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________________ dho. २५२ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन अन्य मीमांसा का इतना प्रभाव पड़ा है कि वह तर्कशास्त्र जैन तर्कशास्त्र हो गया है । जैन तर्कविदों ने जिन तार्किक सिद्धान्तों को विकसित किया है उनको जनेतर तर्कविद भी विकसित कर सकते थे, विकसित किये हैं, क्योंकि इन सिद्धान्तों में जैनत्व नहीं है। उदाहरण के लिए त्रिलक्षणक दर्शन में और हेतु को एक मात्र अन्यथानुपन्नत्व-रूप मानने में जैनदर्शन का कोई सिद्धान्त निहित नहीं है । वे शुद्ध ताकिक सिद्धान्त हैं जिन्हें जनेतर भी मानते है, मान सकते हैं। बोलते क्षण-0--0-0--0--0--0--0---0--0--0-0--0--0--0--01-0--0-01-0-0--0--2 सच्चा ऑटोग्राफ ब्यावर के कालेज में आप भाषण देकर ज्यों ही बाहर आये त्यों ही अनेक विद्यार्थियों ने आपको घेर लिया जो ऑटोग्राफ लेने के उत्सुक थे । अपनी लेखनी और डायरी आपश्री की ओर बढ़ाते हुए कहा-इसमें हमारे लिए कुछ लिख १ दीजिए। आपश्री ने मुस्कराते हुए कहा-मैंने जो प्रवचन में बातें कहीं हैं उन्हें । ही जीवन में उतारने का प्रयास करो। यही मेरा सच्चा आटोग्राफ है। Bho------------------------------------------0-0--0-बोलते क्षण १ ए हिस्ट्री आव इण्डियन लाजिक, म. म. सतीशचन्द्र विद्याभूषण, मोतीलाल बनारसीदास १९७१, पृ० १५८ । ? He was an eminent logician and author of Vadamaharnava, a treatise on logic called the Ocean of Discussions, and of a Commentary on the Sanmati-Tarka-Sutra called Tattvartha bodha Vidhyayini, पृष्ठ १९६-१९७। ३ देखिए सन्मति प्रकरण, ज्ञानोदय ट्रस्ट, अहमदाबाद १९६३ में पं० सुखलाल संघवी की प्रस्तावना, पृ० ७८ । ४ ए हिस्ट्री आव इण्डियन लाजिक, पृ० १९४-१६५ । ५ सन्मति प्रकरण, अनुवादक सुखलाल संघवी, प्रस्तावना पृ० ४६ । ६ जैन न्याय, कैलाशचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, वाराणसी, १९६६, पृ० १९ तथा जनतर्कशास्त्र में अनुमान विचार, दरबारी लाल जैन कोठिया, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट प्रकाशन, एटा १९६६, परिशिष्ट ४ पृ. २८७.२८८ (दोनों सिद्धसेनों के पृथकत्व, काल-निर्णय तथा ग्रन्थ) ७ विद्याभूषण का इतिहास पृ० १५८ । ८ प्रमाण मीमांसा, हेमचन्द्र, डा. सत्कारि मुकर्जी द्वारा संपादित तथा अनूदित (अंग्रेजी में) ९ जैन तर्कशास्त्र में अनुमान विचार, डा० दरबारी लाल जैन कोठिया, पृ० १८७ । १० न्यायावतारवातिकवृत्ति पं० दलसुख मालवणिया, टिप्पणी । ११ ए हिस्ट्री आव इण्डियन लाजिक, पृ० १६७ १२ वही, पृ० १६७ १३ वही, पृ० १७० १४ वही, पृ० १८१ १५ वही, पृ० २०३ Jain Education Internationat For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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