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________________ a . २३२ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ ... . . .+ ++ ++++ ++++ 4HHHHHHHH अनुभव के बोल [गुरुदेव श्री के प्रवचन-साहित्य से संकलित] १. माता-पिता ने यदि अपराध भी किया हो, तब भी उनका अपमान नहीं करना चाहिए। २. हिंसक और कर आचरण से किसी को अपना शत्रु मत बनाओ। ३. जिसका मन पवित्र होता है, उसकी कामनाएं सफल होती हैं। ४. संत जन कष्ट पाकर भी दूसरों को सुख देते हैं। ५. दयालु और मिष्टभाषी का कोई शत्रु नहीं होता। ६. अपना कार्य सम्पन्न करने के लिए छोटे-से-छोटा बनना भी चतुरता है। ७. धर्म कार्य करने में विलम्ब मत करो, काल का कोई भरोसा नहीं है। ८. जो हित करने वाला है, वह चाहे कोई भी हो, उसे मित्र समझना चाहिए। ६. ऊंचा पद पाकर मन भी ऊँचा रखो। १०. सत्ता को अहंकार से और अधिकार को अन्याय से खतरा है। ११. सन्मान पाना चाहने वाले को पहले सन्मान देना पड़ता है। १२. प्रतिदिन अपने आचरण पर ईमानदारी से चिन्तन करो कि क्या अच्छा किया और क्या बुरा किया। १३. समय को व्यर्थ खोना सबसे बड़ी बर्बादी है। १४. वह धन भी क्या काम का, जिससे जान पर जोखिम आती हो। १५. किसी को अपनी बात मनवाने के लिए विवाद मत करो। १६. शिष्ट व्यवहार और मिष्ट वचन लोकप्रियता का मूल मन्त्र है। १७. समर्थ की क्षमा, दरिद्र का दान, तरुण का ब्रह्मचर्य और रोगी की अनाकुलता-वस्तुत: सराहनीय ---- ० १८. स्त्री गृहलक्ष्मी है, स्त्री दुःखी तो घर दुःखी, स्त्री सन्तुष्ट तो घर सुखी। १६. सम्पत्ति, सरस्वती सदाचार, सत्य और सन्तान-ये पांच सकार जिस घर में हो वह घर स्वर्ग से भी बढ़कर है। २०. आलस्य विद्या का और व्यसन लक्ष्मी का नाश करता है। २१. अगर सभी के साथ अच्छा सम्बन्ध बनाये रखना चाहते हो तो एक नियम याद रखो-कभी किसी की निन्दा मत करो। २२. निन्दा, ईर्ष्या, चुगली तीन बातों से मनुष्य की क्षुद्रता प्रकट होती है। २३. नीति के अनुसार चार सबसे खतरनाक शत्रु हैं___ कर्जदार पिता, दुराचारिणी माता उच्छृखल पत्नी मूर्ख पुत्र २४. दूसरे के आश्रय पर जीने वाले का भाग्य दीवार पर लटकती तस्वीर की तरह सदा ही अधर में लटकता रहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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