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________________ ० ० Jain Education International ११६ ܟܐ श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ पेखो मुनि पुष्कर प्रभा पं० बालाराम कवि-किकर (जोधपुर, राज० ) ज्ञानसिन्धु गुरुराय, भवियण तारक भव्य थे । पावन जारा पाय, सेवे मुनि पुष्कर सदा ॥ अघहारी अरिहन्त अन्त न ज्यारी युक्ति रो । पुष्कर मुनि प्रणमन्त, विनय सहित म्हांने सदा ॥ सिद्ध हुए जो सूर, नूर उणारो निरखवा । पुलके प्रेम प्रचूर पुष्कर मुनि रो पेखलो || उपकारी आचार्य शिरोधार्य है सर्वदा । आस्ता यह अनिवार्य मुनि पुष्कर रे मन बसे । पाठकरे परताप तुरत मिटे भव-ताप-त्रय । जये जिणारी जाप, प्रतिपल पुष्कर मुनि अहा ! ॥ गौतम गणधर और, भे जेते अणगार भुवि । माने निज शिरमौर, व्हांने पुष्कर मुनि विमल ॥ पावन प्रेम प्रसार, पूज्य पंच परमेष्ठि पद । मन में मोद अपार, मुनि पुष्कर माने सदा ॥ षट् दरशन रो साद, शुचि दरक्षण स्वाद्वाय जग में है जिण माय सूं । मुनि पुष्कर रे मन बस्यो । मन अपनो मजबूत, उलझायो अरिहन्त पद । ऐसे जो अवभूत. पुष्कर मुनि है पेललो ॥ लखि राजुल री भक्ति, मुक्ति मुरझगी मन ही मन । सुन्दर वाहिज शक्ति, मुनि पुष्कर रे मन बसे । सेवा-धर्म समान, धर्म आन ना धरणि पर । गुरु तारक मुख ज्ञान, ओ पुष्कर मुनि आदरयो । भक्ति, भक्त भगवन्त तारक गुरु इन त्रिपुटिरो । आप्यो ज्ञान अनन्त, मुनि पुष्कर ने मोद सूं ॥ समरांगणे । मन बसे ।। जूंजे जबरा जेह, संयम रे निर्मल व्हांरो नेह मुनि पुष्कर रे जबर पुण्य गो जाग, रूठ जगतरा राग सूं । वसगो उर वैराग, पुष्कर मुनि रे पेखलो ।। " हट्यो । लो ॥ जनम मरण से जाल, हाल हरामी ना शाले उर ओ शाल, पुष्कर मुनि रे पेख दीन दुखी री दाह, देखि दया से द्रवित हो । यथायोग्य उर आह, उणरी मुनि पुष्कर हरे ॥ जानत सकल जहान, जयणा जिनशासन तणी । उण जयणां री आन मुनि पुष्कर राजे महा ।। निगमागमरो नाण, भाणहाररो भव्यपन । करण आत्म-कल्याण, गुरुमुख पुष्कर मुनि ग्रह्मो ॥ For Private & Personal Use Only + www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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