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________________ १०८ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ जिनवर जैन सुजलधि बिच "पुष्कर" मंजु मनोज । अमर सूर्य-तारा-शशिन, विकसत नित्य सरोज ।। पढो सभी पुष्कर प्रभा देखी मैंने अबलविधि की हस्तरेखा विशेषा। क्या था जो बचपन बड़ा क्रीडितानन्दवेशा॥ छोड़े सारे निजजन सभी जाव से दूर-देशा। मैत्री नाही अस मुनिन की दर्शनानन्द शेषा ।। क्या थे ब्रह्मकुलोद्भवो जगगुरु साधु सहायी बने। नित्यं जैनउजागरा मतिखरा भावप्रधानानने । लोगों में महिमा भरी हटवरी नीति प्रतीति बड़ी। जो भी हो निज ज्ञान आश्रय बढ़े दृष्टि अनोखी कड़ी॥ शास्त्रों में बह स्नेह गेह विरती सम्मेलने शोधनम्। निर्द्वन्द्वो निज कार्य कर्म कुशलो सत्ये सुधा बोधनम् ॥ जो आये सबसे मिले मन खुले बातें करे प्रेम से । ऐसे सन्त सुजान "पुष्कर मुनि" आत्मा धुनी नेम से ॥ ०००००० 0000000००००० 000000 जाते हो वचनार्थ दान करने व्याख्यानदानी महा। होते हैं चितराम देख करके बोले सभी ओ अहा ॥ ध्यानी ध्यान श्रद्धालु “रूप” मृदुलो माया अपारा सही। मैं तो केवल शब्द दो ही लिखके विश्राम लेऊँ यहीं॥ No तपस्वी श्री रूपमुनि 'रजत' पुष्कर गुरु सब तीर्थगुरु "देवेन्द्र" कर सहयोग। श्री गणेश रमेश सुखद अमित अथाह प्रयोग ।। जैन सम्प्रदाय जावसी-वैष्णव जैन न ध्यान । क्या अलौकिक संघ का शंकित होत विज्ञान । जो भी किया है आपने सभी अनोखा काम । प्रतिदिन उन्नति आपकी जय जिनेन्द्र जय राम ॥ अमर अगम आशीष है रहे अमिट तव ध्यान । भाव-नाव चलती रहै बिन जल तेल विज्ञान ॥ अमर गच्छ अवतार, तारक-रवि-रश्मि-रजत। जाहिर जग अणगार, पाठक पटु-पुष्कर मुनि ॥ साहुत सह श्री संघ अभिनन्दन करते मुनि पथ नेम से। शुभ कामना के सुमन यह हम भी चढ़ाते प्रेम से ।। (मुक्ता-शिष्य) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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