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________________ • १०६ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्य ++ ++++++++++++++++ ++ + ++++ ++ ++++++ ++ ++ ++++++ ++++++++ ++ CTED श्रद्धा के पुष्प 0 श्री हीरामुनि जी 'हिमकर' भजन में नित ही रत हो रहे, लगन से प्रभु के गुण गा रहे। सुभग पुष्कर वन्दन आपको, विनति हीरक की गुरु तारजो। सु करनाटक में मन आपका, गुरु कहो किस कारण जा लगा। धरम की लगनी उत तेज है, भगत भी उसमें अनपार है। भगति में नित दौलत वापरे, सुगुरुदेव कहे उतना करे । मगर है करनाटक प्रान्त का, प्रबल भाग सदा गुरु आपका। जगत में अपनापन चाहिए, इसलिए अरजी सुन लीजिये। मरुधरा अपनी सुखदायिनी, सरस भारत की वसुधा यही । अब करो गुरु आप कृपा यही, दरस दो हमको गुरु आय ही। तुम गये हमको इत छोड़ के, अरज है मन की कर जोड़ के। मिलन की दिल में लगनी लगी, गुरु करो करुणा जुगती करी। सुखद थे गुरु तारक आपके, तिर गया प्रभु मैं गुरु पाय के। तिरण-तारण-तारक हो गये, अपन को पथ तारक दे गये। अमर नाम करो गुरुदेव थे, चरण-सेवक देवज देव हैं। मधुर वैन वदे नित देवजी, सुगुनि शिष्य खरे प्रिय देवजी। अपर शिष्य सभी सखरे बने, विनयवन्त गुणी गुण-खान हैं। सकल संघ सदा गरिमा करे, हिमकरो नित ही विनती करे। भगत को गुरु तारण आइये, सुगुरु तारक के गुण गाइये। .--- 0 दोहा तारक-गुरु-प्रसाद से पुष्कर पनपे आज । पग-पग सुख प्रगटा रहे, सफल होय सब काज । ज्ञान ध्यान गौरव बढ़े, बढ़े शिष्य परिवार । दूर दूर से देखलो वन्दत सहु नर नार ॥ हीरा मुनि वन्दे सदा, पुष्कर-चरणे चित्त । भाव भरी करूं वीनती, वेगि पधारह मित्त ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
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