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________________ १६० श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ + ++++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ + + ++ ++ + ++ + + + + ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++ ++++ ++ ++ ++ नेहरूजी-आपका सुझाव उपयुक्त है। मैं इस सम्बन्ध में चिन्तन करूंगा। मैं स्वयं भगवान महावीर को महापुरुष मानता हूँ । और यह भी मानता हूँ कि उनकी अहिंसा का प्रभाव राष्ट्रपिता पर भी था। उसके पश्चात् श्रमण संस्कृति की विभिन्न धाराओं के सम्बन्ध में और जैन संस्कृति और कला पर चर्चा चली तब गुरुदेव श्री ने ज्योतिर्धर आचार्य जीतमल जी महाराज के द्वारा बनायी गयी कलाकृतियाँ बतायीं । एक चने की दाल जितने स्थान पर चित्रित एक सौ आठ हाथी, सूर्यपल्ली, और दोनों ओर कटिंग किये हुए अक्षरों को देखकर नेहरूजी बहुत ही प्रभावित हुए । पचपन मिनिट तक बहुत ही उल्लास के क्षणों में वार्तालाप होता रहा। __उस समय श्रीमती इन्दिरा गांधी, उनके दोनों पुत्र राजीव और संजय गुरुदेव श्री के सम्पर्क में आये । वे भी कलाकृतियों को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए । गुरुदेव श्री और मोरारजी भाई देसाई दिनांक १५-६-१९७४ को भारत के वर्तमान प्रधान मंत्री श्री मोरारजी भाई देसाई से आपश्री की विचारचर्चाएं हुई। उस दिन मोरारजी भाई मेरे द्वारा लिखित "भगवान महावीर : एक अनुशीलन" ग्रन्थ का अहमदाबाद में विमोचन करने के लिए उपस्थित हुए थे । गुरुदेव श्री ने अपने प्रवचन में कहा-आज चारों ओर अशांति का वातावरण है । आज का मानव भौतिकवादी है । अध्यात्मवाद को विस्मृत होकर वह भौतिकवाद की ओर द्रुतगति से दौड़ रहा है । वह त्याग से भोग की ओर, अहिंसा से हिंसा की ओर, अपरिग्रह से परिग्रह की ओर द्रुतगति से कदम बढ़ा रहा है । वस्तुत: मानव का प्रस्तुत अभियान आरोहण की ओर नहीं, अवरोहण की ओर है। उत्थान और विकास की ओर नहीं, किन्तु पतन और विनाश की ओर है। भौतिक दृष्टि से अत्यधिक उन्नति करने पर भी मानव का हृदय व्यथित है । भगवान महावीर ने अन्तर्दर्शन की प्रेरणा दी। आज मानव अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह के सिद्धान्त को विस्मृत हो चुका है। भारत के तीन पर्यटक अमेरिका पहुँचे । और न्यूयार्क के एक होटल में ठहरे । उन्हें रहने के लिए होटल की बावनवें मंजिल पर कमरा मिला । वे दिन भर शहर के दर्शनीय स्थानों को देखते रहे । रात्रि को सिनेमा के दृश्य देखने के पश्चात् एक बजे वे होटल में पहुँचे । द्वारपाल ने कहा-इस समय बिजली चली गयी है जिस कारण लिफ्ट बन्द पड़ी है । पता नहीं, बिजली प्रातःकाल तक आये या ना आये । उन्होंने सोचा रात भर कहाँ बैठे रहेंगे। इससे तो अच्छा है सीढ़ियों से ही ऊपर पहुँच जायें । सीढ़ियां चढ़ने में गरमी हो जायगी । बड़े मोटे ओवर कोट पहने हुए हैं । उन्हें द्वारपाल को सम्हला देवें । और यों ही सीढियाँ चढे । ओवर कोट देकर वे सीढियाँ चढने लगे। उनमें से एक सज्जन ने कहा बावन मंजिल चढना कोई हंसी-मजाक का खेल नहीं है । अतः एक व्यक्ति कहानी कहता चला जाय जिससे चढने में थकान का अनुभव न होगा। प्रथम व्यक्ति ने कहानी प्रारंभ की। उसकी कहानी बहुत ही बढिया और लम्बी थी जिससे इकतीस मंजिल पार हो गये । दूसरे व्यक्ति ने कहानी प्रारंभ की, जिससे बीस मंजील पार हो गये। अब कहानी कहने की बारी तीसरे व्यक्ति की थी। उसके साथियों ने कहा-भाई अब तो कहानी प्रारंभ कर । उसने कहामेरी कहानी बहुत छोटी है। सिर्फ एक मिनिट की भी नही है । एक सीढ़ी अवशेष रहने पर उसने बताया कि कमरे की चाबी ओवर कोट में ही नीचे रह गयी है। बावन मंजिल चढ़ने पर भी चाबी नीचे रह जाने से उनकी सारी मेहनत निरर्थक हो गयी। और हताश और निराश होकर उन्हें पुनः नीचे लौटना पड़ा। आज का मानव भी इसी तरह प्रगति कर रहा है। किन्तु शांति की चाबी नीचे रह गयी है जिससे सही प्रगति नहीं हो पा रही है। भगवान महावीर ने उसी चाबी का रहस्य बताया है। उसके पश्चात् मोरारजी भाई से अन्य विषयों पर भी चर्चाएँ हुई। उन्होंने ग्रन्थ की महत्ता पर और भगवान महावीर की जीवनी और सिद्धान्त पर लगभग पौन घण्टे तक भाषण दिया और गुरुदेव श्री वार्तालाप कर अत्यन्त सन्तुष्ट हुए । गुरुदेव और गृहमन्त्री पन्त जी सोजत सन्त सम्मेलन के सुनहले अवसर पर तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री पं० गोविन्द वल्लभ पन्त के साथ गुरुदेवश्री की विचार-चर्चाएं हुईं। आपने कहा-जैन संस्कृति का मूल आधार है अहिंसा और अनेकान्तवाद। जैसे वेदान्त सिद्धान्त का केन्द्र बिन्दु अद्वैतवाद और मायावाद है, सांख्य दर्शन का मूल आधार प्रकृति और पुरुष का विवेकवाद है, बौद्धदर्शन का केन्द्र विज्ञानवाद और शून्यवाद है वैसे जैन संस्कृति और दर्शन का मूल आधार अहिंसावाद और अनेकान्तवाद हैं। अन्य धर्मों ने भी अहिंसा के सम्बन्ध में चिन्तन किया किन्तु वे जैनदर्शन जितना सूक्ष्म विवेचन और गहन विश्लेषण नहीं कर सके। जैनदर्शन के अनुसार केवल धार्मिक क्रियाओं में ही अहिंसा का विधान नहीं है अपितु जीवन के दैनिक व्यवहारों में भी अहिंसा का सुन्दर विधान है। राष्ट्रपिता गान्धीजी ने राजनीति के क्षेत्र में अहिंसा का प्रयोग करके विश्व को नयी दिशा दी। आज इस अणुयुग में अणुशक्ति की भयंकरता से सन्त्रस्त समग्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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