SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनदर्शन की निक्षेप-पद्धति २६७ . किसी विद्वान ज्ञानी पंडित के मृत शरीर को देखकर उसे ज्ञानी कहा तो वह 'ज्ञ शरीर' नोआगम द्रव्य निक्षेप का प्रयोग है। जिस शरीर में रहकर आत्मा भविष्य में जानने वाली है, वह भव्य शरीर या भावी शरीर है । जैसे किसी बालक के विलक्षण शारीरिक लक्षणों को देखकर उसे ज्ञानी या त्यागी कहना 'भव्य शरीर' नोआगम द्रव्य निक्षेप है। तद्व्यक्तिरिक्त में शरीर नहीं किन्तु शारीरिक क्रिया को ग्रहण किया जाता है, जबकि प्रथम दो भेदों में शरीर का ग्रहण किया गया है । अतः शारीरिक क्रिया को तद् व्यतिरिक्त कहते हैं। इसमें वस्तु की उपकारक सामग्री में भी वस्तु वाची शब्द का व्यवहार किया जाता है। जैसे कि किसी मुनिराज का धर्मोपदेश के समय होने वाली हस्त आदि की चेष्टायें। नोआगम तद्व्यतिरिक्त को क्रिया की अपेक्षा द्रव्य कहते हैं । यह तीन प्रकार का है लौकिक, कुप्रावचनिक, लोकोत्तर ।२० १ लौकिक मान्यतानुसार 'श्रीफल' (नारियल) मंगल है। २ कुप्रावचनिक मान्यतानुसार विनायक मंगल है। ३ लोकोत्तर मान्यतानुसार ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप धर्म मंगल है। इस प्रकार भाव शून्यता, वर्तमान पर्याय की शून्यता होने पर भी वर्तमान पर्याय से पहिचानने के लिए जो द्रव्यता का आरोप किया जाता है, यही द्रव्य निक्षेप का हार्द है। भाव निक्षेप वर्तमान पर्याय से युक्त वस्तु को भाव कहते हैं२१ और शब्द के द्वारा उस पर्याय या क्रिया में प्रवृत्त वस्तु का ग्रहण होना भाव निक्षेप है। इस निक्षेप में पूर्वापर पर्याय को छोड़कर वर्तमान पर्याय से उपलक्षित द्रव्य का ही ग्रहण किया जाता है। भाव निक्षेप के भी द्रव्य निक्षेप के समान मूल में दो भेद हैं--१. आगम भाव, २. नोआगम भाव । जो आत्मा जीव विषयक शास्त्र को जानता है और उसके उपयोग से युक्त है, वह आगम भाव निक्षेप है। अर्थात् अध्यापक, अध्यापक प्राब्द के अर्थ में उपयुक्त हो, कार्यशील हो तब वह आगम भाव निक्षेप से अध्यापक कहलाता है। क्रिया-प्रवृत्त ज्ञाता की क्रियाएं नोआगम से भाव निक्षेप हैं। जैसे कि अध्यापक अपने अध्यापन कार्य में लगा हुआ हैं तो उस समय उसके द्वारा होने वाली हस्त आदि की चेष्टाएं-क्रियाएं नोआगम से भाव निक्षेप हैं। आगम भाव निक्षेप और नोआगम भाव निक्षेप में यह अन्तर है कि जीवादि विषयों के उपयोग से सहित आत्मा तो उस जीवादि आगम भाव रूप कहा जाता है और उससे भिन्न नोआगम भावरूप है जो कि जीव आदि पर्यायों से आविष्ट सहकारी पदार्थ आदि स्वरूप से व्यवस्थित हो रहा है। नोआगम भाव निक्षेप में 'नो' शब्द देशवाची है। क्योंकि यहाँ अध्यापक की क्रिया रूप अंश नोआगम है। इसके भी तीन रूप हैं-लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तर । नोआगम तद् व्यतिरिक्त द्रव्य निक्षेप के लौकिक आदि तीन भेद बताये हैं और नौआगम भाव निक्षेप के भी उक्त लौकिक आदि तीन रूप कहे हैं । परन्तु इन दोनों में यह अन्तर है कि द्रव्य निक्षेप में 'नो' शब्द सर्वथा आगम का निषेध प्रदर्शित करता है जबकि भाव निक्षेप में 'नों' शब्द का एक देश से निषेध का संकेत है।२२ द्रव्य तद्व्यतिरिक्त का क्षेत्र तो केवल क्रिया है । और भावतद्व्यतिरिक्त का क्षेत्र ज्ञान और क्रिया दोनों हैं। अध्यापक हाथ का संकेत करता है, पुस्तक का पृष्ठ पलटता है आदि, यह क्रियात्मक अंश ज्ञान नहीं है । इसलिए भाव में 'नौ' शब्द से देशनिषेधवाची है । भाव निक्षेप का सम्बन्ध केवल वर्तमान पर्याय से ही है-अतः इसके द्रव्य निक्षेप के समान ज्ञायक शरीर आदि भेद नहीं होते हैं। द्रव्य निक्षेप और भाव निक्षेप में यह अन्तर है कि दोनों के संज्ञा लक्षण आदि पृथक्-पृथक हैं। दूसरी बात यह है कि द्रव्य तो भाव रूप परिणत होगा क्योंकि उस योग्यता का विकास जरूर होगा परन्तु भाव, द्रव्य हो भी और न भी हो, क्योंकि उस पर्याय में आगे अमुक योग्यता रहे भी और न भी रहे । भाव निक्षेप वर्तमान की विशेष पर्याय रूप ही है जिससे वह निर्बाध रूप से भेद ज्ञान को विषय कर रहा है जबकि अन्वय ज्ञान का विषय द्रव्य निक्षेप है। उसमें भूत-भविष्यत् पर्यायों का संकलन होता है और भाव निक्षेप में केवल वर्तमान पर्याय का ही आकलन । यही द्रव्य और भाव निक्षेप में अन्तर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy