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________________ जनदर्शन में मुक्ति : स्वरूप और प्रक्रिया ३२१ . marimmmmmmmmm.0000000000mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm करके भी जिस व्यक्ति को सत्, असत्, हित, अहित, ज्ञेय और उपादेय का विज्ञान-विशिष्ट ज्ञान नहीं है, वह व्यक्ति मोक्ष साधना क्या कर सकता है ? अतः मोक्ष साधना के लिए जीवादि तत्त्वों का विशिष्ट, विलक्षण एवं गम्भीर ज्ञान प्राप्त करना अत्यावश्यक है। ११. सम्यक्त्व-अनादि कालीन संसार प्रवाह में तरह-तरह के दु:खों का अनुभव करते-करते किसी योग्य आत्मा में ऐसी परिणाम शुद्धि हो जाती है जो इसके लिए अपूर्व ही होती है । इस परिणाम शुद्धि को अपूर्व-करण कहते हैं । इस अपूर्वकरण से राग-द्वेष की वह तीव्रता मिट जाती है जो तात्त्विक पक्षपात के लिए बाधक होती है । रागद्वेष की ऐसी तीव्रता मिटते ही आत्मा सत्य के लिए जागरूक हो जाता है। यह आध्यात्मिक जागरण ही सम्यक्त्व होता है । अथवा सर्वज्ञ भगवान द्वारा प्रतिपादित जीव और अजीव आदि पदार्थों पर सच्चा श्रद्धान करना, यथार्थ विश्वास रखना सम्यक्त्व कहलाता है । मोक्ष की साधना में सम्यक्त्व सर्वप्रथम स्थान रखता है । सम्यक्त्व मोक्ष साधना की आधारशिला है, इसके अभाव में मोक्ष साधना का रम्य एवं भव्य प्रासाद कभी खड़ा नहीं किया जा सकता । वृक्ष के जीवन में जो स्थान उसके मूल का होता है, वही स्थान मोक्ष साधना के महावृक्ष में सम्यक्त्व का समझना चाहिए। चेतना के अभाव में शरीर को जीवित रखने का संकल्प जैसे निर्मूल होता है, वैसे ही सम्यक्त्व के बिना मोक्ष साधना का सम्पन्न होना सर्वथा असम्भव है । इसीलिए सम्यक्त्व को मोक्ष के महामन्दिर की ग्यारहवीं पगडण्डी कहा गया है। १२. शील सम्प्राप्ति-शील चारित्र का नाम है, इसे सम्प्राप्त करना शील सम्प्राप्ति होती है। सामायिक आदि भेदों से चारित्र पञ्चविध होता है। मोक्षाराधना के लिए चारित्राराधना अत्यधिक आवश्यक है। बहुत से जीव सम्यक्त्व अधिगत कर लेने के अनन्तर भी चारित्र की आराधना से वञ्चित रहते हैं, अपने सच्चे विश्वास को साकार रूप नहीं दे पाते, परिणामस्वरूप वे मोक्ष के मन्दिर को उपलब्ध करने में असफल रहते हैं। इसीलिए शील सम्प्राप्ति को मोक्ष मन्दिर की बारहवीं पगडण्डी माना गया है। १. विज्ञान, २. सम्यक्त्व और ३. शील सम्प्राप्ति ये तीनों मोक्ष के प्रधान अङ्ग-साधन माने जाते हैं। तत्त्वार्थ सूत्र में आचार्य श्री उमास्वाति ने 'सम्यग-दर्शन-ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्गः' यह कहकर उक्त तीनों अङ्गों का मोक्ष का मार्ग-साधन स्वीकार किया है। १३. क्षायिकभाव-आत्मा की वह अवस्था जो कभी क्षीण न हो उसे क्षायिक भाव कहते हैं। क्षायिकभाव नौ प्रकार के होते हैं १. केवलज्ञान, २. केवलदर्शन, ३. दानलब्धि, ४. लाभलब्धि ५. भोग लब्धि ६. उपयोगलब्धि ७. वीर्यलब्धि, ८. सम्यक्त्वलब्धि, ६. चारित्रलब्धि ।' ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, और अन्तराय । इन चार घातीकर्मों के क्षीण होने पर ये नौ क्षायिक भाव प्राप्त होते हैं । ये सादि अनन्त हैं। मोक्ष सामना में क्षायिक भावों का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। क्षायिक भावों को अधिगत करने के अनन्तर ही साधक मोक्ष के महामन्दिर में पहुंच सकता है अन्यथा नहीं। इसीलिए क्षायिक भाव को मोक्ष मन्दिर की तेरहवीं पगडण्डी माना गया है। १४ केवलज्ञान-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय और मोहनीय इन घातीकर्मों का आत्यन्तिक विनाश हो जाने पर जो ज्ञान प्राप्त होता है उसे केवलज्ञान कहते हैं। यह ज्ञान विश्व के चराचर सभी प्राणियों तथा पदार्थों को हाथ पर रक्खे आँवले की भांति जानने एवं समझने की क्षमता रखता है । इस ज्ञान को प्राप्त करके के अनन्तर जीव सर्वज्ञ, सर्वदर्शी बन जाता है। मोक्ष-साधना सम्पन्न करने के लिए इस ज्ञान का उपलब्ध करना आवश्यक है, इस ज्ञान की प्राप्ति किए बिना मुक्तिपुरी की उपलब्धि नहीं हो पाती। इसीलिए इसे मोक्ष मन्दिर की चौदहवीं पगडण्डी स्वीकार किया गया है । वैसे तो क्षायिक भावों में केवलज्ञान का संकलन होता ही है, परन्तु यहाँ पर स्वतन्त्र रूप से जो इसका उल्लेख किया है, यह केवल इसकी प्रमुखता व्यक्त करने के लिए ही समझना चाहिए। १५ मोक्ष-सम्पूर्ण कर्मों का आत्यन्तिक विनाश ही मोक्ष है । जो जीव मोक्ष धाम प्राप्त करता है उसे ज्ञानावरणीय आदि अष्टविध कर्मों की आमूलचूल समाप्ति करनी पड़ती है। इसीलिए मोक्ष अर्थात् कर्मों के आत्यन्तिक विनाश को मोक्ष मन्दिर की पन्द्रहवीं पगडण्डी स्वीकार किया गया है। मुक्ति की सादिता तथा अनादिता मुक्ति सादि है या अनादि ? यह समझ लेना भी आवश्यक है। इस सम्बन्ध में जैनदर्शन अनेकान्तवाद की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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