में नासिक और इगतपुरी में मिलना हुआ । उसके पश्चात् सादड़ी, सोजत, ब्यावर, अजमेर, बम्बई, सिन्नर, नासिक आदि में साथ में रहने का अवसर मिला। साथ में रहने का आनन्द तभी आता है जब मन मिलता है । बिना मन के मिले तन का मिलना कोई महत्त्व नहीं रखता है। हम तन से ही नहीं किन्तु मन से मिले, दिल खोलकर मिले। उन्हें देखकर मेरा मन आनन्द से झूम उठता और मुझे देखकर उनका मन-मयूर नाच उठता । इस मिलन और सम्मिलन के अवसर पर अनेकों बार उनसे आगम, दर्शन, साहित्य, इतिहास, ध्यान और परम्परा पर गम्भीर चर्चाएँ हुईं। उन चर्चाओं में मैंने अनुभव किया कि पुष्कर मुनिजी जैन आगम साहित्य के गम्भीर ज्ञाता हैं, दर्शन साहित्य और इतिहास के तलस्पर्शी विद्वान है। जप और ध्यान के क्षेत्र में जो उन्होंने प्रगति की है वह अपूर्व है; सभी साधकों के लिए प्रेरणादायी है । आज आवश्यकता है श्रमण और श्रमणियों को इस दिशा में अत्यधिक प्रगति करने की । मुझे परम आल्हाद है कि दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के पावन प्रसंग पर एक शानदार अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित किया जा रहा है, करना ही चाहिए, क्योंकि जिसका जीवन गौरवमण्डित रहा है उसका अभिनन्दन करना समाज का कर्तव्य है । गुणी महापुरुषों का अभिनन्दन करने से सद्गुणों को प्रोत्साहन मिलता है। मेरी हार्दिक मंगल कामना और भावना है कि उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी पूर्ण स्वस्थ व प्रसन्न रहकर जैन धर्म की प्रबल प्रभावना करते रहें । विशेषताओं के धनी [] ज्योतिषाचार्य उपाध्याय श्री कस्तूरचन्दजी महाराज उपाध्याय पुष्कर मुनिजी के ओजस्वी व्यक्तित्व और कुमाल कार्य विधि से मैं केवल परिचित ही नहीं है अपितु बहुत ही सन्निकटता से मैंने उन्हें देखा है । कई बार उनसे मिलने का अवसर मिला है और साथ में रहने का भी मैंने अनुभव किया है कि वे स्वभाव से सरल हैं, मिलनसार हैं वे स्वयं संस्कृत- प्राकृत भाषाओं के प्रकाण्ड पण्डित हैं उन्होंने न्याय और दर्शनशास्त्र का भी गम्भीर अध्ययन किया है आगम और उसके व्याख्या - साहित्य को भी पढ़ा है तथापि उनमें गहरी जिज्ञासा है, जब भी वे मुझे मिले तब बहुत ही नम्रता से उन्होंने मेरे समक्ष ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि ज्योतिष चक्र के सम्बन्ध में अनेक जिज्ञासाएँ प्रस्तुत कीं, मैंने अपने अनुभव के आधार पर उन्हें बताया तो वे बहुत ही प्रसन्न हुए। मुझे ऐसा लगा कि विनय और तीव्र जिज्ञासा वृत्ति के कारण ही उन्होंने इतनी प्रगति की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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