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________________ तृतीय खण्ड : गुरुदेव की साहित्य धारा १६३ . 0 - गुरुदेव की साहित्यधारा एक अवगाहन - - - 0 देवेन्द्र मुनि शास्त्री साहित्य और कला मानव जीवन के लिए वरदान है । साहित्य और कला का सम्बन्ध आज से नहीं, आदिकाल से रहा है । जो साहित्यकार होगा, वह अवश्य कलाकार होगा। दोनों का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। भारत के महान् कवि भर्तृहरि ने “साहित्य-संगीत-कला से विहीन व्यक्ति को साक्षात् पशु" कहा है। यूनान के महान् दार्शनिक प्लेटो ने "आदर्श राज्य" नामक एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना की, उसमें कवि का बहिष्कार किया गया था। क्योंकि कवि समाज को उच्च आदर्शों की प्रेरणा प्रदान न कर भावनाओं के साथ खिलवाड़ करता है और वह असंयम एवं अनैतिकता का मिथ्या प्रचार करता है। पर उसके शिष्य अरस्तू ने प्लेटो की भ्रान्त धारणा का खण्डन करते हुए कवि का प्रभाव और काव्य से होने वाली मानसिक प्रसन्नता आदि पर चिन्तन किया है । गीर्वाण-गिरा के यशस्वी कवियों ने काव्य से प्राप्त होने वाले रस या आनन्द को "ब्रह्मानन्द सहोदरं" कहा है। आचार्य मम्मट ने काव्य-प्रयोजनों पर चिन्तन करते हुए उससे प्राप्त होने वाले यश, कीति, व्यावहारिक ज्ञान, अमंगल का विनाश, आनन्द और उपदेश पर विस्तार से प्रकाश डाला है। यदि हम काव्य की श्रेष्ठता और ज्येष्ठता का प्रतिमान इन्हीं तत्त्वों को मान लें तो सद्गुरुदेव श्री की काव्यरचनाओं में इन तत्त्वों की सहज संस्थिति है। सद्गुरुदेव श्री की कविताओं का लक्ष्य किसी अमूर्त सौन्दर्य-लोक की संस्थापना करना नहीं है और न उपमा रूपक, उत्प्रेक्षा जैसे अलंकारों से कविताकामिनी को सजाना ही है। अपितु उनका लक्ष्य है जन-जन के अन्तर्मानस में त्याग और वैराग्य की मंगलमय भावना उत्पन्न करना । सन्तकाव्य की यही विशेषता रही है। वह मानव को शब्दों के जाल में उलझाता नहीं, किन्तु सीधे हृदय को प्रभावित करता है। उनमें लोक मंगल के विधायकतत्व होते हैं । छय आधुनिकता का कृत्रिम प्रयास नहीं, अपितु शाश्वत सत्यों का आख्यान है, मानवीय संवेदना की गहरी पहचान है। कहा जाता है--"कवि बनते नहीं, जनमते हैं।" इसी कारण आपश्री के काव्य में सहजता, मार्मिकता, हृदय की गहराई एवं भावों की श्रेष्ठता मिलती है, निश्छल उपदेश प्रवणता के भी दर्शन यत्र-तत्र होते हैं । सद्गुरुदेव श्री के साहित्य में कविता की गंगा, कथा की जमुना और निबन्ध की सरस्वती का सुन्दर संगम हुआ है। उनकी कृतियों में वाल्मीकि का सौन्दर्य है, कालिदास की प्रेषणीयता है, भवभूति की करुणा है, तुलसीदास का प्रवाह है, सूरदास की मधुरता है, दिनकर की वीरता है और है गुप्त जी की सरलता व सुबोधता । काव्य और गीति साहित्य श्रद्धय सद्गुरुवर्य एक मनस्वी और यशस्वी साहित्यकार हैं । लिखना-पढ़ना, कविताएं करना, प्रवचन करना, धर्म और संस्कृति पर चर्चाएं करना आपको प्रिय है। प्रारम्भ से ही आप साहित्य का सृजन करते रहे हैं । आपश्री का साहित्य के क्षेत्र में कविता के द्वारा प्रवेश हुआ है । सर्वप्रथम आपने गोत, कविता और काव्य लिखे। आपश्री सफल साधक, गम्भीर विचारक और मानवता के सन्देशवाहक हैं। आपश्री अपने युग की सम्पूर्ण प्रवृत्ति और सत्ता के द्रष्टा और स्रष्टा हैं। आपका साहित्य मानवता की भावना से ओतप्रोत है। अपने विचारों को स्पष्ट रूप से जन-चेतना के समक्ष रखने में आपश्री सक्षम हैं । आपके साहित्य में केवल जड़ शब्दों का समूह नहीं है, किन्तु उसमें बोलता हुआ जीवन है। आपके गीत धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक भावों से परिपूर्ण हैं। उनमें आध्यात्मिकता व सामाजिकता का आलाप, है, अपलाप नहीं। आपश्री के गीतों का संकलन 'पुष्करप्रभा' 'संगीत-सुधा' 'भजन-चौबीसी' 'भक्ति के स्वर' 'सायर के मोती' 'अमर पुष्पांजलि' आदि नामों से प्रकाशित हुए हैं। इन वर्षों में भी आपश्री ने शताधिक भजनों का निर्माण समय-समय पर किया है, पर वे सभी अप्रकाशित हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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