SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Ghas • १८० श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ + ++++ ++ ++++ + + + + + ++++++++++ + ++ ++ ++ ++ ++ ++++++ + +++ + ++ + + + + +++ ++ हैं। गुरुदेव ने कहा-इस समय इतनी भयंकर गरमी हो चुकी है। गांवों में से भिक्षा लाना सम्भव नहीं है, क्योंकि यहाँ से गाँव एक-एक मील दूर है। अतः आपश्री ने उससे एक टिक्कर ले लिया और आधा-आधा टिक्कर पानी से खाकर पानी पी लिया । चौदह मील चलकर आये थे। बड़ी तेज भूख लग रही थी। अतः टिक्कर खाने में दिक्कत नहीं हुई। दूसरे दिन आप जोधपुर पधारे जहाँ पर गोचरी में बादाम और पिस्ते की कतलियां आयीं । आपने कहा जो उस सूखे टिक्कर में स्वाद था वह इन कतलियों में कहाँ ? वस्तुत: स्वाद भूख में है; पदार्थ में नहीं। आज का मानव अधिक से अधिक खाने के पीछे दीवाना बना हुआ है। वस्तुतः जो भूख में खाया जाता है वही मधुर है। दृढ़ मनोबल सन् १९४४ का वर्षावास पूर्ण कर आपश्री उदयपुर पधारे । ग्रीष्म का समय था। शाम को पाँच बजे आपश्री गोचरी के लिए पधारे । एक गृहस्थ के घर से भिक्षा लेकर लौट रहे थे कि आपश्री को चक्कर आ गया और सीढ़ियों से नीचे गिर पड़े। नीचे एक तीक्ष्ण पत्थर था। वह सिर में लग गया जिससे रक्त की धारा बह चली और आपश्री बेहोश हो गये। पौन घण्टे के पश्चात् जब आपको होश आया तब आपने देखा कि लोग डोली की तैयार कर रहे थे : आपको स्थानक पर ले जाने के लिए। आपने कहा-मैं डोली में नहीं बैठेगा और पैदल चलकर ही स्थानक पहुँचूंगा। सूर्यास्त होने वाला था, इसलिए आपश्री ने न दवा ली और न टाँके ही लगवाये । किन्तु मुस्कराते हुए अपार वेदना को सहन करते रहे । यह था आप में दृढ मनोबल । ध्यान की प्रेरणा सन् १९४६ में आपका वर्षावास धार में था जिसे सुप्रसिद्ध साहित्य और काव्यप्रेमी महाराजा भोज की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। जहाँ पर कविकुल गुरु कालिदास के काव्यों को प्रणयन हुआ ऐसी किंवदन्ति है। और स्थानकवासी समाज के ज्योतिर्धर आचार्यश्री धर्मदासजी महाराज ने धर्म की प्रभावना हेतु अपने शिष्य के विचलित होने पर स्वयं ने संथारा कर समाधिमरण प्राप्त किया था। वह पट्टा जिस पर आचार्यश्री ने संथारा किया था, उस पर प्रायः सन्त व सती गण नहीं सोती हैं, किन्तु आपश्री उस पर चार महीने तक सोये । आपको स्वप्न में आचार्य प्रवर के दर्शन भी हुए और उन्होंने ध्यान-साधना आदि के सम्बन्ध में आपको प्रेरणा दी। संगठन के सजग प्रहरी सन् १९४८ का वर्षावास घाटकोपर-बंबई में सम्पन्न कर अन्य स्थलों पर विचरते रहे। आपके अन्तर्मानस में जैन समाज की एकता के लिए चिन्तन चल रहा था। और घाटकोपर में आपश्री की प्रबल प्रेरणा से उपाध्याय प्यारचन्द जी महाराज, आत्मार्थी श्री मोहन ऋषि जी महाराज, शतावधानी पूनमचन्द जी महाराज और परम विदुषी उज्ज्वल कुमारी जी आदि सन्त सती वृन्द वहाँ पर एकत्रित हुए। सन्त सम्मेलन की योजना बनायी और आपश्री ने एक पंचसूत्री योजना प्रस्तुत की (१) एक गाँव में एक चातुर्मास हो। (२) एक गांव में दो व्याख्यान न हों। (३) एक दूसरे की आलोचना न की जाय । (४) एक सम्प्रदाय के सन्त दूसरे सन्तों से मिलें तो उस समय स्नेहपूर्ण सद्व्यवहार रखा जाय । (५) यदि मकान की सुविधा हो तो एक साथ ठहरा जाय । सन् १९५१ में आपका चातुर्मास सादड़ी था। उस समय आपश्री की प्रेरणा से सादडी में विराट् सन्त सम्मेलन हुआ । और वर्धमान स्थानकवासी श्रमण संघ की संस्थापना हुई । संघ की संस्थापना में आपश्री की विलक्षण प्रतिभा, सूझबूझ, संगठनशक्ति, नींव की ईंट के रूप में कार्य करती रही। और सन् १९५२ में सिवाना वर्षावास में भी संघठन को अधिक से अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए आपश्री का चिन्तन चलता रहा जिसके फलस्वरूप सोजत में मंत्रीमंडल की बैठक हुई। उसमें सचिताचित के प्रश्न को लेकर गंभीर चर्चाएँ हुई । और एक आचार संहिता का निर्माण हुआ । जब कभी सम्मेलनों में विचार चर्चा में मतभेद होने के कारण दरार पड़ने की स्थिति पैदा हुई उस समय आपश्री नूतन और पुरातन विचार वाले सन्तों को समझाकर समस्या का समाधान करते रहे। आपश्री का यह स्पष्ट मत रहा कि संघठन के केवल गीत गाने से काम नहीं चलेगा, उसके लिए अपने स्वार्थों का बलिदान भी देना होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy