SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Gos.८० श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ सा उठ पड़ा। प्रथम साक्षात्कार था, पर परिचय की विशेष नयी पीढ़ी को नयी दिशा देने के तन्तु बिखेरते रहे। चर्चा आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई। वैसे मैं उनकी अपेक्षा देवेन्द्र के दौरान उनका मधुर व्यक्तित्व उनकी संगठनशीलता, मुनि जी को नामतः परिचित के रूप में अधिक स्मरण कर अनुशासनबद्धता तथा चारित्रिक दृढ़ता की सुरभित पृष्ठरहा था। भूमि से बेहिसाब जुड़ा हुआ था। एक अध्यात्मयोगी के सुबह का समय और फिर मुनिवर्ग की कुछ अपनी साथ इन सब विशेषताओं का अनोखा संयोग अविस्मरविशेष दिनचर्या । इसलिए उस समय तो मेरा उनसे विशेष णीय है। वार्तालाप नहीं हो सका, पर पूरा रविवार मेरे पास था। समूची चर्चा में मैंने उन्हें पाया एक प्रतिभा सम्पन्न उसका मैंने भरपूर उपयोग करना चाहा। किया भी। तेजस्वी कलाकार, जो समाज के नये निर्माण में अपना सुबह का समय तो पूज्य देवेन्द्र मुनि जी के साथ बैठकर सर्वस्व समर्पण करने के लिए उतावला है । स्थानक से मेरा "भगवान महावीर और उनका चिन्तन" लिखी मेरी पुस्तक सूटकेस गुमने की रामकहानी जब उनके कानों तक पहुंची को आद्योपान्त पढ़ने में गया। दोपहर का जो समय मिला तो उनका अन्तर्मन विचलित हो उठा । वे आश्चर्य-चकित उसमें पुष्कर मुनि जी से भेंट की। बड़ी स्नेहिल भेंट थी हो गये । समाज को सन्मार्ग पर लाने की चिन्ता उनके मन वह । मूमूक्ष आते गये, चले जाते गये, पर चर्चा का क्रम में और भी अधिक जाग्रत हो गई। उनका कवि हृदय प्रायः टूट नहीं पाया। ऐसा लगा जैसे बहुत दिनों बाद वे उद्वेलित हो गया। इतने खुल सके हों। दूसरे दिन घोड़नदी से वापिस लौटा । कुछ ले-देकर मेरे चर्चा के अनेक विषय थे—साहित्यिक, धार्मिक और मन का हर कोना पुष्कर मुनि जी के प्रभाकर व्यक्तित्व से सामाजिक । इन तीनों की अभ्युन्नति के प्रति उनका लगाव, खिंच गया था। कुछ अल्प समय का ही परिचय स्थायित्व सूक्ष्म चिन्तन और तलस्पर्शिता अभिनन्दनीय थी। साम्प्र- ले चुका था। उनके सरस और अनोखे व्यक्तित्व के लिए दायिकता के व्यामोह से हटकर भी वे कुछ कहते रहे और मेरा शतशः अभिनन्दन-अभिवन्दन । अभिनन्दन : एक रचनाधर्मी सांस्कृतिक चेतना का 10 डा० नरेन्द्र भानावत, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर भारतीय सन्त-परम्परा का आध्यात्मिक जागरण और आम्र का मीठापन तो था ही, अब पुष्कर (कमल) की सामाजिक क्रान्ति के इतिहास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा कोमलता और प्रफुल्लता भी उसमें समाहित हो गई। है । सन्तों के क्रान्तद्रष्टा व्यक्तित्व ने अन्धरूढ़ मान्यताओं दीक्षित होने के बाद आपका चित्त ज्ञानाभ्यास और योगके खिलाफ स्वर बुलन्द कर अहिंसक नव समाज रचना की साधना में प्रवृत्त हो गया और शनैः-शनै: आपका जीवन भूमिका तैयार की और उसमें मानवीय सद्गुणों के बीज पुष्कर की निर्लेपता और उसके पराग की पवित्रता से वपन कर उन्हें पल्लवित, पुष्पित और फलित करने में सिक्त हो उठा । अपना सतत पुरुषार्थ-पराक्रम दिखाया। सन्तों की इसी मुनिश्री के साहित्यिक व्यक्तित्व से तो मैं वर्षों से परिसमृद्ध परम्परा के उज्ज्वल नक्षत्र हैं, उपाध्याय श्री चित था, पर आपके दर्शनों का अवसर मुझे सन् १९७२ पुष्कर मुनि। के जोधपुर चातुर्मास में मिला । मैं तब वहाँ माध्यमिक ___ मुनिश्री का व्यक्तित्व बहुरंगी और बहुआयामी है। शिक्षा बोर्ड राजस्थान और NCERT द्वारा संयुक्त रूप से सन्तों, सूरमाओं और भक्तों की पुण्यभूमि मेवाड़ की आयोजित एक कार्यगोष्ठी में गया हुआ था। उस समय अरावली उपत्यका में आज से ६७ वर्ष पूर्व जागीरदार मुनिश्री अपने विद्वान् शिष्य श्री देवेन्द्र मुनि के साथ पालीवाल ब्राह्मण परिवार में आपका जन्म हुआ। धार्मिक सरदारपुरा स्थानक में विराजमान थे। वहाँ पहुँच कर मैंने संस्कार आपको बचपन से ही मिले। पर्वतीय प्रदेश की देखा कि श्री पुष्कर मुनि अपने ज्ञान-ध्यान में मग्न हैं, और विराट् प्रकृति ने आपको अन्तर्मुखी बनाकर अन्तर में छुपे पास ही के कमरे में बैठे हैं। उनके विद्वान् शिष्य श्री विराट् ब्रह्म से साक्षात्कार करने की प्रेरणा दी। फल- देवेन्द्र मुनि जिनके इर्द-गिर्द कई सन्दर्भ ग्रन्थ बिखरे पड़े स्वरूप १४ वर्ष की अवस्था में आपने महास्थविर श्री हैं। उस समय मुनिश्री का 'भगवान महावीर : एक अनुताराचन्द जी महाराज से जैन दीक्षा अंगीकृत की, और शीलन' ग्रन्थ का लेखन-कार्य चल रहा था। [अब तो यह आप बालक अम्बालाल से मुनि पुष्कर बन गये । आपमें ग्रन्थ प्रकाशित हो चुका है और विद्वानों ने इसकी भूरि ०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012012
Book TitlePushkarmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni, A D Batra, Shreechand Surana
PublisherRajasthankesari Adhyatmayogi Upadhyay Shree Pushkar Muni Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1969
Total Pages1188
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy